सहरसा मुख्यालय. संत सत्यानंद काग बाबा के अनन्य व आशीर्वाद प्राप्त शिष्य स्वामी गुरुवानंद जी महाराज ने कहा कि इनसान मन और ज्ञान के द्वंद्व में फंसा हुआ है. मनुष्य का प्रथम व प्रधान शत्रु मन ही है. मन विकारों से भरा है और और ज्ञान निर्विकार अर्थात पवित्र है. उन्होंने कहा कि स्वाभाविक अवस्था में मनुष्य मन का अनुसरण करता है. मन के विकृत होने पर कार्य अशुभ होते हैं और अशुभ कर्म हमेशा अशुभ फल ही देता है.
स्वभाव के अनुसार इनसान अशुभ फल को बरदाश्त नहीं कर पाता है. इसी तरह जब इनसान को ज्ञान होता है तब उसका मन भी शुद्ध हो जाता है. वह मन से विकारों को निकाल देता है और शुद्ध मन से किया गया कार्य शुभ फल देता है. उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु का होना अति आवश्यक है. गुरु से ज्ञान प्राप्त कर व उसके नित अभ्यास से वह स्वयं सुखी तो हो ही जाता है, विश्व का कल्याण करने वाला भी बन जाता है. इसीलिए मन पर ज्ञान का विजय होना इनसान के सुखमय, शांत व प्रसन्नचित जीवन के लिए जरूरी है.
बलि प्रदान से नहीं मिलती मुक्ति. स्वामी जी ने कहा कि अपने अंदर के षटरिपु व अष्टपाश की बलि से मन को पवित्रता मिलती है, न कि जीवों की बलि देने से. उन्होंने कहा कि माता-पिता को बुढ़ापे में समयानुकूल भोजन, दवा, वस्त्र व मधुर वचन से सेवा करना जीवित श्रद्ध है. मृत्यु के बाद पिंडदान या तर्पण मृत श्रद्ध है.