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चुनावी मौसम में आयी वोट ठेकेदारों की बाढ़

चुनावी मौसम में आयी वोट ठेकेदारों की बाढ़ फोटो: 3 पूर्णिया 1परिचय : विभिन्न हथकंडे आजमाते प्रत्याशी की प्रतीकात्मक तसवीर -अपने पक्ष में वोट डलवाने को लेकर लिया जा रहा ठेकेदारों का सहाराप्रतिनिधि, पूर्णियाचुनाव का मौसम है और मतदान में प्रचार अभियान थम चुका है. मंगलवार शाम 05 बजे के बाद से ही प्रचार अभियान […]

चुनावी मौसम में आयी वोट ठेकेदारों की बाढ़ फोटो: 3 पूर्णिया 1परिचय : विभिन्न हथकंडे आजमाते प्रत्याशी की प्रतीकात्मक तसवीर -अपने पक्ष में वोट डलवाने को लेकर लिया जा रहा ठेकेदारों का सहाराप्रतिनिधि, पूर्णियाचुनाव का मौसम है और मतदान में प्रचार अभियान थम चुका है. मंगलवार शाम 05 बजे के बाद से ही प्रचार अभियान पर रोक लग गयी है.मतदान में अभी एक दिन शेष है.कल जिले के 07 विधानसभा सीटों पर विधानसभा चुनाव के पांचवें व आखिरी चरण में मतदान होगा.लिहाजा प्रत्याशियों का जन संपर्क चरम पर है.चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्याशियों ने जहां हाइटेक तरीके अपनाये, वही प्रचार अभियान थमने के बाद जीत के लिए पारंपरिक तकनीक आजमा रहे हैं.यही कारण है कि वोट बैंक की ओर भी प्रत्याशियों की निगाह है.इसके लिए कई प्रकार के ठेकेदारों से संपर्क किया जा रहा है.प्रत्याशियों के भले ही पसीने छूट रहे हो, लेकिन वोट के इन ठेकेदारों की इन दिनों चांदी कट रही है.ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर मौका पांच साल में एक बार ही तो आता है और हाथ आये मौके को कौन गंवाना चाहता है. धर्म के ठेकेदारों की बढ़ी पूछ वोट बैंक के लिए प्रत्याशियों की पहली पसंद धर्म के ठेकेदार बन रहे हैं.चाहे दलीय उम्मीदवार हो, या स्वतंत्र कोई भी प्रत्याशी इससे अछूता नहीं है. सभी प्रत्याशी इन ठेकेदारों को खुश करने में जुटे हैं, ताकि उस धर्म का अधिक से अधिक वोट प्राप्त किया जा सके.जाहिर है, प्रत्याशियों का दांव सटीक बैठा तो उनकी जीत के मार्ग प्रशस्त हो जायेंगे.धर्म के इन तथाकथित ठेकेदारों की अपनी बिरादरी में खासी पैठ बतायी जाती है.हिंदू, मुसलिम और इसाई धर्म के लोग मूल रूप से यहां वोटर हैं और सभी धर्मों के वोट के अपने-अपने ठेकेदार भी हैं. हालांकि प्रत्येक धार्मिक वोट के भी कई ठेकेदार हैं और इनमें से कुछ का तो एक-दूसरे से 36 का आंकड़ा भी है.लिहाजा इस बात की भी गोपनीयता रखी जाती है कि किसने किससे डील किया है. जातीय ठेकेदारों की भी है डिमांड धर्म के ठेकेदारों के बाद प्रत्याशी की अगली कड़ी जाति के ठेकेदारों की होती है.हिंदू हो या मुसलमान सभी धर्म में जातिगत वोट के भी अलग-अलग ठेकेदार हैं.प्रत्याशियों के लिए इन ठेकेदारों के दरवाजे हर वक्त खुले हुए हैं.कुछ ठेकेदारों से प्रत्याशी संपर्क साध रहे हैं और कुछ प्रत्याशियों से इन ठेकेदारों द्वारा संपर्क साधा जा रहा है.