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जमाखोरों का काला धन चुरा ले गया मखाना की सफेदी

किल्लत. नोटबंदी में हुई जमाखोरी, अब मंडी में भी स्टॉक नहीं पूर्णिया : कोसी का इलाका मखाना की खेती के लिए मशहूर है. यहां से देश के अलग-अलग हिस्सों में मखाना का निर्यात होता है. मखाना के क्षेत्र में असीम संभावनाओं को देखते हुए कई व्यापारी इस कारोबार से जुड़े हुए हैं और कोसी के […]

किल्लत. नोटबंदी में हुई जमाखोरी, अब मंडी में भी स्टॉक नहीं

पूर्णिया : कोसी का इलाका मखाना की खेती के लिए मशहूर है. यहां से देश के अलग-अलग हिस्सों में मखाना का निर्यात होता है. मखाना के क्षेत्र में असीम संभावनाओं को देखते हुए कई व्यापारी इस कारोबार से जुड़े हुए हैं और कोसी के मखाना को देश-विदेश के कई हिस्सों में पहुंचाया जाता है. मखाना का रंग सफेद होता है लेकिन कालाधन ने इस सफेदी को चुरा लिया है. सूत्र बताते हैं कि नोटबंदी के समय में कालाधन वालों ने अपने अवैध कमाई का इस्तेमाल मखाना पर किया. इस जमाखोरी के कारण व्यापारियों को भारी नुकसान हो रहा है. यहां तक कि आम लोगों के पहुंच से भी बाहर होते जा रहा है. नोटबंदी के समय में कुछ कालाबाजारियों और जमाखोरों ने पुराने नोटों का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में मखाना खरीद कर स्टॉक कर लिया. अब मंडी में मखाना की भारी किल्लत हो गयी है.
दूसर शहरों में किया गया है मखाना का स्टॉक : पूर्णिया कोसी क्षेत्र का सबसे बड़ा मखाना का उत्पादन और स्टॉक केंद्र माना जाता है. सूत्र के अनुसार जमाखोरों ने खुश्कीबाग, मिलनपाड़ा, गुलाबबाग, सिसोवाड़ी, सपनी, हरदा, फारबिसगंज के कई गोदामों में मखाना जमा करके रखा है. यही नहीं दिल्ली, नोयडा, गाजियाबाद, लखनऊ, कानपुर, बरैली व बनारस जैसे शहरों में भी मखाना भारी पैमाने पर स्टॉक किया है. शहर के खुश्कीबाग, गुलाबबाग, मिलनपाड़ा, हरदा, सिसोबाड़ी में तो मक्का का गोदाम में मखाना को रखा गया है.
मखाना की काली कमाई पर सरकार भी है बेखबर : मखाना के काले कारोबार और जमाखोरों की कमाई से सरकार पूरी तरह बेखबर है. पूर्णिया में इसी महीने 31 प्रतिष्ठानों पर आयकर विभाग का छापा पड़ा. लेकिन विभाग को मखाना के काले कारोबार के ऊपर बिल्कुल ही ध्यान नहीं गया. मखाना का करोड़ों रुपये के अवैध कारोबार के बारे में आयकर विभाग के अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी. विभाग की छापेमारी के बाद अब मखाना के जमाखोरों का नींद उड़ गया है और अपनी काली कमाई मखाना को जल्द सड़क मार्ग से बाहर भेजने की तैयारी में जुट गये हैं. जमाखोरों द्वारा मखाना को मक्का और अनाज के बीच छुपा कर भेजने के तैयारी चल रही है.
पांच सौ रुपये किलो भी नहीं मिल रहा मखाना
नेपाल के व्यापारियों का पुराना नोट पूर्णिया व फारबिसगंज के जमाखोरों ने 25 से 30 प्रतिशत कमीशन पर नोट ले लिया और उस पुराने नोट से सस्ती कीमत पर मखाना खरीद कर स्टॉक कर लिया. नोटबंदी के समय में व्यापारियों से डेढ़ से दो सौ रुपये प्रति किलो की दर से मखाना खरीदा गया था. वही मखाना वर्तमान में पांच सौ रुपये किलो मिलना मुश्किल है. इस तरह से जमाखोरों को तीन तरह से फायदा हुआ. प्रथम तो कालाधन को सफेद करने का सुनहरा मौका मिल गया और काला धन से भारी मात्रा में मखाना खरीद लिया. नोट को बदल कर 25 से 30 प्रतिशत कमीशन जेब में आ गया और नेपाली कारोबारी के रुपये मखाना खरीदने में काफी मदद मिली.

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