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मिटा आदमी व पशु का फर्क

राहत. थमा बाढ़ का कहर लेकिन लोगों की मुश्किलें बरकरार बाढ़ में जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. लिहाजा बाढ़ पीड़ितों में जहां व्यवस्था के प्रति क्षोभ व्याप्त है, वहीं पीड़ित प्रारब्ध की मर्जी पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं. पूर्णिया : तीन दशक बाद इतिहास […]

राहत. थमा बाढ़ का कहर लेकिन लोगों की मुश्किलें बरकरार

बाढ़ में जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. लिहाजा बाढ़ पीड़ितों में जहां व्यवस्था के प्रति क्षोभ व्याप्त है, वहीं पीड़ित प्रारब्ध की मर्जी पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
पूर्णिया : तीन दशक बाद इतिहास ने खुद को दोहराया है. पूर्णिया से एनएच पर डागरूआ की ओर बढ़ने पर टोल प्लाजा के बाद ही तबाही का मंजर दिखने लगता है. सड़क के दोनों किनारे जमा पानी दूर अवस्थित गांव की बदहाली की कहानी का ट्रेलर कहा जा सकता है. जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. ऐसे लोगों ने एनएच को सुरक्षित मान कर उसे ही अपना अस्थायी बसेरा बना लिया है.
प्रशासनिक स्तर पर राहत पहुंचाने की कोशिश की जा रही है जो प्रभावितों की बड़ी संख्या के आगे नाकाफी साबित हो रहा है. लिहाजा बाढ़ पीड़ितों में जहां व्यवस्था के प्रति क्षोभ व्याप्त है, वहीं पीड़ित प्रारब्ध की मर्जी पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं. दरअसल जिले के 8 प्रखंड के 135 पंचायत के 732 गांव के 10.19 लाख की आबादी बाढ़ आपदा से जूझ रही है और इस हालात से कब तक जूझते रहेंगे, ये भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है. एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवानों द्वारा बाढ़ प्रभावित इलाके में लगातार राहत और बचाव कार्य चलाये जा रहे हैं. बाढ़ का कहर थमता नजर आ रहा है, लेकिन लोगों की मुश्किलें बरकरार है.
एनएच 31 हुआ वनवे जाम बनी समस्या
बाढ़ के बाद से एनएच 31 फ्लड विलेज के रूप में तब्दील हो चुका है. इसके डिवाइडर पर बड़ी संख्या में लोग शरण लिए हुए हैं तो सड़कों पर भी कुछ लोगों ने अपना तंबू लगा रखा है. कई जगहों पर एनएच को बाधित भी कर दिया गया है. ऐसे में अघोषित रूप से एनएच के एक लेन को बंद कर दिया गया है. डिवाइडर पर रह रहे लोगों ने सुरक्षा के लिहाज से यह कदम उठाया है. एनएच के एक लेन बंद होने से जाम की समस्या काफी गंभीर हो गयी है. बायसी से आगे स्थित पुल पर अब आवागमन आरंभ हो गया है तो थोड़ी राहत जरूर मिली है. लेकिन एक ही लेन से आवागमन होने की वजह से पूरे दिन और देर शाम तक एनएच पर जाम लगा रहता है.
संचार व्यवस्था ध्वस्त होने से बढ़ी परेशानी
सबसे मुश्किल यह है कि मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह समाप्त हो चुका है. कोई भी नेटवर्क बाढ़ के दौरान बाढ़ का साथी साबित नहीं हो सका है. इस वजह से भी सुदूर गांव में फंसे बाढ़ पीड़ितों की सही सूचना नहीं मिल पा रही है. अक्सर डायल करने पर नोट रिचेबुल या फिर इस समय कॉल पूरी नहीं की जा सकती जैसी ध्वनि ही सुनने को मिलती है. बाढ़ आने के साथ बिजली भी गुल हो चुकी है. ऐसे में मोबाइल चार्ज करना भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. इस वजह से भी बड़ी संख्या में मोबाइल बेकार साबित हो रहे हैं.
केटारे हाट पर तो मोबाइल चार्ज करने की एक अस्थायी दुकान ही खुल गयी है. यहां जेनरेटर के माध्यम से मोबाइल चार्ज किये जा रहे हैं. इसके संचालक अमित कुमार बताते हैं कि ‘ मोबाइल फूल चार्ज करने के एवज में 10 रुपये सुविधा शुल्क लिया जाता है ‘ . उन्होंने बताया कि पूरे दिन में कम से कम 50 से 60 मोबाइल यहां चार्ज करने के लिए आता है.
एक ही तंबू में साथ-साथ रह रहे हैं आदमी और जानवर
राष्ट्रीय उच्च पथ 31 बाढ़ पीड़ितों के लिए सबसे बड़ा आश्रय दाता साबित हो रहा है. पूर्णिया से लेकर बायसी तक एनएच के डिवाइडर और उसके किनारे 30 से 35 हजार लोग शरण लिए हुए हैं. कई जगहों पर राहत शिविर आरंभ हो चुका है और यह स्थिति सुकून देने वाली है. लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो खुद अपने बल पर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बमुश्किल से कर पा रहे हैं. छोटे से तंबू में बमुश्किल पूरा परिवार अट पा रहा है तो इस छोटे से तंबू में आदमी और जानवर का फर्क मिटता भी नजर आता है. अपने पालतू जानवर के साथ एक ही तंबू में रह रहे मुनिया टोला के दशरथ महतो कहते हैं ‘ साहब इनसान का क्या भरोसा, जानवर तो मरते दम तक साथ निभायेंगे, इसलिए इनके साथ रह रहे हैं ‘ .

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