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वश्वि भर के वैज्ञानिक कर रहे मखाना खेती पर शोध : इंदू शेखर

विश्व भर के वैज्ञानिक कर रहे मखाना खेती पर शोध : इंदू शेखर पूर्णिया. खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विश्व भर के वैज्ञानिक नई वनस्पतियों की खोज में लगे हुए हैं, जिसमें अपने उत्तम गुणवत्ता वाले प्रोटीन एवं स्टार्च के कारण मखाना भी शामिल है. मखाना एक उत्तम खाद्य है एवं […]

विश्व भर के वैज्ञानिक कर रहे मखाना खेती पर शोध : इंदू शेखर पूर्णिया. खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विश्व भर के वैज्ञानिक नई वनस्पतियों की खोज में लगे हुए हैं, जिसमें अपने उत्तम गुणवत्ता वाले प्रोटीन एवं स्टार्च के कारण मखाना भी शामिल है. मखाना एक उत्तम खाद्य है एवं कई रोगों में गुणकारी होने के कारण इसे औषधीय श्रेणी में भी रखा जा सकता है. मोटापाग्रस्त लोगों के लिए फायदेफंद है बल्कि इसे यूनानी एवं अन्य देशों में देशज चिकित्सा पद्धति में स्थान मिला है. उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र के स्थिर पानी वाले हजारों जलाशयों में उपजने वाला मखाना एक ऐसी जल वनस्पति है, जिसके खाद्य एवं औषधीय गुणों पर भारत सहित जापान, चीन, कोरिया जैसे देशों में वृहत शोध जारी है. उक्त बातें भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में आयोजित किसान प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए मृदा वैज्ञानिक मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा डा इंदू शेखर सिंह ने कही. उन्होंने कहा कि मखाना को देश के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है बल्कि इसका प्रयोग भी कई तरीकों से किया जाता है. पश्चिम से पूरब तक है मखाने की खेती डा इंदू शेखर ने कहा कि भारत में मखाने की प्राकृतिक आबादी पश्चिमी हिमालय स्थित कश्मीर की शीतकटिबंधीय झीलों से लेकर पूवार्ेत्तर हिमालय में मणिपुर की सोकतक झीलों तक फैली हुई है. कश्मीर के होकरसर डल एवं मनसावल आदि झीलों में पाये जाने वाले मखाने को जुवार के नाम से जाना जाता है वहीं पूर्वोत्तर पूर्व के असम के के जलाशयों एवं मणीपुर के झीलों में पाये जाने वाले मखाने को थांगजिंग कहा जाता है. मखाने के साथ पत्तियों की बनती है सब्जी डा सिंह किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि मणिपुर में मखाना के विभिन्न भागों को भी बाजारों में बेचा जाता है. उन्होंने बताया कि मणिपुर के मइतइ आदिवासी समाज मखाने के विभिन्न भागों जैसे कोमल प्रारंभिक पत्तियों, अर्ध विकसित फल, विकसित फल का सब्जी, सलाद व चटनी एवं रसदार सब्जी के रूप में भी प्रयोग करते हैं. जब कि हमारे यहां बिहार में तथा देश के अन्य भागों में मखाना के लावे का प्रयोग केवल किया जाता है.मणिपुर के तर्ज पर हो व्यवहार, बढ़ेगी आमदनी प्रशिक्षण शिविर में मखाना अनुसंधान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डा ए के ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार में मखाना किसान अक्सर मखाना के पौधों को वंछित समझ कर फेंक देते हैं. बल्कि खेती के समय इतना सघन खेती करते हैं कि इसे विकसित होने के लिए पौधों को बाहर निकलना पड़ता है. उन्होंने कहा कि मखाना की खेती को बेहतर व लाभदायी बनाने के लिए वैज्ञानिक विधि अपनाने की जरूरत है इतना ही नहीं अगर किसान मणिपुर के तर्ज पर मखाना की खेती करे तथा उसे विभिन्न भागों को प्रयोग में लाये तो किसानों के लिए मखाना की खेती और लाभदायी साबित होगा.कई देश दवा में होता प्रयोग उन्होंने कहा कि विश्व के कई देशों में मखाना दवा के रूप में प्रयोगात्मक है. चीन में मखाना बीज के अर्क से कान दर्द निवारण की चर्चा है तथा पायोडर्मा, हर्निया एवं स्त्रियों में स्वेत प्रदर में इसे गुणकारी माना गया है. मखाना के पत्ते के भस्म को किण्वित चावल के संग प्रयोग कर स्त्रियों के प्रसव बाधा दूर की जाती है. बल्कि चीन के बेरी बेरी रोग में भी मखाना का प्रयोग कर इसका इलाज किया जाता है. उन्होंने कहा कि मखाना पर विश्व भर में विभिन्न शोध जारी है. आने वाला समय मखाना किसानों के बेहतर भविष्य के लिए जाना जायेगा. फोटो: 17 पूर्णिया 5परिचय- किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित कृषि वैज्ञानिक एवं अन्य

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