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जिले में पांच माह में 388 नवजातों की किलकारी हो गयी गुम

पूर्णिया : स्वास्थ्य विभाग की ओर से बाल मृत्यु दर को रोकने के लिए कई प्रकार की कवायद की जा रही है. लेकिन आंकड़े बतला रहे हैं कि विभाग की बाल मृत्यु दर रोकने की तमाम कवायद बेमानी साबित हो रही है. अभी भी जिले में हर माह लगभग 78 नवजातों की किलकारी गुम हो […]

पूर्णिया : स्वास्थ्य विभाग की ओर से बाल मृत्यु दर को रोकने के लिए कई प्रकार की कवायद की जा रही है. लेकिन आंकड़े बतला रहे हैं कि विभाग की बाल मृत्यु दर रोकने की तमाम कवायद बेमानी साबित हो रही है.

अभी भी जिले में हर माह लगभग 78 नवजातों की किलकारी गुम हो रही है. यह आंकड़ा सदर अस्पताल से लेकर प्रखंडों के अस्पतालों से जुड़ा हुआ है. जिले में पिछले पांच माह में कुल 388 नवजातों की मौत जन्म लेने के बाद हुई. विभाग बाल मृत्यु दर रोकने के लिए कई योजनाएं भी चला रही है. इसके बावजूद यह रुकने का नाम नहीं ले रहा है. इसके पीछे कई कारण भी गिनाये जा रहे हैं.ऐसा माना जा रहा है कि बाल मृत्यु दर रोकने के लिए अभी और प्रयास की जरूरत है.
संस्थागत प्रसव में भी हैं अड़चनें : संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 102 एंबुलेंस सेवा जारी है. लेकिन अधिकांश एंबुलेंस जिला स्वास्थ्य समिति में पड़े-पड़े जंग खा रहा है.एंबुलेंस सेवा बाधित रहने का सर्वाधिक लाभ प्रसव कराने से जुड़ा तंत्र उठाता है] जिससे असंस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिलता है. अनाधिकृत एवं असुरक्षित स्थानों में प्रसव कराने से बाल मृत्यु दर बुरी तरह से प्रभावित होता है. जब तक संस्थागत प्रसव को बढ़ावा नहीं दिया जायेगा, तब तक बाल मृत्यु दर पर अंकुश लगाना आसान नहीं है.
इन प्रखंडों में सर्वाधिक मौत 70 % युवतियों की शादी कम उम्र में ही
जिले में सदर अस्पताल एवं पूर्णिया पूर्व प्रखंड को छोड़ दिया जाये तो सबसे गंभीर स्थिति अमौर, धमदाहा, बायसी, बैसा, रुपौली आदि प्रखंडों की है. इन प्रखंडों में बाल मृत्यु के कई कारण मौजूद हैं. इन प्रखंडों में अधिकांश इलाका पिछड़ेपन की जद में है. यही कारण है कि यहां लगभग 70 प्रतिशत लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. नतीजतन गर्भवती को उचित पोषण नहीं मिलने के कारण बाल मृत्यु दर अधिक है. विभाग को इन पिछड़े इलाके को फोकस में रख कर बाल मृत्यु दर रोकने का प्रयास करना चाहिए.
जहां से शुरू होती है प्लानिंग, वहीं पर खत्म
बाल मृत्यु दर रोकने के लिए प्लानिंग अधिकांशत: किसी बड़े होटल या बंद कमरे में होती है. जहां चंद लोग भाषण देते हैं और कुछ लोग ही सुनते हैं. ऐसे आयोजन में लाखों रूपये खर्च भी होते हैं, लेकिन इन सेमिनार और बैठक का कोई मतलब निकल कर नहीं आता है. ऐसे सेमिनार और बैठक जमीनी हकीकत से दूर होते हैं. यही कारण है कि हर माह 78 नवजातों की किलकारी गुम होती जा रही है. पहल यह होना चाहिए कि फाइव स्टार होटलों के वातानूकिलत आवो हवा से बाहर निकल कर पिछड़े प्रखंड अमौर,बैसा,बायसी ,रुपौली में ऐसे आयोजन करने चाहिए. ऐसा करने से ही बाल मृत्यु दर में भी कमी आ सकती है.
िजले में शिशु मृत्यु का बढ़ता आंकड़ा
प्रखंड मृत्यु
पूर्णिया 76
अमौर 73
धमदाहा 33
बायसी 31
बैसा 31
कसबा 09
केनगर 09
बनमनखी 14
बी कोठी 15
भवानीपुर 04
रुपौली 34
डगरुआ 23
श्रीनगर 27
जलालगढ़ 09
कुल 388
बाल मृत्यु दर रोकने के लिए जिले में कई कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. इस पर अंकुश लगाने के लिए विभाग संवेदनशील है.
डॉ एम एम वसीम, सीएस, पूर्णिया

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