जिले में इस वर्ष अब तक िमले हैं टीबी के 2231 मरी
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सावधान! हर दिन टीबी के िशकार बन रहे छह लोग
जिले में इस वर्ष अब तक िमले हैं टीबी के 2231 मरी पूर्णिया : जिले में डॉट्स कार्यक्रम चलाने के बावजूद टीबी के मरीजों की संख्या थमती नजर नहीं आ रही है. पूरे जिले में इस वर्ष कुल 2231 टीबी के मरीज मिले हैं. मरीजों की बढ़ती संख्या को ले कर पूरे स्वास्थ्य महकमे की […]
पूर्णिया : जिले में डॉट्स कार्यक्रम चलाने के बावजूद टीबी के मरीजों की संख्या थमती नजर नहीं आ रही है. पूरे जिले में इस वर्ष कुल 2231 टीबी के मरीज मिले हैं. मरीजों की बढ़ती संख्या को ले कर पूरे स्वास्थ्य महकमे की नींद हराम हो गयी है. विभागीय आंकड़ों के इतर भी टीबी मरीजों की संख्या कई गुणा अधिक है.
टीबी की रोकथाम की दिशा में तुरंत प्रभावी कदम नहीं उठाये गये, तो आने वाले समय में इन मरीजों से दस गुणा अधिक लोग टीबी से संक्रमित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
ऐसे होता है टीबी
टीबी अर्थात ट्यूबरक्लोसिस अर्थात यक्ष्मा बैक्टिरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु की वजह से होता है. यह जीवाणु मानव के फेफड़े और गले पर असर करता है. इसे राजयक्ष्मा यानि रोगों के राजा के नाम से भी जाना जाता है. यह रोग किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है. इस रोग की भयावहता इसी से आंकी जा सकती है कि भारत में प्रति डेढ़ मिनट एक व्यक्ति की मौत टीबी के कारण हो रही है. पूरे विश्व में प्रति तीन व्यक्ति पर एक व्यक्ति टीबी रोगी है और हर साल 30 लाख लोगों की मौत टीबी के कारण हो रही है.
रोगियों के लिए लगी जीन एक्सपर्ट मशीन
सदर अस्पताल में 25 लाख की लागत से जीन एक्सपर्ट मशीन लगायी गयी है. इस मशीन से एमडीआर मरीज की पहचान हो सकेगी. एमडीआर रोगी उस मरीज को कहा जाता है,जो टीबी का आधा-अधूरा इलाज करा कर दवा को छोड़ देते हैं. इससे टीबी और भी भयावह रूप धारण कर लेता है. वैसे रोगियों की पहचान के लिए इस मशीन को सदर अस्पताल में लगाया गया है. इस मशीन से अब तक 30 संभावित एमडीआर मरीजों की जांच की गयी,जिसमें दो एमडीआर पाये गये. इस एमडीआर (मल्टी ड्रग्स रेसिस्टेंट) मशीन से महज ढाई घंटे में टीबी की रिपोर्ट संभव हो जाती है. इस मशीन से बाहर में जांच कराने पर खर्च लगभग आठ हजार रुपये आता है. किंतु टीबी विभाग इस मशीन से नि:शुल्क जांच कर रही है.
बायसी, अमौर, रौटा, डगरुआ व बीकोठी में मरीजों की संख्या ज्यादा
जिले के विभिन्न इलाके में टीबी रोजाना आधा दर्जन लोगों को अपना शिकार बना रहा है. टीबी उन इलाके के लोगों को अपना शिकार बनाता हैं, जहां का रहन सहन व जीवन स्तर निम्न से निम्नतम होता है. जिले के बायसी, अमौर , रौटा, डगरुआ एवं बी कोठी इलाके के लोग इस परिस्थिति में जी रहे हैं.
लिहाजा यहां टीबी के मरीजों की संख्या भी अधिक है. विशेषज्ञों के अनुसार इन इलाके के लोगों का निम्नतम जीवन स्तर रहने के कारण प्रतिरोधक क्षमता भी निम्न स्तर का होता है. जिससे टीबी आसानी से इन्हें अपना शिकार बना लेती है. यही कारण है कि इसके जीवाणु एचआइवी, एड्स एवं मधुमेह रोगियों को अपना शिकार आसानी से बनाते हैं.
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