सहरसा : कलेक्ट्रेट के सामने वर्षों से वैध रूप से चल रहे आकांक्षा अनाथ आश्रम के बच्चों को पटना अथवा अन्य सरकारी अनाथालय में शिफ्ट कराया जायेगा. मंगलवार को प्रभात खबर में ‘ सहरसा में फिर एक बीमार अनाथ बच्चे की हो गयी मौत’ शीर्षक से प्रकाशित खबर पर संज्ञान लेते आइएएस ऑफिसर सदर एसडीओ ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि बाल संरक्षण पदाधिकारी के नेतृत्व में अधिकारियों की टीम इस अनाथ आश्रम की जांच कर रही है.
जांच रिपोर्ट आने के साथ ही इस अवैध अनाथालय के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी.
पूर्व के डीएम ने भी बताया था अवैध: 2008 की कुसहा त्रासदी के समय खुला यह आकांक्षा अनाथ आश्रम प्रारंभ से ही संदेह के घेरे में रहा है. कायस्थ टोला के बाद तिरंगा चौक और फिर समाहरणालय के सामने सुलभ शौचालय के भवन में चल रहे इस आश्रम में प्रारंभ से ही व्यवस्था का अभाव रहा है. अभी यहां 24 बच्चे रह रहे हैं.
ये सभी बच्चे भी पोषक तत्वों से पूरी तरह महरूम हैं. यह अनाथ आश्रम शुरू से आज तक लोगों के रहमोकरम पर ही चल रहा है. दान-अनुदान पर ही इसका संचालन होता रहा है. बीते नौ वर्षों में कभी भी इसे सरकार की ओर से किसी तरह का अनुदान नहीं मिला है. 2008 से अब तक इस आश्रम में कुल आठ बच्चों की मौत हो चुकी है. आश्चर्य है कि मौत के मुंह में गये लगभग सभी बच्चे कुपोषण के ही शिकार थे. 2009 में तत्कालीन डीएम आर लक्ष्मणन ने भी पूछने पर इसे अवैध करार दिया था व कहा था कि संचालक को अनाथ आश्रम खाली करने का निर्देश दिया गया है. सभी बच्चों को पटना स्थित अनाथ आश्रम में भेज दिया जायेगा. लेकिन बात ठंडे बस्ते में दब गयी.
खिला नहीं सकते, तो चलाते ही क्यों?: सवाल है कि नौ वर्षों से चल रहे इस अनाथ आश्रम में अब तक आठ बच्चों के मरने एवं अधिकतर के कुपोषण के शिकार होने को प्रशासन ने गंभीरता से क्यों नहीं लिया. आखिर कुपोषण से ही यहां बच्चों की मौत क्यों होती रही है. यदि आश्रम बच्चों को खिला नहीं सकता, उसे जीने के योग्य बना नहीं सकता तो उसे आश्रम चलाने की जरूरत ही क्या है. बीते वर्ष एक बच्चे की मौत खून की कमी से हो गई थी. आखिर वैसी स्थिति आयी ही क्यों.
एक बच्चे की मौत पर सदर अस्पताल या निजी नर्सिंग होम में हो हंगामा होता है. लेकिन एक के बाद एक मौत होने पर यहां कोई आवाज क्यों नहीं उठाया. सिर्फ इसलिए कि वह अनाथ है. उसका कोई नहीं है. क्या अनाथ, नि:शक्त को जीने का कोई अधिकार नहीं है. उसके अधिकार के लिए आगे आने वाला कोई नहीं है. क्या सरकार व प्रशासन ने भी अपने हाथ खड़े कर दिये हैं.
एजुकेशनल ट्रस्ट के नाम पर हो रहा संचालन
सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत इंद्राक्षी एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के नाम पर रजिस्ट्रेशन लेकर इस अनाथालय का संचालन हो रहा है. जो सर्वथा उचित नहीं है. यदा-कदा यहां सरकार के मंत्री व विधायक भी आते रहे. जिससे संचालक का हौसला बढ़ता रहा. लेकिन एक रुपये की सरकारी मदद नहीं मिल सकी. पूर्व डीएम देवराज देव ने यहां आयोजित एक अनाथ के शादी समारोह में शामिल हो लड़की का कन्यादान तक किया. जिससे इस पर निश्चिंतता की मुहर लगती चली गयी. प्रशासन की ओर से भी इस अवैध अनाथालय को हमेशा सहारा दिया जाता रहा है. भटकी महिला व मूक-बधिर बच्चे को यहां तक पहुंचाया जाता रहा है. अभी दो माह पूर्व ही यूपी एक भटकी गूंगी महिला को महिला थानाध्यक्ष ने यहां शिफ्ट कराया था. जिसे कलेक्ट्रेट की मदद से उसके परिवार को सूचना दी गयी व उसे परिजनों को सौंपा गया.