सहरसा सदर : नि:शक्तता को अभिशाप समझ समाज में अलग समझने की बातों से दूर मुख्यधारा में लाने की बात कही जा रही है. नि:शक्तता को वरदान समझ हर क्षेत्र में उन्हें भी आगे बढ़ने का मौका दिया जा रहा है. लेकिन आज भी नि:शक्तों के प्रति हमारा समाज सजग नहीं है. तभी तो विश्व […]
सहरसा सदर : नि:शक्तता को अभिशाप समझ समाज में अलग समझने की बातों से दूर मुख्यधारा में लाने की बात कही जा रही है. नि:शक्तता को वरदान समझ हर क्षेत्र में उन्हें भी आगे बढ़ने का मौका दिया जा रहा है. लेकिन आज भी नि:शक्तों के प्रति हमारा समाज सजग नहीं है. तभी तो विश्व विकलांग दिवस के मौके पर गुरुवार विकलांगों की रैली में शामिल जिले के महिषी प्रखंड क्षेत्र के झिटकी गांव की गरीब नीलम देवी किसी के सहारे प्रदर्शन में आयी थी.
दुर्घटना में पांच वर्ष पूर्व अपना बायां पैर गंवाने के कारण आज तक दोनों पैर पर चलने के लिए एक उपकरण की आस में दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है.
उपकरण की आस में आयी थी सहरसा : नि:शक्त पीड़िता अपने पति दिनेश मुखिया के साथ रैली में इस आस से शामिल होने के लिए आयी थी कि शायद जिला प्रशासन उनकी दर्दनाक स्थिति को देख तरस खाकर उन्हें वह उपकरण उपलब्ध करा देंगे. जिससे वे फिर से खुद के सहारे दोनों पैर पर चलने का साहस जुटा पायगी. लेकिन उन्हें विकलांग दिवस पर निराशा ही हाथ लगा. जिला प्रशासन या संबंधित विभाग के लोग लाचार, बेबस महिला की पीड़ा को न ही देख पाये और न ही उनके दर्द को समझ पाये.
पांच सालों से एक पैर के सहारे अपनी जिंदगी जीने वाली नीलम ने बताया कि पांच साल पूर्व देवघर जाने के क्रम में सड़क दुर्घटना में उन्हें अपना बायां पैर गंवाना पड़ा. उस समय भी वाहन मालिक द्वारा उन्हें किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं किया गया. दो पुत्र व दो पुत्री के साथ मजदूरी कर पति के सहारे घर का किसी तरह बोझ ढ़ो रही है.
पीड़िता ने आंखों में आंसू लिए अपना दर्द बयां करते कहा कि वह उस लायक भी नहीं है कि खुद भी मजदूरी कर घर को चलाने में पति का हाथ बंटा सके.
सामाजिक सुरक्षा द्वारा विकलांगों को दी जाने वाली चार सौ रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलने की बात कहती है. ऐसी स्थिति बताती है कि सरकार द्वारा नि:शक्तों के लिए कई योजनाएं चलायी जा रही है लेकिन यह योजना सिर्फ कार्यालय व कागजों तक ही सीमित रहती है.