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महादलित समाज की झोंपड़ियों में अक्षरों के दीप जला रहे शशिरंजन

पूर्णिया : महादलित समाज की झोंपड़ियों में अक्षरों के दीप जला कर शशिरंजन पूर्णिया समेत सूबे के कई शहरों में शिक्षा की नयी इबारत लिख रहे हैं. आज शशिरंजन द्वारा चलायी जा रही शाम की पाठशाला में उम्र और पिछड़ेपन की बाधाएं हटा कर महादलित समाज के बूढ़े, बच्चे और महिलाएं कटनी और रोपनी के […]

पूर्णिया : महादलित समाज की झोंपड़ियों में अक्षरों के दीप जला कर शशिरंजन पूर्णिया समेत सूबे के कई शहरों में शिक्षा की नयी इबारत लिख रहे हैं. आज शशिरंजन द्वारा चलायी जा रही शाम की पाठशाला में उम्र और पिछड़ेपन की बाधाएं हटा कर महादलित समाज के बूढ़े, बच्चे और महिलाएं कटनी और रोपनी के बीच पढाई करते हैं.

पिछले करीब पांच सालों की लगातार मेहनत का असर यह है कि खेतों में मजदूरी करने वाली महादलित समाज की निरक्षर महिलाओं ने न केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त किया है बल्कि वे अंग्रेजी में अपना नाम पता भी बताने लगी हैं. जिले के एक छोटे से गांव से शुरू की गयी शाम की पाठशाला अब सूबे के कई जिलों में पहुंच गयी है. जिले के बायसी अनुमंडल मुख्यालय में आवास पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत रह चुके शशि रंजन मूल रूप से रंगकर्मी हैं.
ग्रामीण इलाकों में खेत खलिहानों में मजदूरी के काम में लगे बूढ़े, बच्चे और महिलाओं की स्थिति का उन्होंने सर्वे किया और यह पाया कि अशिक्षा के कारण यह समाज न केवल अपने अधिकार बल्कि सरकार की योजनाओं से भी वंचित हो रहा है.
यहीं से उनके मन में इस समाज को शिक्षा के प्रति जागरुक करने का विचार आया. शशि ने अपने हमउम्र युवाओं को लेकर एक टीम बनायी और सबसे पहले बायसी के तीन गांवों का चयन कर मीनापुर में शाम की पाठशाला की नींव डाली. अपने ही वेतन के पैसे से सिलेट, पेंसिल और जरुरत के अन्य सामान खरीदे और झोंपड़ी में ही स्कूल शुरू कर दी.
इसके लिए अनपढ़ लोगों को समझाने में उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी पर मेहनत का अच्छा असर पड़ा. फिर बायसी के ही हरिनतोर और पुरानगंज में भी इस पाठशाला की नींव डाली गई. शाम की पाठशाला में कुछ दिनों तक खुद पढ़ाने के बाद शशि ने स्थानीय युवकों को टीम से जोड़ा और उन्हें मोटिवेट कर पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंप दी. पूर्णिया पूर्व प्रखंड स्थित बेलौरी महादलित टोला में कई अधिकारी भी शिक्षक बन कर शाम की पाठशाला में पहुंचने लगे.
पूर्णिया की शिक्षिका ललिता कुमारी को आज मिलेगा राज्य स्तरीय सम्मान
पूर्णिया. पूर्णिया की शिक्षिका ललिता कुमारी गुरुवार को राज्यपाल फागू चौहान के हाथों पटना में सम्मानित होंगी. शिक्षक दिवस के अवसर पर यह सम्मान उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जा रहा है. शिक्षिका ललिता कुमारी इस सम्मान के लिए पूर्णिया से पटना के लिए रवाना हो चुकी हैं.
ललिता कुमारी जिले के कसबा प्रखंड अर्न्तगत मध्य विद्यालय बान टोला में सहायक शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं. वे जिला स्तरीय स्काउट एण्ड गाइड की सहायक कैप्टेन के पद पर हैं. वे वर्ष 2006-07 से ही स्काउट एण्ड गाईड से जुड़ी हैं और लगातार इस क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रही हैं. ललिता कुमारी एक सामान्य परिवार से आती हैं. इनके पिता एक साधारण किसान थे.
