27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मधुमक्खी पालन: कम लागत में अधिक मुनाफे का व्यवसाय

मधुमक्खी पालन: कम लागत में अधिक मुनाफे का व्यवसाय केनगर. खेती के साथ मधुमक्खी पालन व्यवसाय को शुरू कर किसान कम लागत में लाखों की कमाई कर अपनी आर्थिक स्थिति को उन्नत बना सकते हैं. आधुनिक खेती में बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं सिंचाई प्रबंध में बढ़ी महंगाई तथा उत्पादित फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में […]

मधुमक्खी पालन: कम लागत में अधिक मुनाफे का व्यवसाय केनगर. खेती के साथ मधुमक्खी पालन व्यवसाय को शुरू कर किसान कम लागत में लाखों की कमाई कर अपनी आर्थिक स्थिति को उन्नत बना सकते हैं. आधुनिक खेती में बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं सिंचाई प्रबंध में बढ़ी महंगाई तथा उत्पादित फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में आयी गिरावट के कारण खेती से विमुख हो रहे किसानों के लिए मधुमक्खी पालन रोजगार काफी मददगार साबित हो सकता है. वर्तमान समय में यह व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है. सीमांचल के इलाके में हाल के दिनों में मधुमक्खी पालन का व्यवसाय तेजी से बढ़ा है. इसकी वजह यह है कि कम लागत से भी यह व्यवसाय प्रारंभ किया जा सकता है और प्रतिवर्ष 03 से 04 लाख रुपये की कमाई आसानी से की जा सकती है. मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण एक हफ्ता से नौ महीने की अवधि का होता है. विज्ञान विषय स्नातक व्यक्ति डिप्लोमा एवं डिग्री कोर्स का प्रशिक्षण ले सकते हैं. वहीं दिलचस्पी रखने वाले कम पढ़े लिखे लोग भी प्रशिक्षण के बाद व्यवसाय शुरू कर शुद्ध उत्पादन से अच्छी कमाई कर सकते हैं. खास बात यह है कि किसान इसे अपने खेतों में भी कर सकते हैं. पालने योग्य प्रजाति जलालगढ़ कृषि विज्ञान केंद्र की कीट वैज्ञानिक डा सीमा कुमारी ने बताया कि शहद उत्पादन हेतु मुख्य रूप से एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला एवं एपिस फ्लोरिया प्रजाति की मधुमक्खियां पाली जाती है. एपिस मेलीफेरा शांत स्वभाव की तथा अधिक शहद उत्पादन करने वाली मक्खियां हैं. इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता अधिक होती है. ये मक्खियां वर्ष में 50 से 60 किलोग्राम शहद बनाती है. इसे साफ-सुथरी जगह में पाला जाता है और बड़े, चींटे, चींटी, मोम पतंगे, चूहे एवं छिपकली आदि से पूरी तरह सुरक्षा करनी पड़ती है. जरूरी उपकरण व वातावरण मधुमक्खी पालन के लिए (मौनगृह) लकड़ी का बक्सा, पानी की कटोरी, बॉक्स फ्रेम, बक्से के मुंह पर ढकने वाला जालीदार कवर, दस्ताना, चाकू, भागछूट थैला, शहद रिमूविंग मशीन और शहद इकट्ठा करने वाला ड्रम आदि की खरीद करनी पड़ती है. प्रति बॉक्स मधुमक्खी पालन पर करीब चार हजार रुपये का खर्च होता है. जिस इलाके में आम, अमरूद, गुलमोहर, यूकेलिप्टस, नीबू, आंवला, पपीपा के पौधे अधिक लगे हो तथा सूर्यमुखी, सरसों, मिर्च आदि सब्जी की जहां अधिक पैदावार होती है. वहां मधुमक्खी का पालन अधिक फायदेमंद है. इससे उत्पादन में काफी वृद्धि हो जाती है. साथ ही क्षेत्र के किसानों को फसलों का पैदावार भी अधिक मिलता है. मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण