सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है पोड़ा मजार जलालगढ़. प्रखंड क्षेत्र के पूर्वी छोर पर स्थित पोड़ा मजार सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना हुआ है. प्रखंड मुख्यालय से करीब नौ किमी पूरब में रामदैली पंचायत के पोड़ा गांव में हजरत शाह सुजात अली का मजार है. जहां प्रत्येक वर्ष बंगाल कैलेंडर के पूस मास के दसवीं को मेला लगती है, जो एक सप्ताह तक चलता है. करीब सवा सौ साल से लोग यहां मजार पर चादर चढ़ाते रहे हैं. इस वर्ष 24 दिसंबर को इस मेले की शुरुआत हुई है. जनश्रुति के आधार पर बाबा दाता हजरत शाह सुजात अली की दैहिक लीला इसी स्थान पर जहां आज मजार है, पर समाप्त हुई थी. चर्चा अनुसार लगभग ढेढ़ सौ वर्ष पहले हजरत शाह सुजात अजमेर सूफी संत से शिक्षा प्राप्त कर खुदा का सन्देश घर-घर पहुंचाने के लिये सर्वप्रथम कटिहार के बेनी रसुलपुर चिल्लाखाना आये. फिर वह अपने गृहनगर गढ़बनैली स्थित तकठकिया गौड़ी एवं रामदैली के एक निर्जन स्थान पोड़ा में रहने लगे. स्थानीय मजार के पास मजारी मोहिब मो हारून(79) ने बताया कि मजार पर आकर मन्नत मांगने वाले किसी भी धर्म के लोगों को निराशा नहीं मिलती है, जिसके बाद श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुरूप मजार पर चादर चढ़ाते हैं. रामदैली के पूर्व मुखिया मो ग्यासुद्दीन बताते हैं कि बाबा सुजात अली का यह निर्वाण स्थल है. उनकी करिश्माई ताकत को लोग आज भी याद करते हैं. यहाँ बंगाल प्रांत व नेपाल के भी श्रद्धालु चादर चढ़ाने मजार पर आते हैं. लेकिन विडंबना यह है कि यह मजार इतिहास के पन्नों से आज भी दूर है. फोटो:- 26 पूर्णिया 05 एवं 06परिचय:- 05- पोड़ा का मजार 06- मेला में उपस्थित लोग
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सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है पोड़ा मजार
सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है पोड़ा मजार जलालगढ़. प्रखंड क्षेत्र के पूर्वी छोर पर स्थित पोड़ा मजार सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना हुआ है. प्रखंड मुख्यालय से करीब नौ किमी पूरब में रामदैली पंचायत के पोड़ा गांव में हजरत शाह सुजात अली का मजार है. जहां प्रत्येक वर्ष बंगाल कैलेंडर के पूस मास के दसवीं […]
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