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कहां दब गया दवा घोटाला ?
टूट रही उम्मीद. 20 वर्षों में भी केस का अनुसंधान नहीं हुआ पूरा किसी मामले में प्राथमिकी के बाद तुरंत आरोपितों के घर पहुंचने वाली पुलिस एक मामले में 20 वर्षों में भी अपना अनुसंधान पूरा नहीं कर पायी है़ मामला सदर अस्पताल में हुए दवा घोटाले से जुड़ा है़ इस मामले में नगर थाने […]
टूट रही उम्मीद. 20 वर्षों में भी केस का अनुसंधान नहीं हुआ पूरा
किसी मामले में प्राथमिकी के बाद तुरंत आरोपितों के घर पहुंचने वाली पुलिस एक मामले में 20 वर्षों में भी अपना अनुसंधान पूरा नहीं कर पायी है़ मामला सदर अस्पताल में हुए दवा घोटाले से जुड़ा है़ इस मामले में नगर थाने में छह मामले दर्ज हुए थे़ सूत्रों के अनुसार अब प्राथमिकियों का क्या हुआ यह भी पता नहीं है़
सासाराम (नगर) : थमिकी के बाद आरोपितों के घर तत्काल पहुंचने वाली पुलिस छह केसों का 20 वर्षों में भी अनुसंधान पूरा नहीं कर सकी है. यह प्राथमिकी 1995 में सदर अस्पताल में दवा घोटाला से जुड़ा हुआ है. इसमें अलग-अलग छह प्राथमिकियां दर्ज करायी गयी थी. डीएसपी को केस का अनुसंधानकर्ता बनाया गया था. मामले में कुल 10 स्वास्थ्य कर्मियों को अारोपित बनाया गया था. कई अारोपितों की मौत हो चुकी है. घोटाले की प्राथमिकी होने के बाद भी आरोपित स्वास्थ्य कुर्मी सेवानिवृत्त हो कर सेवानिवृत्ति का लाभ ले चुके हैं.
लेकिन, पुलिस अब तक अनुसंधान पूरा नहीं किया इतने बड़े घोटाले में अब तक अनुसंधान पूरा क्यों नहीं हुआ. यह भी बताने वाला कोई तैयार नहीं है. नगर थाना को तो इस केस की जानकारी भी नहीं है. जबकि डीसपी कार्यालय में प्राथमिकी ढूंढ़ा जाता है. घोटाले के संबंध में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. पुलिस विभाग के अधिकारी सिर्फ फेंका-फेंकी करते है. जबकि आज के समय में एक छोटी घटना को प्राथमिकी दर्ज होने पर पुलिस आरोपित के घर पर परिक्रमा शुरू कर देती है.
तीसरी बार में पहुंची दवा की खेप, दो बार ट्रक हो गया गायब
एक ऑडर पर तीन बार दवा मंगाया गया. एमएसडी (दवा कंपनी) मुंबई व कोलकाता से दवा ले कर सदर अस्पताल के लिए चला ट्रक गायब हो गया. यह वाकया दो बार हुआ. तीसरी बार दवा की खेप सासाराम पहुंची.
दवा मंगाने के लिए अगर नियमों का पालन किया गया था, तो एमएसडी से दवा ले कर चली ट्रक आखिर बीच में कहां गायब हो गयी. इसकी जिम्मेदारी किस पर थी. कौन था जिम्मेदार सिविल सर्जन, भंडारपाल या प्रधान लिपिक मामले का खुलासा होते ही सदर अस्पताल में कर्मियों के बीच हड़कंप मच गया था. मामले में नगर थाना में 22 मार्च, 1996 को कांड संख्या 138/96 दर्ज कराया गया. इसमें तीन प्राथमिकी का उल्लेख है. जांच के दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे होते रहे.
मामला मुख्यालय (पटना) तक जा पहुंचा. अधिकारियों के निर्देश पर पुनः 11 अगस्त, 1996 को तीन और प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. प्राथमिकी में तत्कालीन सिविल सर्जन सह अधीक्षक राम अवतार प्रसाद, भंडार पाल राजेंद्र प्रसाद, प्रधान लिपिक दिवाकर प्रसाद सिन्हा, भंडार पाल मदन सिंह को आरोपित बनाया गया. इसके अलावा जांच के दौरान छह कर्मियों की संलिप्तता उजागर हुई. अनुसंधानकर्ता सदर डीएसपी की जांच धीमी गति से चलताी रही.
मुख्यालय की अनुशंसा पर सरकार इस मामले को सीबीआइ के हवाले कर दी. सीबीआइ कांड संख्या आरसी/9(ए)2004 दर्ज कर अनुसंधान शुरू कर दी. विभागीय सूत्रों की मानें, तो उक्त मामला तत्कालीन सीएस के ईद गिर्द घुमता रहा. इनका कार्यकाल 29 नवंबर, 1991 से 31 जनवरी, 1995 तक था. इसी दौरान यह घोटाला हुआ था.
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