नेता ही नहीं, डीएम भी चाहें तो बदलती है जिले की सूरत आइएएस अधिकारियों की उपलब्धियों पर लोगों को है गर्व संजय पार्क, बस स्टैंड, सुपर मार्केट, टीवी सेंटर, झील, मंदिर है कलक्टरों की देनप्रतिनिधि, सहरसा मुख्यालयअमूमन देखा जाता है कि किसी उपलब्धि के लिए उस क्षेत्र के सत्तारूढ़ दल के नेता ही याद किए जाते हैं. जनता भी उपलब्धियों का सारा श्रेय उसी जनप्रतिनिधि को दे उन्हें याद करती रह जाती है. जबकि योजनाओं को मूर्त रूप देने में अहम भागीदारी निभाने वाले अधिकारी नेपथ्य में धकेल दिए जाते हैं. सौभाग्य से सहरसा जिला मुख्यालय को अब तक कई ऐसे आइएएस अधिकारी मिले हैं, जिनके प्रयास से कस्बा नुमा शहर की तसवीर बदल पायी. बड़े और आकर्षक भवनों से पहचान बनी. लोगों की सुख-सुविधा का ख्याल रखा और प्रशासनिक -सामाजिक क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो सके. वैसे अधिकारी यहां आज भी याद किए जाते हैं. उनकी उपलब्धियों पर वे आज भी गर्व से इतराते हैं. ऐसे अधिकारियों की फेहरिस्त में एसएन प्रसाद, एसएम ओकेश, मदन मोहन झा, लक्ष्मी प्रसाद सिन्हा, अरविंद प्रसाद, के विद्यासागर, टीएन लाल दास, सुनील वर्थवाल, निरंजन चौधरी, नर्मदेश्वर लाल, आर लक्ष्मणन शामिल हैं. डीएम के ट्रांसफर अथवा पोस्टिंग के बाद अभी भी लोग बरबस यह कह बैठते हैं कि अब स्थिति सुधरेगी. कलक्टर का मतलब समझाया1954 में जिला बनने के बाद अब तक सहरसा को कुल 50 जिला पदाधिकारी मिले. कुछ का कार्यकाल काफी संक्षिप्त रहा तो कुछ अधिकारी को अपनी दक्षता दिखाने का मौका मिला. जिले के 23वें डीएम मदन मोहन झा मात्र छह महीने के कार्यकाल में ही अपनी विशिष्ट पहचान बना ली. सख्त प्रशासन, सुचारू पीडीएस सिस्टम, सरकारी रेवेन्यू में वृद्धि व संजय पार्क का निर्माण इनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल रहा. 25वें जिलाधिकारी के रूप में लक्ष्मी प्रसाद सिन्हा, 44वें डीएम निरंजन चौधरी, 45वें जिलाधीश नर्मदेश्वर लाल अपने सख्त व नियम संगत प्रशासन के लिए याद किए जायेंगे. जबकि कुसहा त्रासदी के ठीक बाद 47वें कलक्टर बन आये आर लक्ष्मणन जिले का बाहर की दुनियां से संपर्क भंग होने से बचाने के लिए चर्चाओं में रहे. 2008 की बाढ़ के बाद जिला मुख्यालय में लगे विश्व के सबसे बड़े मेगा कैंप को इन्हीं के निर्देशन में सफल किया जा सका. कानून की हद में रहना और दूसरों को रखना इन सभी अधिकारियों ने सिखाया. ऐसे कई अधिकारियों ने लोगों को कलक्टर का मतलब समझा दिया. 50वें जिला पदाधिकारी बिनोद कुमार गुंजियाल से भी लोगों की ऐसी ही अपेक्षाएं बनी हुई है. वे चाहते हैं कि श्री गुंजियाल भी अपने कार्यकाल में जिले को कुछ ऐसी उपलब्धि दें, जिससे वे ताउम्र याद किए जाते रहे. नाम व काम से बनी पहचान 27 मई 1987 से 06 नवंबर 1988 तक डीएम रहे अरविंद प्रसाद ने काम से अपने नाम की पहचान बनायी. 1980 बैच के आइएएस अरविंद प्रसाद की डीएम के रूप में पहली पोस्टिंग सहरसा में ही हुई थी. एक साल पांच महीने व नौ दिन के कार्यकाल में उन्होंने प्रशासनिक क्षमता का परिचय कराया. शहर का बस स्टैंड, सुपर बाजार, कृषि भवन, विकास भवन व एलपीटी दूरदर्शन केंद्र उन्हीं के कार्यकाल की उपलब्धि है. जानकार बताते हैं कि बस स्टैंड को इस स्थान पर बसाने के लिए उन्हीं के प्रयास से रेलवे की जमीन लीज पर ली गयी थी. शहर में सुपर बाजार का निर्माण कराना उनके द्वारा किए गए लोकप्रिय कार्यों में से एक था. सुपर मार्केट के माध्यम से शहर को सुंदर रूप देने की पहली परिकल्पना उन्हीं की थी. लेकिन दुर्भाग्य वश उनके स्थानान्तरण के बाद बाजार नहीं बसाया जा सका. उनके कार्यकाल में हुई परीक्षा में बरती गई सख्ती आज भी याद किए जाते हैं. ओवरलोडिंग की कहानी को तो उन्होंने बीते दिनों की बात ही बना दी थी. सामाजिकता से कमाया नामजनसामान्य के लिए सुलभता से उपलब्ध व सबों की समस्याओं को गंभीरता से लेने के लिए टीएन लाल दास आज भी गर्व से याद किए जाते हैं. 20 सितंबर 1995 से 22 फरवरी 1999 तक डीएम रहे टीएन लाल दास की भी ढ़ेर सारी उपलब्धियों रही. जिसमें श्मसान स्थल को स्वर्गलोक मत्स्यगंधा जलाशय में परिणत करना सिर्फ जिले ही नहीं, बल्कि संपूर्ण बिहार व बिहार से बाहर भी चर्चित रहा था. उसके अलावे पोस्टर्माटम स्थल पर जनसहयोग से भारत का दूसरा व बिहार का पहला रक्तकाली एवं उसी परिसर में भारत की तीसरा व बिहार का पहली चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण भी उन्हें आजीवन यादगार बनायेगा. कोसी की तेज धारा में विलीन हो गए देवनवन स्थित शिव मंदिर की पुनर्स्थापना के लिए भी याद किए जाते रहेंगे. महायोगिनी विकास मेले की शुरुआत भी श्री दास ने ही की थी. फोटो- डीएम 1- वर्ष 1987 में डीएम रहे अरविंद प्रसाद फोटो- डीएम 2- वर्ष 95 से 99 तक डीएम रहे टीएन लाल दास
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नेता ही नहीं, डीएम भी चाहें तो बदलती है जिले की सूरत
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