उन्होंने संघर्ष कर अपने गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की जबकि वहां समाज में बच्चियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी. बाद में सुन्दरवती महिला कॉलेज भागलपुर से एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद पूर्णिया लॉ कॉजेज से लॉ की डिग्री प्राप्त की. शिक्षिका के रुप में पहला योगदान 9 मार्च 2009 को मध्य विद्यालय उफरैल में किया था.
कसबा प्रखंड के मध्य विद्यालय बान टोला में वे 20 मार्च 2013 से कार्यरत हैं. इनके पति पवन कुमार साह सेन्ट्रल बैक के मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत है. दो बेटी एवं एक पुत्र हैं और सभी नौकरी में हैं. राज्य स्तरीय सम्मान के लिए उनके चयन से पूर्णियावासी गौरवान्वित हैं.
महादलित समाज में अक्षरों की दुनिया आबाद कर रहीं अर्चना देव
रानीपतरा. जीवन की आपाधापी और झंझावातों से जूझते हुए अर्चना देव कुछ ऐसा ही मंत्र लेकर महादलित समाज में अक्षरों की दुनिया आबाद कर रहीं हैं. अर्चना सरकारी स्कूल से भले ही रिटायर हो गयी हैं पर वे आज भी एक शिक्षक के रूप में शिक्षा का अलख जगा रहीं हैं.
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित अर्चना देव को नयी दिल्ली में आयोजित इंडो-नेपाल सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिक्षक रत्न के सम्मान से भी नवाजा गया है. पूर्णिया पूर्व प्रखंड अंतर्गत रानीपतरा के चांदी कठवा गुमटी टोला में चार वर्षों से अनुसूचित जाति के गरीब बच्चों का निश्शुल्क स्कूल चला रही हैं. उन्होंने चबूतरे को गरीबों का स्कूल बना दिया है और जहां बच्चों को शिक्षा का महादान दे रही हैं.
पढ़ाने में अपनी पेंशन तक बच्चों पर खर्च कर देती है और दिन-रात यह सोचती रहती हैं कि किस प्रकार ये गरीब बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ें. उनके इस निश्शुल्क विद्यालय में आज लगभग 109 छात्र व छात्राएं अध्ययनरत हैं. 31 अक्तूबर 2015 को सेवानिवृत्त होने के बाद से ही अर्चना देव इन बच्चों के लिए समर्पित हो चुकी हैं.
बारह वर्षों से निःशुल्क सेवा दे शिक्षा का आलेख जगा रहे दिव्यांग संतोष कुमार
धमदाहा : बारह वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट योगदान दे शिक्षा का अलख जगा रहे संतोष कुमार निःशुल्क सेवा देकर शिक्षा के प्रति अपने लगाव को बनाये रखा है. जी हां हम बात कर रहे हैं ऐसे शिक्षकों की जो लगातार बारह वर्षों से सरकारी विद्यालयों में निःशुल्क सेवा देते आ रहे हैं, जिनका नाम है संतोष कुमार.
धमदाहा प्रखंड क्षेत्र के चन्दरही हजारी टोल निवासी संतोष कुमार जो कि दोनों पैर से दिव्यांग है. अपने गांव स्थित मध्य विद्यालय चन्दरही हजारी टोल में विगत बारह वर्षों से शिक्षा का अलख जगाते हुए एक मिसाल कायम की है.
शिक्षा के प्रति उनकी लगनशीलत इस बात से पता चलता है कि दिव्यांग होते हुए भी उनका लगाव उनकी दिव्यांगता कभी आड़े नही आई. वे लगातार निःशुल्क सेवाएं दे अपने समाज के भविष्य को संवारने में लगे हुए हैं. शिक्षक संतोष कुमार स्नातक करने के बाद सरकारी सेवाओं से मरहूम रह गये. परंतु अपनी काबिलियत एवं समाज के बच्चों के भविष्य को संवारने में लगातार सेवाएं दे रहे हैं.

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