कर्मों से है चौक-चौराहों की पहचान
नई पीढ़ी को नहीं है चौराहों के इतिहास की जानकारी
शहर के गंगजला मोहल्ले में स्थित बंफर (बंपर) चौक की पहचान पूरे जिले में है. ज्ञात हो कि लगभग तीस वर्ष पहले लगमा गांव के निवासी प्रमोद झा ने इस चौक पर मिठाई की एक दुकान खोली थी. उनके दुकान में निर्मित होने वाले बंफर रसगुल्ले की ख्याति दूर-दूर तक पहुंचने लगी. वर्तमान में प्रमोद झा के निधन के बाद उस चौक से बंफर रसगुल्ला का रिश्ता भी समाप्त हो गया. लेकिन बंफर चौक की पहचान कायम है.
वर्ष 1971 को पाकिस्तान में हुए मुक्तिवाहिनी संघर्ष के दौरान बंगलादेश के गठन से पूर्व हुए दंगों में शरणार्थी भारत आये थे. उसी में से सैकड़ों परिवार शहर के बनगांव रोड में रिफ्यूजी की तरह निवास करने लगे. जिसके बाद सरकार के स्तर से इन लोगों को ठिकाना उपलब्ध कराया गया था. वर्तमान में शहर का यह व्यस्तम चौक रिफ्यूजी चौक के नाम से चर्चित है.
सहरसा नगर. घूम कर देखो, धरती पर सब आते हैं मेहमान, चौक-चौराहों का नहीं बदल रहा ईमान… कवि की यह पंक्ति कोसी प्रमंडल के मुख्यालय में अवस्थित चौक-चौराहों पर सटीक बैठती है. समय के साथ शहर का स्वरूप बदलता गया. लेकिन इन चौराहों की पहचान कायम रही. खास बात यह है कि इन जगहों का नामांकरण दशकों पूर्व किसी खास व्यक्ति की पहचान व उनके कृत्यों के बूते हो गयी थी. जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपनाते गये. लेकिन अब आलम यह है कि नयी पीढ़ी को यह पता ही नहीं है कि जिन रास्ते या चौक चौराहों से वे गुजरते हैं, ठहरते हैं या देर तक अपने दोस्तों के साथ हंसी ठिठोली करते हैं, उसका नाम कैसे पड़ा.
सरकार को जन सुविधा नहीं, टैक्स से है सरोकार
पूरे बाजार में कहीं भी उपलब्ध नहीं है मूलभूत सुविधा
शौचालय, यूरिनल व पेयजल की नहीं है व्यवस्था
न पार्किंग न पानी, पर टैक्स लिया जाता है पूरा
सहरसा नगर : लाखों रुपये भाड़ा के नाम पर वसूल करने वाला जिला परिषद व्यापारियों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध करवाने में फिसड्डी साबित हो गया है. व्यापारी सहित बाजार में आने वाले खरीदार चाह कर भी स्वच्छता अभियान में सहयोग नहीं कर सकते. क्योंकि डस्टबीन एवं शौचालय नहीं है. बाजार में दूसरे किनारे पर सुलभ शौचालय तो है. लेकिन बीच में आपको दीवार का सहारा ले शर्मनाक स्थिति में मूत्र विसर्जन करना पड़ेगा.
महिलाओं के लिए तो पूरे बाजार में यूरिनल की कोई व्यवस्था नहीं है.
दुकान सैकड़ों, जिप का शौचालय शून्य : जिला परिषद की दुकानें सैकड़ों में व्यवसाय के लिए उपलब्ध है. लेकिन शौचालय एवं पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं. रिजर्व ऑफर प्राइस एवं मासिक किराया वसूलने के बावजूद व्यवसायी को सुविधा के नाम पर तरसना पड़ता है. शहर सौंदर्यीकरण के नाम पर शोर शराबा होता रहा. परंतु इस मद में आया पैसा अन्यत्र खर्च कर दिया गया. इधर नप के द्वारा भी दुकानों की बंदोबस्ती का शोर उठा. लेकिन दहलान चौक एवं बस स्टैंड में अवस्थित नप की दुकानें बगैर सुविधाओं के साथ भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही है. रेलवे ने भी व्यवसायियों को सैकड़ों दुकानें दे रखी है. लेकिन इन्होंने भी सिर्फ भाड़ा वसूलने में ही दिलचस्पी रखी और सुविधा प्रदान करना लाजमी नहीं समझा. बस स्टैंड स्थित सुलभ शौचालय एकमात्र सुविधा का केंद्र है. जहां की स्थिति ऐसी है कि कोई झांकना तक पसंद नहीं करता.
न पार्किंग न पानी, पर टैक्स पूरा : नप सहित जिला परिषद द्वारा व्यवसायियों एवं शहर वासियों के लिए पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं मुहैया करायी गयी है. न ही बाजार क्षेत्र में पेयजल की व्यवस्था है. हालांकि पूरी मात्रा में होर्डिंग सहित अन्य टैक्स वसूल करने वाली नप सुविधा देने का दावा करती है. परंतु वर्तमान परिस्थिति में सिर्फ वादे किये जा रहे हैं. रेलवे और सिनेमाघर होटलों में पार्किंग की व्यवस्था तो है. लेकिन सिनेमाघरों एवं होटल मालिकों के लिए यह बड़ा सरदर्द भी है. क्योंकि कोई भी व्यक्ति इन पार्किंग में चुपचाप कई दफा अपनी गाड़ी छोड़ अन्यत्र चला जाता है. दुकानों के आगे गाड़ी खड़ी करने पर अक्सर विवाद भी खड़ा हो जाता है.
खर्च में होड़, पर सुविधा नहीं : नप में शहर सुविधा के नाम पर दस करोड़ से अधिक खर्च कर दिये, शौचालय एवं मूत्रालय पर नप के वार्षिक बजट में प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये तक की व्यवस्था दिखलाई गयी. जिप भी नये भवन में तो व्यवस्था करेगा. परंतु पुराने व्यवस्था में सुविधा नहीं उपलब्ध करायी गयी. रेलवे की ओर से सुविधाएं सिर्फ रेल परिसर में है.