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कीचड़ के बीच से पड़ रहा जाना
सासाराम (शहर) : शहर में अंतर्राज्यीय बस पड़ाव है. इस बस पड़ाव से उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के शहरों के लिए बसें आती-जाती हैं. प्रतिदिन करीब डेढ़ सौ बसों का आवागमन होता है. इस बस पड़ाव की देख-रेख की जिम्मेवारी नगर पर्षद की है. बस पड़ाव में यात्रियों की सुविधा की […]
सासाराम (शहर) : शहर में अंतर्राज्यीय बस पड़ाव है. इस बस पड़ाव से उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के शहरों के लिए बसें आती-जाती हैं. प्रतिदिन करीब डेढ़ सौ बसों का आवागमन होता है.
इस बस पड़ाव की देख-रेख की जिम्मेवारी नगर पर्षद की है. बस पड़ाव में यात्रियों की सुविधा की जिम्मेवारी भी नगर पर्षद की होती है. नगर पर्षद राजस्व वसूली के लिए बजाप्ता बस पड़ाव की डाक बोली से निलामी कराती है. उससे होने वाले आय से बस पड़ाव में सुविधा देने की बात होती है. इस वर्ष बस पड़ाव बंदोबस्त करीब 30 लाख रुपये में की गयी है़ यह बस पड़ाव के समृद्धी की कहानी है. हालांकि, सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है़ स्थिति इतनी नारकीय बनी हुई है. यात्रियों को बस तक पहुंचना पहाड़ सा लगता है.
लाखों रुपये राजस्व प्राप्त करनेवाला महकमा इस बाबत पूरी तरह से संवेदनहीन बना हुआ है. बस पड़ाव परिसर व पोस्ट ऑफिस चौराहा के बीच का पथ पूरी तरह कीचड़ से भरा है़ बस भी कीचड़ के बीच में ही खड़ी रहती है और यात्रियों को भी कीचड़ में ही पैर रख कर बस में सवार होना पड़ता है. प्रतीक्षालय से लेकर शौचालय तक सिर्फ गंदगी ही नजर आ रही है. चारों ओर लगे कूड़ों के अंबार से निकल रहे दुर्गंध के कारण प्रतीक्षालय में यात्रियों को पल भर के लिए भी बैठना मुश्किल होता है़ परंतु, बस के इंतजार में उन्हें इसी गंदगी व कुड़ों के सड़ांध से निकल रहे बदबू के बीच बैठना पड़ता है.
बस पड़ाव तक नहीं है सड़क: बस पड़ाव परिसर व पोस्ट ऑफिस चौराहा से पड़ाव आने वाला पथ पूरी तरह से कीचड़ से लथपथ है. बस भी कीचड़ के बीच में ही खड़ी रहती है और यात्रियों को भी कीचड़ में ही पैर रखकर बस में सवार होना पड़ता है. पड़ाव परिसर के चारों ओर कीचड़ का साम्राज्य बना हुआ है. आये दिन कोई न कोई यात्री कीचड़ में फिसलकर गिर जाते हैं.
कहां के लिए छूटती हैं बसें
जिले के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा वाराणसी, पटना, बक्सर, औरंगाबाद, गढ़वा, लातेहार, पलामू, टाटा, बोकारो, रांची, आसनसोल व कोलकाता के लिए भी बसें जाती है. प्रतिदिन हजारों की संख्या में यात्री सफर करते हैं. बुनियादी सुविधा के अभाव के कारण उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
न पानी का इंतजाम है, न शौचालय का
बस पड़ाव में यात्री सुविधाओं की घोर कमी है. नप द्वारा शौचालय व प्रतीक्षालय बना तो दिया गया है परंतु, सही ढंग से रख-रखाव न होने के कारण बदहाली की स्थिति बनी हुई है. शौचालय का प्रयोग करना तो दूर की बात है, वहां पर पल भर भी खड़ा रहना मुश्किल है. यात्रियों के पानी पीने के लिए चापाकल व नल तक की भी व्यवस्था नहीं है.
बोले अधिकारी
बस स्टैंड की साफ-सफाई के लिए नप के सफाई कर्मियों को निर्देश दिया गया है. हाइमास्ट लाइट को अतिशीघ्र दुरुस्त करा बस पड़ाव को प्रकाशमय बनाया जायेगा़ शौचालय, प्रतीक्षालय व पेयजल व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जायेगा. इससे की यात्रियों को परेशानी न हो.
मनीष कुमार, नप कार्यपालक पदाधिकारी, सासाराम
अंधरे में डूब जाता है बस पड़ाव
बस पड़ाव में शाम ढलते ही अंधेरा छा जाता है. रोशनी के लिए नगर पर्षद द्वारा लगाया गया हाइमास्ट लाइट कई माह से सिर्फ शोभा की वस्तु बनी हुई है. रांची, टाटा, बोकारो के लिए अधिकतर बसें शाम सात बजे के बाद ही जाती है. शाम के समय बस पड़ाव परिसर में अंधेरा छा जाने की वजह से इंटर स्टेट जानेवाले यात्रियों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है.
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