सहरसा: नववर्ष में युवा अपने दोस्तों व शुभचिंतकों को शायद नये अंदाज में शुभकामना देने की सोच रहे है. तभी तो बाजार में ग्रीटिंग्स से सजी दुकान सूना-सूना नजर आ रहा है. समय बदल गया है और तकनीक भी. हर नयी तकनीक लोगों की जीवन शैली, व्यवहार और संप्रेषण में बदलाव ले आता है. पहले ग्रीटिंग्स, फिर मोबाइल और अब लोग फेसबुक, ऑरकुट, गूगल प्लस, वीचैट, लाइन, व्हाट्स एप्पस सरीखे नेटवर्किग साइट्स से जुड़ कर ग्रीटिंग्स को लगभग भूल ही चुके है. दुकानदारों ने कहा कि पहले हर परिवार के लोग कम से कम दस कार्ड जरूर खरीदते थे. मगर अब इक्का-दुक्का ही कार्ड की बिक्री हो रही है.
कहते हैं युवा
महिषी के चंदन पाठक ने बताया कि दोस्तों को ग्रीटिंग्स भेजने में परेशानी होती थी. इसके बाद भी निश्चित नहीं रहता है कि कार्ड पहुंच ही जाय. इससे बेहतर है कि फेसबुक पर चेटिंग के माध्यम से शुभकामना दे. बटराहा की मेघा ने बताया कि समय बदलने के साथ लोगों को एक दूसरे के लिए समय निकालना भी कठिन हो गया है, सोशल नेटवर्किग साइ्टस की लोकप्रियता ने लोगों को करीब लाने का काम तो किया. लेकिन कही दूरी भी पैदा कर दी है. वही कायस्थ टोला की चांदनी ने बताया कि कंप्यूटर व मोबाइल पर सर्फि ग के कारण घर से बाहर व मोबाइल से दूर होने का अवसर कम मिल पाता है. लेकिन फिर भी ग्रीटिंग्स का अपना मजा है. वही बनगांव के पवन ने बताया कि दूर-दराज रह रहे दोस्तों से ये साइट्स करीब तो कर देते हैं, लेकिन आसपास के दोस्तों व परिजनों से दूर कर देते है. न्यू कॉलोनी के मनीष ने बताया कि ग्रीटिंग्स की कीमत में भी भारी इजाफा हो गया है. जितने में एक दोस्त को कार्ड भेजेंगे, उतना में एक साथ कई दोस्तों को मैसेज कर उन्हें शुभकामना दे सकते है.