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गांव में चुनाव, शहर में हो रही घोषणाएं

शहर की 60 प्रतिशत आबादी बनायेगी गांव की सरकार सासाराम : गांव में चुनाव, समस्याएं गांव की, प्रत्याशी भी गांव के, लेकिन मतदाता हैं शहरी. चौंकिये नहीं, यह अक्षरशः सत्य है. गांवों की साठ प्रतिशत आबादी का घर-द्वार और कारोबार शहर में है. ऐसे में गांव की सरकार बनाने की कवायद में पंचायत प्रत्याशियों ने […]

शहर की 60 प्रतिशत आबादी बनायेगी गांव की सरकार
सासाराम : गांव में चुनाव, समस्याएं गांव की, प्रत्याशी भी गांव के, लेकिन मतदाता हैं शहरी. चौंकिये नहीं, यह अक्षरशः सत्य है. गांवों की साठ प्रतिशत आबादी का घर-द्वार और कारोबार शहर में है. ऐसे में गांव की सरकार बनाने की कवायद में पंचायत प्रत्याशियों ने दिन में शहर, तो रात में गांव की खाक छान रहे हैं. बढ़ते तापमान और चिलचिलाती धूप में पंचायत प्रत्याशियों के साथ साथ शहरी मतदाताओं की परेशानी बढ़ गयी है. परेशानी बढ़ना लाजिमी है. एक प्रत्याशी गया नहीं कि दूसरा प्रत्याशी हाजिर. घोषणाएं भी एक से बढ़ कर कर एक.
घोषणाओं को सुन मतदाता एकबारगी सेाचने पर मजबूर हो जाता है. सिकरियां निवासी रविरंजन कहते हैं कि घोषणाओं की झड़ी में अगर आधे दर्जन घोषााएं भरी धरातल पर उतर जाये, तो गांवों की तकदीर व तसवीर दोनों बदल जायेगी़ मुखिया, जिला पर्षद वार्ड सदस्य सरपंच पंचायत समिति सदस्य, पंच सब की अलग-अलग राग अलग व घोषणा. ऐसे में समीकरण बैठाने व उनके द्वारा वादों को अमली जामा पहनाने में मतदाताओं की परेशानी बढ़ा दी है.
नींव निवासी विनोद सिंह कहते हैं कि भरी दोपहरी मे दरवाजे पर प्रत्याशियों के दस्तक से घंटा भर आराम करना मुश्किल है. उधर सत्येंद्र सिंह, बिगन सिंह, दरिगांव निवासी सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि एक तो लग्नल का महीना ऊपर से अहले सुबह से ही प्रत्याशियों के आवाजाही से कारोबार सहित दिनचर्या पर भी प्रभाव पड़ रहा है. इसके इतर महिला प्रत्याशियों के प्रचार का तरीका शहर में भी गंवई ही है. पहली बार राजनीति में कदम रखने और नेता बनने के जुनून में नीत नये रिश्ते भी बनाने में कोई किसी से कम नहीं है.
चाची हो या आजी कहते हुए घरों के अंदर प्रवेश करने में महिला प्रत्याशी पुरुष प्रत्याशियों पर भारी पड़ रही हैं. कुम्हउ निवासी सुजीत सिंह कहते है के भाई पुरुष प्रत्याशी तो शहर के किसी चौक चौराहे या चाय दुकान पर ही भेंट कर अपनी और मतदाता की संबंधों का वनज बता आशीर्वाद बनाये रखने की बात कह दूसरे दरवाजे के लिये मिनट भर में निकल पड़ते हैं.
लेकिन, महिला प्रत्याशी घर में प्रवेश कर सीधे महिलाओं के दिलों में प्रवेश करने का कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. बहरहाल जो भी दूसरे चरण का मतदान का प्रचार थम चुका है. आज से शहरी मतदाता चैन की सांस भी ले रहे होंगे. लेकिन, गांव की सरकार बनाने की जद्दोजहद आज की रात चैन की नींद सोने नहीं देगी.

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