वर्ष 2015: बदल गया इनसान, नहीं रहे सुरक्षित भगवान पूर्णिया. केस स्टडी 01गुलाबबाग के 350 वर्ष प्राचीन जैन समाज के पारसनाथ मंदिर से चोरों ने 24 जुलाई की रात करोड़ों रुपये मूल्य के अष्टधातु की मूर्तियां चोरी कर ली. चोरों ने मंदिर के मुख्य द्वार का ताला काट कर घटना को अंजाम दिया. इस घटना में माता पदमावती के अष्टधातु की मूर्ति, अष्टधातु के पंच कल्याण सिद्धि यंत्र के अलावा चार अष्ट धातु के कलश व जैन समाज के अधिष्ठदायक भैरव जी महराज की मुकुट व चांदी की छतरी चोरों ने चुरा ली. साथ ही भगवान महावीर और शांतिनाथ भगवान के चांदी का मुकुट भी चोर उड़ा ले गया. चुराये गये सामानों की कीमत विश्व बाजार में करोड़ों रुपये आंकी जा रही है. तब घटना से मर्माहत जैन समाज ने पुलिस के वरीय अधिकारी के समक्ष भी मूर्ति बरामदगी की गुहार लगायी थी. लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई. केस स्टडी 02धमदाहा मध्य पंचायत के ठाकुरबाड़ी टोला स्थित रामजानकी मंदिर में 01 दिसंबर की रात चोरी हुई. चोरों ने राम, लक्ष्मण और सीता की अष्टधातु की मूर्ति की चोरी की. विडंबना यह है कि आज तक इस मामले में पुलिसिया कार्रवाई सिफर ही रही है. खास बात यह है कि इस मंदिर में वर्ष 1986 में सीता, राम-लक्ष्मण और हनुमान की मूर्ति की चोरी हुई थी. उसके बाद वर्ष 2009 में भी चोरी हुई थी. लेकिन बीते घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया गया जिसका नतीजा तीसरी चोरी के रूप में सामने आया. चोरी गयी मूर्ति की कीमत बाजार में लगभग 01 करोड़ रुपया आंकी जाती है. इस मूर्ति की खरीद वर्ष 1938 में हुई थी और उस वक्त इसकी लागत 11.30 लाख आयी थी. केस स्टडी 03जलालगढ़ थाना क्षेत्र के सीमा काली मंदिर में 03 दिसंबर की रात चोरों ने दुस्साहस का परिचय देते हुए दान पेटी ही उठा ले गया. मंदिर सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दानपेटी में लगभग 50 हजार रुपये थे. यह मंदिर एनएच 57 से एक दम सटा हुआ है. चोरी के बाद एफआईआर दर्ज हुआ लेकिन इस मामले में आज तक चोरों की शिनाख्त नहीं हो पायी. इतना जरूर हुआ कि लोगों की सुरक्षा करने वाले भगवान की सुरक्षा में पुलिस ने एक चौकीदार को प्रतिनियुक्त कर दिया. जारी रही मूर्ति चोरी की घटनाएं कहते हैं कि इतिहास खुद को इसलिए दोहराता है कि हम इतिहास से सबक नहीं लेते हैं. मूर्ति चोरी से जुड़ी घटनाओं के मामले में भी कुछ ऐसा ही नजर आता है. मंदिरों में मूर्ति के सुरक्षा के प्रति ना तो मंदिर की प्रबंधन कमेटी गंभीर रही है और ना ही पुलिस के स्तर पर इस दिशा में कभी भी मुकम्मल कोशिश की गयी. पुलिस तो इस हद तक बेपरवाह है कि चोरी की घटना के बाद चोरों की धर-पकड़ की जरूरत भी महसूस नहीं करती है. वजह शायद यह हो सकती है कि भगवान शिकवा-शिकायत नहीं करते हैं और एसपी साहब के जनता दरबार में आवेदन लेकर नहीं जा सकते. इनसान की नीयत बदल चुकी है और भगवान असुरक्षित हैं, लिहाजा मूर्ति चोरी की घटनाएं भी जारी है. आंकड़ों पर गौर करे तो वर्ष 2008 में मूर्ति चोरी की सबसे अधिक घटनाएं हुई थी. वर्ष 2009 में जिला मुख्यालय के फोर्ड कंपनी चौक पर 11 मूर्ति चोरों की गिरफ्तारी हुई थी और पूर्णिया से कोलकाता ले जा रही मूर्तियां भी जब्त की गयी थी. गिरफ्तारी के बाद कुछ दिनों तक चोरी का सिलसिला थमता नजर आया था लेकिन वह साबुन का बुलबुला ही साबित हुआ. अंतरिक्ष कार्यक्रम में होता है उपयोग चोरी उन्हीं मूर्तियों की होती है जो बेशकीमती माने जाते हैं. दरअसल वही मूर्ति बेशकीमती होता है जिसमें ‘इट्रियम’ नामक मेटेरियल मौजूद होता है. इट्रियम का उपयोग अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों में होता है. इट्रियम मूर्ति में है या नहीं यह लेबोरेटरी में तय होता है. इट्रियम होने पर मूर्ति की मुंह मांगी कीमत दी जाती है. मूर्ति को तोड़ कर उसमें से इट्रियम को निकाला जाता है. चूंकि विदेशों में इसकी अधिक डिमांड होती है इसलिए चोरी गयी मूर्तियों का भाया नेपाल या कोलकाता अंतिम पड़ाव विदेश ही होता है. चोरी से पहले होती है मूर्ति की जांच जानकारों की माने तो मूर्ति चोरी से पहले उसकी रेकी होती है. रेकी के क्रम में मोबाइल के जरिये तसवीर ली जाती है. जिसके बाद आका तय करते हैं कि मूर्ति चोरी लायक है या नहीं है. कई बार स्थानीय स्तर पर चोर मूर्ति की चोरी से पहले जांच कर निश्चिंत हो जाते हैं. जांच के चार तरीके हैं जिसमें तीन तरीका स्थानीय है. पहले तरीका को राइस पुलिंग सिस्टम(आरपी) कहते हैं. जो मूर्तियां बेशकीमती होती है उनमें चावल को आकर्षित करने की क्षमता होती है. ऐसी मूर्मियों के सामने जब चावल ले जाया जाता है तो वह आकर्षित होकर मूर्ति से चिपक जाती है. मूर्ति जितनी अधिक दूर से जितना जल्दी चावल को आकर्षित करता है उसकी कीमत उतनी ही अधिक आंकी जाती है. दूसरा तरीका यह है कि कीमती मूर्तियों के ऊपर पानी डाला जाय तो पानी सतह से नहीं गिर कर मूर्ति के किनारे से गिरती है. तीसरा तरीका यह है कि अगर कीमती मूर्ति के पास जलता हुआ टार्च ले जाया जाय तो टार्च का बल्ब फ्यूज कर जाता है. लैब में लगती है अंतिम मुहरम्ाूर्ति बेशकीमती है और उसमें इट्रियम है कि नहीं, इसका अंतिम फैसला प्रयोगशाला में तय होता है. मूर्ति की कीमत और क्वालिटी जांचने के लैब कोलकाता और हैदराबाद में अवस्थित हैं, जो सरकारी प्रयोगशाला है. मूर्ति तस्कर जांच के लिए सीधे प्रयोगशाला में नहीं पहुंचते हैं. बल्कि पुरातात्विक कारोबार से जुड़े लाइसेंस धारियों के माध्यम से मूर्ति के सैंपल को प्रयोगशाला तक भेजा जाता है. लैब रिपोर्ट के बाद ही मूर्ति की कीमत अंतिम रूप से तय होती है. सुपौल जिला के वीरपुर में 08 जून 2013 को पांच मूर्ति तस्करों की जो गिरफ्तारी हुई थी उनके पास से हैदराबाद लैब की जांच रिपोर्ट भी बरामद हुआ था. स्पष्ट है कि मूर्ति तस्करी से जुड़े मामलों का हाई प्रोफाइल व अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन होता है. हालिया वर्षों में मूर्ति चोरी की मुख्य घटनाएं वर्ष 2010 – शहर के आरएन साह चौक स्थित मंदिर से सोने की मूर्ति. वर्ष 2011 -केनगर प्रखंड के सोंसा से अष्टधातु की मूर्ति. केनगर प्रखंड के चंपानगर से अष्टधातु की मूर्ति.मधुबनी, पूर्णिया मंदिर से अष्टधातु की मूर्ति.वर्ष 2012 -बनमनखी प्रखंड के सरसी से 13 अष्टधातु की मूर्ति.वर्ष 2013 -रामपुर तिलक बीकोठी ठाकुरबाड़ी से अष्टधातु की मूर्ति.वर्ष 2014 -औराही में ठाकुरबाड़ी से अष्टधातु की मूर्ति.फोटो: 29 पूर्णिया 1परिचय: गुलाबबाग स्थित पारसनाथ मंदिर जहां हुई थी चोरी
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वर्ष 2015: बदल गया इनसान, नहीं रहे सुरक्षित भगवान
वर्ष 2015: बदल गया इनसान, नहीं रहे सुरक्षित भगवान पूर्णिया. केस स्टडी 01गुलाबबाग के 350 वर्ष प्राचीन जैन समाज के पारसनाथ मंदिर से चोरों ने 24 जुलाई की रात करोड़ों रुपये मूल्य के अष्टधातु की मूर्तियां चोरी कर ली. चोरों ने मंदिर के मुख्य द्वार का ताला काट कर घटना को अंजाम दिया. इस घटना […]
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