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हाल-ए-सदर अस्पताल. अभिभावक परेशान, मरीज बेहाल

पहुंचते हैं इलाज कराने हो जाते हैं अौर बीमार जिले के सदर अस्पताल में इलाज, दवा, सफाई व भोजन की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से लोगों को परेशानी हो रही है. ऐसे में मरीज व उनके अभिभावक दोनों परेशान हैं. सहरसा नगर : जिले की आबादी बढ़ती गयी, लेकिन स्वास्थ्य महकमा का आकार […]

पहुंचते हैं इलाज कराने हो जाते हैं अौर बीमार

जिले के सदर अस्पताल में इलाज, दवा, सफाई व भोजन की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से लोगों को परेशानी हो रही है. ऐसे में मरीज व उनके अभिभावक दोनों परेशान हैं.
सहरसा नगर : जिले की आबादी बढ़ती गयी, लेकिन स्वास्थ्य महकमा का आकार बढ़ने के बजाय कम होता गया. मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल से लेकर प्रखंडों में संचालित हो रही पीएचसी व एपीएचसी की हालत किसी से छुपी नहीं है. आर्थिक रुप से लाचार व कानूनी बंदिश में बंधे लोग ही सरकारी अस्पताल का रुख करते हैं. अन्यथा ज्यादातर लोग निजी अस्पतालों में ही प्राण रक्षा के लिए पहुंचते हैं. सरकारी अस्पताल में इलाज के उद्देश्य से पहुंचने वाले मरीजों को बाह्य व आंतरिक कई प्रकार की फजीहतों से दो चार होना पड़ता है. उन्हें बेहतर जांच व दवाई के लिए निजी व्यवस्था पर ही निर्भर रहना पड़ता है.
हालांकि सरकारी अस्पताल में मरीजों की तादाद हमेशा बढ़ती जा रही है, लेकिन सुविधा विस्तार नहीं होना व्यवस्था का मजाक बना रही है. जबकि स्थानीय मरीज दूसरे प्रदेशों के सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए अक्सर जाते रहते हैं.
ये खिड़की जो बंद रहती है
कई एकड़ में फैले सदर अस्पताल के वार्डों की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है, दूसरी तरफ परिसर में फैली गंदगी बीमारियों को आमंत्रण देने का काम कर रही है. अस्पताल के वार्डो में मरीज गरमी के मौसम में भी खिड़की बंद रखने को बाध्य हैं. खिड़की की दूसरी तरफ पसरी गंदगी व बदबू परेशान करने लगती है. मरीज के परिजन बताते हैं कि गंदगी के कारण लोग तंदरूस्त होने के बजाय संक्रमण वाले बीमारी को साथ लेकर घर वापस जाते हैं.
शौचालय देखते ही निकल जाते हैं : सदर अस्पताल का शौचालय अपनी गंदगी को लेकर हमेशा उदाहरण बनती रही है. वर्तमान में कई शौचालय की स्थिति बदतर हो गयी है. जिनमें कई दिनों से कोई सफाईकर्मी पहुंचे भी नहीं है. लोग बताते हैं कि नियमित रुप से सुबह-शाम शौचालय की सफाई होनी चाहिए. मरीजों को गंदगी से निजात नहीं मिल रही है.

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