जलजमाव. . बारिश के बाद नरक में बदल जाता है अंतरराष्ट्रीय कृषि मंडी
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गुलाबबाग मंडी की बिगड़ी सूरत
जलजमाव. . बारिश के बाद नरक में बदल जाता है अंतरराष्ट्रीय कृषि मंडी कहीं सड़ रहा बारिश का पानी तो कहीं बजबजाता कीचड़, कूड़े के ढेर पर भिनभिनाती मक्खियां और मच्छरों का प्रकोप, इन सबके बीच रोजगार की विवशता, यह है अंतरराष्ट्रीय कृषि मंडी गुलाबबाग की पहचान जहां हर रोज करोड़ों का बाजार सजता है. […]
कहीं सड़ रहा बारिश का पानी तो कहीं बजबजाता कीचड़, कूड़े के ढेर पर भिनभिनाती मक्खियां और मच्छरों का प्रकोप, इन सबके बीच रोजगार की विवशता, यह है अंतरराष्ट्रीय कृषि मंडी गुलाबबाग की पहचान जहां हर रोज करोड़ों का बाजार सजता है. हर साल बारिश के बाद गुलाबबाग मंडी की हालत नारकीय हो जाती है, फिर भी प्रशासन उदासीन है.
पूर्णिया : हजारों व्यापारी, किसान व मजदूर इस नारकीय स्थिति के बीच हर रोज अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं. विडंबना तो यह है कि वर्ष 2006 के बाद से अब तक इस मंडी के जीर्णोद्धार के लिए कोई कवायद नहीं हुई. यह अलग बात है कि किसान और व्यापारियों को मंडी की सूरत संवारने के सपने प्रशासनिक अधिकारियों ने दिखाये तो राजनेता भी इस लिहाज से कम नहीं रहे. ऐसा नहीं है कि मंडी की बिगड़ती स्थिति को लेकर कोई अनभिज्ञ है. वर्ष 2013 में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह ने तत्कालीन डीएम मनीष कुमार वर्मा के 116 करोड़ के बजट पर बैठक में मुहर लगायी थी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को व्यवसायी महासंघ ने आवेदन सौंपा था लेकिन पहल तो दूर मंडी की बिगड़ती स्थिति को संभालने के दिशा में भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकी. आज हालात यह है कि हर एक बारिश के बाद मंडी की स्थिति नारकीय हो जाती है. व्यापारी, व्यवसायी और मजदूरों के साथ किसान लाचार व विवश है.
तीन महीने बाद भी नहीं बनी सड़क : कृषि मंडी में विभागीय पहल का आलम तो यह है कि पिछले फरवरी माह में स्थानीय सांसद और नोडल पदाधिकारी के साथ व्यवसायियों की बैठक में मुख्य सड़क निर्माण की घोषणा हुई थी. इस सड़क निर्माण के लिए प्रोजेक्ट बना और अप्रैल महीने में 1,65,32,081 की राशि भी आवंटित होने की घोषणा हुई. लेकिन तीन महीना बीतने के बाद भी न तो सड़क का निर्माण शुरू हुआ और न ही इस दिशा में कोई उम्मीद दिखायी दे रही है. जाहिर है कि अब जब बारिश दस्तक दे चुकी है, सड़क निर्माण पर भी ग्रहण लग चुका है.
2006 के बाद से मंडी के जीर्णोद्धार के लिए नहीं हुई कोई पहल
अब 18 करोड़ की हुई है घोषणा
पिछले दिनों जिला पदाधिकारी पंकज कुमार पाल ने मंडी समिति की सुधि ली थी. लगातार दो तीन दिनों तक सर्वे के बाद बताया जा रहा है कि 18 करोड़ की लागत से मंडी की चाहरदीवारी, नाला, गेट इत्यादि को सुव्यवस्थित करने की योजना बनी थी. दरअसल वर्ष 2012 से ही मंडी की कुव्यवस्था को लेकर आवाज उठने लगी थी. मंडी के व्यवसायी गोलबंद हुए और महासंघ का निर्माण हुआ. उस समय व्यवसायियों ने खुद के पैसे से सड़क का निर्माण कराया था. उस समय तत्कालीन डीएम ने 116 करोड़ का मॉडल प्रोजेक्ट तैयार किया था. मुख्यमंत्री से लेकर कृषि मंत्री एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी आश्वासन दिया था लेकिन तमाम आश्वासन महज सपने बन कर रह गये.
मंडी की है नारकीय स्थिति
मंडी समिति की स्थिति यह है कि संपूर्ण 68 एकड़ का इलाका जल जमाव व कीचड़ से पटा पड़ा है. सड़कें टूटी है और गड्ढों में जमा कीचड़ से गाड़ियों के गुजरने के बाद निकलता बदबू लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है. वहीं मंडी में पैदल चलना भी मुश्किल है. जगह-जगह जमा पानी झील सा दृश्य उत्पन्न कर रहा है. कीचड़ों से निकलते सड़ांध और बजबजाती कूड़ों के ढेर से निकलते मच्छरों के कारण मंडी की स्थिति नारकीय बनी हुई है.
हर बरसात में होती है समस्या
अफसोस की बात यह है कि बीते चार पांच सालों से मंडी की स्थिति बद से बदतर बनी हुई है. हर वर्ष बरसात में बारिश के पानी से जल जमाव की समस्या उत्पन्न होती है. लेकिन कुव्यवस्था के कारण हर वर्ष मर्ज बढ़ता चला जा रहा है. दरअसल सबों को पता है कि यहां जल निकासी की व्यवस्था नहीं है. बावजूद पूर्व से समस्या के निदान के लिए कोई कवायद नहीं की गयी. इस वजह से कारोबारियों में निराशा व्याप्त है.
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