पूर्णिया : प्राकृतिक आपदाओं के मामले में संवेदनशील पूर्णिया में अंग्रेजों के जमाने में स्थापित उत्तर बिहार का एकमात्र मौसम कार्यालय बदहाली पर आंसू बहा रहा है. इसकी स्थापना 01 जुलाई 1874 को पुलिस लाइन परिसर में हुई थी. तब से लेकर आज तक इसकी स्थिति जस की तस है. जबकि आपदा के लिहाज से […]
पूर्णिया : प्राकृतिक आपदाओं के मामले में संवेदनशील पूर्णिया में अंग्रेजों के जमाने में स्थापित उत्तर बिहार का एकमात्र मौसम कार्यालय बदहाली पर आंसू बहा रहा है. इसकी स्थापना 01 जुलाई 1874 को पुलिस लाइन परिसर में हुई थी. तब से लेकर आज तक इसकी स्थिति जस की तस है. जबकि आपदा के लिहाज से यहां पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करना वक्त की जरूरत है. लेकिन जमीन और संसाधन के अभाव में विभाग अपनी योजना को मूर्त रूप नहीं दे पा रहा है.
करीब एक दशक से जमीन आवंटन का मामला सरकारी फाइलों में कैद है.
143 वर्ष में चले महज ढाई कोस : वर्तमान में मौसम विज्ञान केंद्र एक छोटे से कमरे में संचालित हो रहा है. जिस स्थिति में आरंभ हुआ था, वही स्थिति बरकरार है. भवन में जगह-जगह दरारें आ गयी है और बारिश में इससे पानी टपकता है. हाल यह है कि कंप्यूटर को आलमीरा में बंद रखा जाता है. इसका संचालन मौसम विज्ञान केंद्र पटना से होता है.
क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता और प्रधान कार्यालय दिल्ली में है. बहरहाल मौसम केंद्र को विस्तार देने के लिए उसे करीब 15 हजार वर्गफीट जमीन की आवश्यकता है. अतिरिक्त दस हजार वर्गफीट जमीन के लिए पिछले दस साल से मामला ठंडे बस्ते में है.
क्षमता में वृद्धि करने की योजना अधर में
मौसम विभाग की योजना है कि पूर्णिया केंद्र में धरातल से 32 किमी ऊपर तक की मौसमी गतिविधियों की निगरानी रखी जा सके. इससे न सिर्फ आंधी व बारिश का पूर्वानुमान हो सकेगा, बल्कि वज्रपात के बारे में भी सही समय पर सूचना लोगों तक पहुंचेगी. इसके लिए मौसम विभाग ने आरएसआरडब्ल्यू तकनीक को इस केंद्र में स्थापित करने की मंजूरी दे रखी है. आमतौर पर बारिश के दौरान उपग्रह से समुचित फीडबैक नहीं मिल पाता है और उस हालत में भी यह तकनीक कारगर साबित होती है. खासकर वर्षाकाल में मौसम की निगहबानी के लिए यह यंत्र महत्वपूर्ण माना जाता है. यह सुविधा भी तब तक उपलब्ध नहीं हो सकेगी, जब तक जमीन उपलब्ध नहीं हो जाता है.