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जिंदा का श्राद्ध, एंबुलेंस को नहीं देते रास्ता

वाह रे राजनीति. किसी जनप्रतिनिधि ने अब तक सड़क चौड़ीकरण को नहीं बनाया मुद्दा शहर की जनसंख्या और सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ता गया पर चौड़ी न हो सकी सड़क जाम में फंसकर होती रहती है एंबुलेंस के मरीजों की मौत सहरसा : सहरसा के विकास की ठेकेदारी जिन कंधों पर दी जाती है, […]

वाह रे राजनीति. किसी जनप्रतिनिधि ने अब तक सड़क चौड़ीकरण को नहीं बनाया मुद्दा

शहर की जनसंख्या और सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ता गया पर चौड़ी न हो सकी सड़क
जाम में फंसकर होती रहती है एंबुलेंस के मरीजों की मौत
सहरसा : सहरसा के विकास की ठेकेदारी जिन कंधों पर दी जाती है, बाद में उनकी राजनीति ही समझ से परे हो जाती है. यहां किसी फिल्म के विरोध में हंगामा होता है. डीएम के जांच के आदेश के बाद भी जमीन के टुकड़े के लिए जीवित व्यक्ति का श्राद्धकर्म किया जाता है. लेकिन मौत के मुंह में जाते व्यक्ति को बचाने के लिए रास्ता नहीं दिया जाता है और न ही इसके लिए आवाज उठायी जाती है.
सड़कों का चौड़ीकरण ही है उपाय : यहां आश्चर्य यह है कि रोज लगने वाले जाम व महाजाम के निराकरण की चिंता किसी को नहीं है. कोई इसके कारणों पर गौर नहीं कर रहा. ऐसा नहीं है कि इस शहर के जनप्रतिनिधि सोए हुए हैं. लेकिन उनका दुर्भाग्य है कि वे ऐसे सार्वजनिक समस्याओं में दिलचस्पी नहीं लेते. क्षणिक प्रभाव डालने वाली फिल्मों पर यहां राजनीति होती है. विरोध प्रदर्शन होता है. बाजार तक बंद कराये जाते हैं. दूसरी ओर डीएम द्वारा जांच के आदेश दिये जाने के बाद भी कई जनप्रतिनिधि मिल कर जीवित व्यक्ति विशेष का दाह संस्कार व श्राद्ध करते हैं. गांव को भोज खिलाया जाता है.
उस व्यक्ति के नाम पर बाल मुंड़वाये जाते हैं. शहर की जनसंख्या और यहां की सड़कों पर वाहनों का बोझ लगातार बढ़ता गया. लेकिन सड़कों की चौड़ाई जस की तस है. जाम की समस्या के निराकरण के लिए सड़क को चौड़ी करने के लिए आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने आवाज नहीं उठायी और सड़क को चौड़ा किये बगैर जाम से निजात मिल पाना संभव नहीं है.
कम से कम 45 मिनट फंसती है एंबुलेंस
जाम और महाजाम शहर की पहचान बन गयी है. इस जाम में आम लोगों की गाड़ियों के अलावा रोज एंबुलेंस भी फंसती है. रोगी को अन्यत्र ले जाते या बाहर से सहरसा के अस्पताल लाती एंबुलेंस का सायरन बजता रह जाता है. लेकिन कोई उसे आगे बढ़ने का रास्ता नहीं देता. दूसरे वाहन उसे रोक पहले खुद भीड़ से निकलने की जुगत में रहते हैं. ट्रैफिक सामान्य होने के बाद ही एंबुलेंस अस्पताल पहुंच पाता है. कई बार एंबुलेंस को अस्पताल पहुंचने में देर हो जाती है और मरीज की मौत हो जाती है.
मंगलवार को थाना चौक से गंगजला की ओर जाने के रास्ते में लगे महाजाम में ऐसा ही एक एंबुलेंस लगभग 45 मिनट तक फंसी रही. ड्राइवर सायरन बजाता रहा. मरीज के परिजन अंदर से एंबुलेंस को रास्ता देने की गुहार लगाते रहे. लेकिन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसे दो-चार दृश्य शहर की सड़कों पर रोज मिल जाते हैं.

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