पूर्णिया : जिले में गिट्टी और बालू का कारोबार खूब फल-फूल रहा है. जून-जुलाई महीने में जिला पदाधिकारी पंकज कुमार पाल के निर्देश पर अवैध कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई थी तो यह चर्चा का विषय बना रहा था. चर्चा इसलिए हुई थी कि तब जिला खनन पदाधिकारी मतीउर रहमान ने सदर विधायक विजय खेमका के खिलाफ इसी संदर्भ में धमकी देने का आरोप लगाते हुए मुकदमा भी दर्ज कराया था. गिट्टी-बालू कारोबारियों द्वारा धरना प्रदर्शन भी किया गया था.
उसके बाद पुन: जिला प्रशासन के हस्तक्षेप पर मामला समाप्त हुआ था और गिट्टी-बालू डिपो के निबंधन के लिए कार्य योजना भी तैयार की गयी थी. लेकिन छह माह बीतने को हैं और अब तक निबंधित गिट्टी-बालू डिपो की संख्या दहाई में भी नहीं पहुंच पायी है. जाहिर है एक ओर जिले में हजारों की संख्या में डिपो संचालित हो रहे हैं और लाइसेंस प्राप्त करने वालों की संख्या नगण्य है तो सरकारी राजस्व को भी नुकसान हो रहा है.
मिले 98 आवेदन, 06 को लाइसेंस निर्गत. लाइसेंस के लिए मची हायतौबा के बीच कवायद तो आरंभ हुई, लेकिन यह रफ्तार नहीं पकड़ सकी है. मिली जानकारी अनुसार अब तक गिट्टी-बालू के कारोबार से जुड़े केवल 98 कारोबारियों द्वारा आवेदन जमा किया गया है. इसमें से अब तक केवल 06 कारोबारियों को ही लाइसेंस निर्गत किया गया है.
इनमें जलालगढ़ में 01, भवानीपुर में 01, केनगर और पूर्णिया पूर्व में 02-02 लाइसेंस निर्गत किया गया है. लाइसेंस के लिए आवेदन के साथ 05 हजार रुपये आवेदन शुल्क के रूप में जमा करना होता है. लाइसेंस निर्गत होने के बाद प्रतिवर्ष 01 हजार रूपये नवीनीकरण शुल्क के रूप में जमा करना अनिवार्य होगा. आवेदन के साथ डिपो जिस स्थान पर होगा उक्त जमीन से जुड़ा कागजात, डिपो संचालक का पहचान पत्र, पेन कार्ड, वैट प्रमाण पत्र के साथ-साथ शपथ पत्र अनिवार्य होगा.
प्रक्रिया में पेचीदगी बनी है रोड़ा. दरअसल प्रशासनिक स्तर पर लाइसेंस जारी करने के मामले में उदारता तो बरती जा रही है, लेकिन प्रक्रिया की पेचीदगी की वजह से लाइसेंस बनाने की रफ्तार काफी धीमी है. दरअसल लाइसेंस के लिए आवेदन करने के बाद खनन विभाग द्वारा जांच के लिए मामले को सीओ और एसडीएम के पास भेजा जाता है. अंचलाधिकारी को जमीन संबंधी जांच की प्रक्रिया पूरी करनी है. वहीं एसडीएम और एसडीपीओ को संयुक्त रूप से गिट्टी-बालू डिपो का भौतिक निरीक्षण करना है और अंतिम रूप से अनुशंसा करनी है. मामला यहीं आकर फंस जाता है. दरअसल एसडीएम और एसडीपीओ विभागीय कार्यों के अलावा कानून व्यवस्था के संचालन से भी जुड़े हुए हैं. लिहाजा लाइसेंस के मामले में चाह कर भी प्रक्रिया को शीघ्रता के साथ पूरी कराना संभव नहीं हो पाता है.
हो रहा राजस्व का नुकसान व उपभोक्ताओं का शोषण. सूत्रों की मानें तो प्रतिदिन तकरीबन 25 से 30 ट्रक गिट्टी और 30 से 40 ट्रक बालू पाकुड़ व भागलपुर व बांका से जिले में पहुंचता है. जिसे ट्रैक्टर एवं ट्रक से बेचा जाता है. लेकिन हालात यह है कि इन ट्रकों पर आने वाला बालू व गिट्टी उन्हीं लोगों द्वारा खरीद बिक्री किया जाता है, जिनके पास न तो लाइसेंस है और न ही वो किसी तरह का राजस्व सरकार को चुकाते हैं. इस प्रकार सरकार को प्रत्येक दिन लाखों के राजस्व का नुकसान होता है. वहीं दूसरी ओर कारोबारियों द्वारा बालू और गिट्टी की बिक्री में खरीदारों से मनमानी कीमत वसूली जाती है. इसके अलावा सीएफटी के मामले में भी कारोबारियों द्वारा बड़ा खेल खेला जाता है. इस प्रकार एक साथ सरकार व जनता को चूना लगाया जा रहा है.
गत वर्ष भी हुई थी कार्रवाई : इस वर्ष दर्जनों गिट्टी-बालू डिपो के संचालकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराया गया. जबकि गत वर्ष भी इस तरह की कार्रवाई हुई थी. गिट्टी-बालू के कारोबार से जुड़े पांच डिपो संचालकों की लाइसेंस गत वर्ष रद्द की गयी थी. साथ ही खनन विभाग द्वारा इन संचालकों के विरुद्ध गत वर्ष प्राथमिकी भी दर्ज करायी गयी थी. खनन विभाग के अनुसार इन संचालकों द्वारा पंजी का नियमित संधारण नहीं किया जा रहा था. साथ ही गुणवत्ता में भी मानकों की पूर्ति नहीं की जा रही थी. मिली जानकारी अनुसार जिला प्रशासन लाइसेंस के माध्यम से कारोबारियों पर नकेल डालना चाहती है, ताकि सरकारी राजस्व में वृद्धि के साथ-साथ ग्राहकों को भी शोषण का शिकार नहीं होना पड़े.
गिट्टी-बालू कारोबारियों को लाइसेंस निर्गत करने के लिए प्रक्रिया को काफी सरल बनाया गया है. आवेदन मिलने पर प्राथमिकता के आधार पर जांच के लिए संबंधित अधिकारियों को आवेदन भेजा जा रहा है. अब तक 98 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिस पर प्रक्रिया पूरी की जा रही है. बावजूद लाइसेंस प्राप्त नहीं करने पर दिशा-निर्देश के आलोक में संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
मतीउर रहमान, जिला खनन पदाधिकारी, पूर्णिया