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पीएचसी में चुपचाप नवजात बच्ची को रख भागे परिजन

पीएचसी में चुपचाप नवजात बच्ची को रख भागे परिजन मामला पतरघट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का प्रतिनिधि, पतरघट/ सहरसा सिटी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पतरघट में बीते शुक्रवार की शाम छह बजे महिला वार्ड में एक नवजात लड़की को कपड़ा में लपेटकर अंजान व्यक्ति द्वारा अंधेरे में रख निकल गया. इस बात की जानकारी पीएचसी कर्मियों को […]

पीएचसी में चुपचाप नवजात बच्ची को रख भागे परिजन मामला पतरघट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का प्रतिनिधि, पतरघट/ सहरसा सिटी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पतरघट में बीते शुक्रवार की शाम छह बजे महिला वार्ड में एक नवजात लड़की को कपड़ा में लपेटकर अंजान व्यक्ति द्वारा अंधेरे में रख निकल गया. इस बात की जानकारी पीएचसी कर्मियों को तब मिली जब नवजात बच्ची ने रोना शुरू कर दिया. रोने की आवाज पर पीएचसी कर्मी सहित आसपास के लोगों की भीड़ जुट गयी. स्वास्थ्य प्रबंधक अफजल हुसैन ने बताया कि उक्त नवजात का जन्म हमारे पीएचसी में नहीं हुआ है. कोई बाहरी व्यक्ति द्वारा पीएचसी में कपड़ा में लपेटकर महिला वार्ड के कमरे में रखा दिया और वहां से भाग गया. बच्ची के रोने की आवाज पर हमलोगों द्वारा पहुंचकर आसपास पता किया गया, लेकिन उस बच्ची का कोई वारिस उपस्थित नहीं हुआ. –चाइल्ड लाइन को सौंपी गयी नवजातस्वास्थ्य प्रबंधक ने बताया कि अपने स्तर से डीएम व सीएस से बातकर मामले की जानकारी दी. वरीय उच्चाधिकारियों के आदेश पर हमने चाइल्ड लाइन सहरसा से पहुंचे समन्वयक बाल किशोर झा व अनिता मिश्रा को पतरघट पुलिस की उपस्थिति में सुपुर्द कर दिया गया. उन्होंने बताया कि उक्त नवजात को देखने पर यही लगा की 10 घंटे पूर्व ही जन्म हुआ है. बच्ची का वजन दो किलो छह सौ ग्राम है. वह पूरी तरह से स्वस्थ है. –बच्ची के नाभी में धागा बांधा हुआप्रबंधक ने बताया कि बच्ची को देखने से यही पता चला कि बच्ची की नाभी में धागा बंधा हुआ था, जो आमतौर पर ग्रामीण इलाके में घरेलू तरीके से प्रसव कराने में किया जाता है. इससे स्पष्ट जाहिर होता है कि उक्त बच्ची का जन्म किसी सरकारी अस्पताल में नहीं हुआ है. अब सवाल यह उठता है कि सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण सहित बालिका योजना को लेकर ढ़ेर सारी योजनाएं चलायी जा रही है, लेकिन उक्त नवजात बच्ची को पीएचसी में अंधेरे में छोड़ कर भाग जाना यह कहां तक न्यायोचित प्रतीत होता है. इधर, अब जितनी मुंह उतनी बात कोई उसे कुंवारी मां की नाजायज औलाद बता रहा है तो कोई उसे जयादे बेटी होने के दुख में छोड़ देना बता रहा है. अब सवाल यह भी है कि क्या सरकार द्वारा बच्ची की जन्म के साथ ही सरकारी सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ लोगों में जागृति के लिए जो योजनाएं चलायी जा रही है वह सफल नहीं होकर सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर कोरम पूरा किया जा रहा है.

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