ठेकेदारों के साथ डील के दौरान इस बात का ख्याल रखा जा रहा है कि जातिगत वोट पर उसकी कितनी पकड़ है और उस जाति के कितने लोग क्षेत्र में वोटर हैं.डील की रकम भी इसी के अनुरूप तय हो रही है.सच तो यह है कि जातीय ठेकेदारों की पूछ भी दलों की वजह से ही बढ़ी है.जातिगत समीकरण को देख नेताओं के चुनावी सभा आयोजित हुए हैं और जाति विशेष के लोगों को प्रचार के लिए उनके स्वजातीय इलाके में भेजा गया है. जनप्रतिनिधि भी ठेकेदारी में जुटेचुनाव का मौसम है और हर कोई अपनी जेब गरम करने में जुटा है.ऐसे में जनप्रतिनिधि इस मैदान में भला पीछे क्यों रहें.जनप्रतिनिधियों ने भी चुनाव में वोट की ठेकेदारी आरंभ कर दी है.इस श्रेणी के वोट के ठेकेदार प्रतिनिधित्व के प्राप्त वोटों की संख्या गिनाना नहीं भूल रहे हैं.दरअसल इनके डील का मूल आधार भी यही है.इस श्रेणी के ठेकेदार अपने संबंधित क्षेत्र में प्रत्याशी के समर्थन में अधिक से अधिक वोट जुटाने का दावा कर रहे हैं और बदले में प्रत्याशियों की जेब ढ़ीली कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.लेकिन प्रत्याशियों के सामने मजबूरी यह है कि ऐसे ठेकेदारों से भी किनारा नहीं किया जा सकता.क्या पता कौन सा पत्ता तुरुप का इक्का साबित हो जाये और किसकी नाराजगी प्रत्याशी की जीत को हार में तब्दील कर दे.जाहिर है स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी चुनावी मौसम में बल्ले-बल्ले है. पेशेवर ठेकेदारों की चहल कदमी तेजचुनाव के वक्त वोट के ठेकेदारों की जैसे बाढ़ सी आ गयी है.विभिन्न जाति व समुदाय के अलावा वोट के कुछ पेशेवर ठेकेदार भी कमाई की जुग्गत में हैं.लिहाजा इन ठेकेदारों ने चहल कदमी तेज कर दी है.प्रत्याशियों ने अब तक इस श्रेणी के अधिकांश ठेकेदारों से संपर्क साधा है, जिनसे किसी का संपर्क नहीं हुआ वे खुद प्रत्याशियों के दरवाजे पहुंच रहे हैं.ऐसे ठेकेदार लगभग सभी प्रत्याशियों से मिल रहे हैं और सभी को वोट दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं.दरअसल हर चुनाव में इनका मूल पेशा यही होता है और चुनाव के दौरान इनकी अच्छी कमाई भी हो जाती है.साथ ही जीत मिलने पर ऐसे लोग प्रतिनिधियों के सबसे करीबी हो जाते हैं और इनकी रसूख भी बढ़ जाती है.कल फैसला करेगी जनताप्रत्याशियों का चुनाव प्रचार हो या वोट के ठेकेदारों से डील, सबका फैसला गुरुवार को हो जायेगा.दरअसल प्रत्याशियों के गतिविधियों पर चुनाव आयोग की भी नजर है और सजग मतदाताओं की भी.ऐसे में संभावना यह भी है कि मतदाताओं से ऐसे प्रत्याशियों को करारा जवाब मिल जाये.प्रत्याशियों का कौन सा दांव सटीक बैठा और कौन सा फेल हो गया, इसका फैसला तो जनता ही करेगी.निर्वाचन आयोग ने 05 नवंबर को सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक जिले के 07 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान का समय निर्धारित किया है.बहरहाल लोगों को इन ठेकेदारों से सजग रहने की जरूरत है, ताकि लोकतंत्र को मजबूती मिले.

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