के बाद इस व्यवसाय के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों से दो से पांच लाख तक ऋण मिल जाता है. तीन तरह की होती है मधुमक्खी प्रत्येक बॉक्सा में लगे छत्ते में लंबे उदर वाली सुनहले रंग की एक रानी मक्खी होती है. जो हर रोज ढाई से तीन हजार अंडे देती है. इनके गर्भित अंडे से मादा तथा अगर्भित अंडे से नर मधुमक्खी का जन्म होता है. रानी मक्खी की औसत उम्र तीन वर्ष की होती है. नर मधुमक्खी काले उदर वाले गोल आकार के तथा बिना डंक के होते हैं. ये रानी मक्खी से प्रजनन के बाद मर जाते हैं. रानी मक्खी प्रजनन के तीन दिन बाद अंडे देने लगती है. मादा मधुमक्खी छत्ते के श्रमिक मक्खी कोष से निकलने के तीसरे दिन से कार्य करना आरंभ कर देती है. इसके मुख्य कार्यों में शामिल है भोजन के स्रोत की खोज करना, पुष्प रस को मधु में बदलना एवं संचित करना, छत्ता बनाना, मोम बनाना, रॉयल जेली स्रावित करना, छत्ते की सफाई करना,छत्ते का तापक्रम बनाये रखना, प्रवेश द्वार पर पहरा देना इत्यादि सभी संचालन कार्यों की जिम्मेवारी इन्हीं की होती है. इनका जीवन 40 से 45 दिन का होता है.शहद का निष्कासन मधुखंड के चौखट में 75 से 80 प्रतिशत शहद जमा होने पर इन चौखटों से सभी मक्खियों को हटा कर मधु खंड में डाल दिया जाता है. फिर तेज चाकू या गर्म पानी का प्रयोग कर छत्ते से मोम परत हटाया जाता है और शहद निष्कासन यंत्र के जरिये मधु निकाल लिया जाता है. इस क्रिया में छत्ते सुरक्षित रह जाते हैं. इसमें पुन: मधुमक्खियों को डाल दिया जाता है. एक छत्ते से करीब 25 किलो शहद मिलता है. निकाले गये शहद को एक टंकी में करीब 50 घंटे रखा जाता है. जिससे मोम आदि शहद की ऊपरी सतह में आ जाता है और बारीक कपड़े से शहद को छान कर बोतलों में भर कर बाजारों में बेचा जाता है. डाबर एवं बैद्यनाथ आदि आयुर्वेदिक कंपनियां अच्छी कीमत पर शहद की खरीद करते हैं. वहीं कुछ शहद उत्पादक अपना उत्पाद स्वयं बाजारों में बेच कर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. फोटो:- 13 पूर्णिया 34 एवं 35परिचय:- 34- मधुमक्खी का छत्ता 35- मधुमक्खी पालन का बक्सा ———————–मधुमक्खी पालन के लिए दूसरे प्रदेश से आते हैं कारोबारी बायसीत्रठंड के मौसम में जब खेतों में सरसों के फूल लहलहाते हैं तो पड़ोसी राज्य बंगाल से मधुमक्खी पालन से जुड़े कारोबारी पूरे अमले के साथ इस इलाके में आकर मधुमक्खी पालन में जुट जाते हैं. अनुमंडल क्षेत्र में सैकड़ों जगह पर मधुमक्खी व्यवसायियों को देखा जा सकता है. जब सरसों के फूल समाप्त हो जायेंगे तो ये व्यवसायी फिर पूरे साजो-सामान के साथ दूसरे जगह के लिए प्रस्थान कर जायेंगे. प्रखंड के बनगामा पंचायत में पश्चिम बंगाल से आये मो नुरूद्दीन, मो जाकिर हुसैन, मो मोहसिन और शफीक ने बताया कि उनके पास मधुमक्खी का 200 डिब्बा है. एक डिब्बा से सप्ताह में एक बार 2 से 3 किलोग्राम शहद आसानी से निकल जाता है. जिसे मशीन में रख कर साफ करने के बाद बाजार में 100 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बिक जाता है. खास बात यह है कि वर्षों से आ रहे इन कारोबारियों को देख कर कुछ स्थानीय लोगों ने भी मधुमक्खी पालन को अपना व्यवसाय बनाया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें