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एक जगह टीबी, दूसरी जगह कोई बीमारी नहीं

डॉक्टरों को जाता है मोटा कमीशन खर्च से कई गुणा तक होती है वसूली जांच में गलती पर मरीज की बढ़ जाती है परेशानी सहरसा : अक्सर देखा गया है कि जब भी मरीज डॉक्टर के पास जाते हैं तो उसे जांच कराने को कह दिया जाता है. बीमारी चाहे जो भी हो, जांच जरूरी […]

डॉक्टरों को जाता है मोटा कमीशन

खर्च से कई गुणा तक होती है वसूली
जांच में गलती पर मरीज की बढ़ जाती है परेशानी
सहरसा : अक्सर देखा गया है कि जब भी मरीज डॉक्टर के पास जाते हैं तो उसे जांच कराने को कह दिया जाता है. बीमारी चाहे जो भी हो, जांच जरूरी कर दी जाती है. इससे डॉक्टरों को भी मुनाफा होता है. प्रभात खबर द्वारा की जा रही पड़ताल में पैथोलॉजी संचालक से डॉक्टरों की सांठगांठ के कई खुलासे हुए हैं. जिसमें यह सामने आया है कि किस प्रकार डॉक्टर मरीजों को विशेष पैथोलॉजी लैब का नाम बताते हैं या पर्ची देते हैं. कहते हैं कि वहीं से जांच कराना है. वह इसलिए भी कहते हैं कि पैथोलॉजी, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड सेंटर से इनका कमीशन बंधा हुआ है. ऐसे में डॉक्टर के साथ-साथ निजी जांच घर वाले भी मुनाफा कमा रहे हैं.
आश्चर्य यह कि डॉक्टर की सलाह पर आप जो पैथोलॉजिकल जांच करवाते हैं, उन पर लैब संचालक वास्तविक खर्च के अलावा कई गुणा अधिक पैसा वसूल रहे हैं. इन पर अंकुश लगाने के लिए प्रशासन भी ठोस कदम नहीं उठा रहा है. इन विभाग से जुड़े एजेंटों की मानें तो जांच शुल्क की 60 प्रतिशत रकम सलाह देने वाले डॉक्टर को दी जाती है.
ऐसे हो रही कमाई: स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि बीते छह महीने में शहर के निजी लैब में आठ मरीजों को मलेरिया की पुष्टि हुई थी. लेकिन सदर अस्पताल में जांच के दौरान सभी मरीज स्वस्थ निकले. प्राइवेट अस्पताल में उपचार कराने वाले इन मरीजों को बिना किसी बीमारी के महंगी दवा खानी पड़ी और जांच के पैसे भी देने पड़े.
डॉक्टर भी देते हैं सलाह: डॉक्टर या तो अपनी पर्ची पर लैब का नाम लिखते हैं या मौखिक रूप से मरीज को बताते हैं कि जांच कौन से लैब में करायी जानी है. नर्सिंग होम व क्लिनिक में लैब के एजेंट को ब्लड कलेक्शन के लिए बैठाया जाता है. कई डॉक्टर तो केवल विशेष लैब की जांच रिपोर्ट ही स्वीकार करते हैं. खासकर पैथोलॉजी तो कुकुरमुत्ते की तरह फैले हुए हैं और यह चिकित्सक और बिचौलिये के रहमोकरम पर संचालित हो रहे हैं.
पहले जांच में टीबी, दूसरी जगह नहीं: लैब जांच की गलत रिपोर्ट से बुजुर्ग व महिलाएं ही नहीं, छोटे-छोटे बच्चे भी परेशान हो रहे हैं. स्थानीय निवासी अखिलेश कुमार के ढाई वर्षीय पुत्र अक्षित को मौसमी सर्दी जुकाम होने पर शहर के ओल्ड राइस मिल परिसर स्थित एक शिशु रोग विशेषज्ञ के पास इलाज के लिए ले जाया गया. जहां डॉक्टर द्वारा पास के ही एक जांच सेंटर में लैब टेस्टिंग के लिए भेज दिया गया. लैब से निकली रिपोर्ट में बच्चे को टीबी की पुष्टि कर दी गयी.
जिसके बाद डॉक्टर ने भी बगैर क्रॉस चेकअप टीवी की दवाई लिख दी. लेकिन बच्चे में टीबी के लक्षण नहीं देखने के बाद परिजनों को टेस्ट रिपोर्ट पर संदेह उत्पन्न होने लगा. बाद में कुछ लोगों की सलाह पर शहर के गंगजला चौक स्थित दूसरे चाइल्ड स्पेश्लिस्ट से बच्चे का परीक्षण कराया गया. जहां हुई जांच में पहले की रिपोर्ट हवा हवाई साबित हो गयी. बच्चे की बीमारी को लेकर तनाव में रह रहे परिजनों ने भी राहत की सांस ली. अमूमन सभी लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं. नतीजतन दूसरे मर्ज की दवा सेवन करने से गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.

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