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अब कोसी का गर्भ भी जगमगायेगा, आयेगी संचार क्रांति

अभी नहीं है बिजली, एंटिना लगा होती है मोबाइल से बात पुल तैयार होने के साथ ही अंदर बसे लोगों की बढ़ी अपेक्षाएं गंडौल से श्रुतिकांत: कोसी के कहर का ही प्रकोप है कि जिला व प्रखंड मुख्यालय के काफी करीब होते हुए क्षेत्र के कई भाग अब तक आम सुविधाओं से वंचित है. आज […]

अभी नहीं है बिजली, एंटिना लगा होती है मोबाइल से बात

पुल तैयार होने के साथ ही अंदर बसे लोगों की बढ़ी अपेक्षाएं

गंडौल से श्रुतिकांत: कोसी के कहर का ही प्रकोप है कि जिला व प्रखंड मुख्यालय के काफी करीब होते हुए क्षेत्र के कई भाग अब तक आम सुविधाओं से वंचित है. आज जब राज्य बिजली के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनने जा रहा है, स्थिति बहुत हद तक सुधारी जा चुकी है फिर भी कोसी के गर्भ में बसे गांव अंधेरे में है. कोसी के गांवों में लोग बिजली के लिए जेनेरेटर पर निर्भर हैं. दो से पांच लीटर केरोसिन दे एक से दो प्वाईंट तक का बिजली कनेक्शन लेते हैं. न्यूनतम से भी कम मजदूरी पाने वाला इनसान भी आज मोबाइल से लैस होता है, लेकिन यहां समृद्ध व संपन्न व्यक्ति भी अपनों से साफ -साफ बात करने के लिए परेशानी उठा ही रहा है. आज जब संचार के क्षेत्र में देश दुनियां से कोसी का इलाका भी कदम से कदम मिलाकर चल रहा है. इंटरनेट के सहारे फेसबुक, ट्वीटर व अन्य मीडिया से जुड़ अपना कमेंट पास करने में लगा हुआ है. कोसी के पेट में रहने वाले लोग टेलीविजन की दुनिया से भी महरूम हैं. इन गांव के घरों में टेलीविजन तो हैं, लेकिन दूरदर्शन चैनल तक देखने के लिए तरस जाते हैं. मनचाहा चैनल देखने के लिए कई संपन्न लोगों ने डीटीएच भी लगा रखा है, लेकिन उनकी बैट्री उन्हें हद में रहने की वार्निग देती रहती है या फिर जेनेरेटर वालों की चेकिंग में जुर्माना देने को तैयार रहना पड़ता है. ज्ञात हो कि इन गांवों में जेनेरेटर की सुविधा की समय सीमा तय है. उसके बाद ये फिर से ढिबरी युग के ही प्राणी कहलाते हैं.

एंटिना लगा होती है बात

वर्ष 1988 से पहले जिला मुख्यालय में टेलीफोन की सुविधा कहीं-कहीं थी. 1990 के करीब संचार क्रांति आयी और बेसिक टेलीफोन घर-घर की शोभा बढ़ाने लगा, लेकिन इसके 23 सालों के बाद भी तटबंध के अंदर किसी भी गांवों में टेलीफोन की सुविधा बहाल नहीं करायी जा सकी. 2004 के आसपास मोबाइल की दुनिया शुरू हुई. धीरे-धीरे सेलफोन हर किसी के हाथों का गहना बन गया. अंदर बसे लोगों ने भी इस साधन की सुविधा लेनी चाही, लेकिन आज भी उन्हें स्पष्ट आवाज नहीं मिल पाती है. कारण साफ है कि कोसी के दस किलोमीटर के गर्भ में किसी भी मोबाइल कंपनी को कोई टावर नहीं लग सका है. लिहाजा विभिन्न कंपनियों के उपभोक्ता स्पष्ट बात करने के लिए बांध पर आते हैं या फिर अपने मोबाइल फोन को एंटीना के सहारे जोड़ क्लीयरिटी ढूंढते हैं. गंडौल के सुभाष चौधरी बताते हैं कि गांव में उन्हें कभी बलुआहा के बीएसएनएल का टावर मिलता है तो कभी दरभंगा जिले के कुशेश्वर का. मोबाइल फोन साथ लेकर घुमने का कोई फायदा नहीं मिलता है.

पुल लायेगी क्रांति

पूर्वी कोसी तटबंध के बलुआहा से पश्चिमी कोसी तटबंध के गंडौल के बीच बने कोसी महासेतु ने नदी के गर्भ में बसे गांव और वहां के ग्रामीणों की अपेक्षाएं बढ़ा दी है. गांव वालों का मानना है कि पुल के तैयार होने के बाद यहां भी विभिन्न कंपनियां अपना टावर लगायेगी, जिससे कोसी के गांवों में भी संचार क्रांति आयेगी. ग्रामीणों का कहना है कि बलुआहा से गंडौल तक पुल पर रोशनी के लिए बिजली दौड़ेगी. पुल के रास्ते व आसपास आने वाले गांव को भी बिजली से जोड़े जाने की योजना है. ऐसा होता है तो शीघ्र ही पुल के रास्ते व कोसी के गर्भ के प्राणपुर, थनवार, कुम्हरा, भेलाही, बौहरवा, बघवा व गंडौल भी बिजली की रोशनी से चकाचौंध होगा.

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