जीएसटी की धमक. देश-िवदेश के बाजारों की शान था पूिर्णया िजले का मखाना
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मखाना की सफेदी गायब, जमाखोर मालामाल
जीएसटी की धमक. देश-िवदेश के बाजारों की शान था पूिर्णया िजले का मखाना अिधक से अिधक उत्पादन व गुणवत्ता वृद्धि के लिए कृषि कॉलेज कर रहा प्रयास पूर्णिया : सरकार ने जिले में मखाना के खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजना चला रखा है. मखाना का अधिक से अधिक और गुणस्तर उत्पादन के […]
अिधक से अिधक उत्पादन व गुणवत्ता वृद्धि के लिए कृषि कॉलेज कर रहा प्रयास
पूर्णिया : सरकार ने जिले में मखाना के खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजना चला रखा है. मखाना का अधिक से अधिक और गुणस्तर उत्पादन के लिए भोला पासवान शास्त्री महाविद्यालय द्वारा हरसंभव प्रयास किया जा रहा है. वहीं मखाना उत्पाद किसानों को मेहनत का उचित मुनाफा मिले, इसके लिए बाजार का रोडमैप तैयार किया जा रहा है. जिले का मखाना अन्य देशों में भी निर्यात होता है. मखाना उत्पादन से लेकर तैयार करने तक किसानों का खून-पसीना एक हो जाता है, लेकिन मखाना का जमाखोरों के कारण किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है. किसानों को मिलने वाले लाभ और मुनाफा को दलाल और जमाखोर चट कर जाते हैं.
जमाखोर और दलालों ने मखाना की सफेदी को चुरा लिया है. पूंजी का निवेश किसान करते हैं और फायदा मुनाफाखोर खा जाते हैं. नोटबंदी के समय से ही मुनाफाखोर और जमाखोर मखाना के पीछे लग गया है. नोटबंदी के समय में ही जमाखोरों ने किसान से कम रेट में मखाना खरीद कर बाजार का सभी मखाना को विभिन्न गोदाम में जमा कर लिया था. बाजार से मखाना गायब हो गया था. प्रति किलो 150 रूपये में खरीद कर जमाखोरों ने 400 से 500 रूपये किलो मखाना बेचने लगा था.
कहा जा रहा है कि जमाखोरों ने पुराने नोट 30 प्रतिशत कमीशन पर नेपाल के मखाना कारोबारियों से नोट लेकर मखाना बेचा था और वही पुराना नोट किसान को पेमेंट किया था. प्रभात खबर ने इस बात को लेकर प्राथमिकता के साथ खबर छापी थी. जमाखोरों ने नोटबंदी के समय में ही मखाना की जमाखोरी और पुराने नोट को मखाना में लगा कर करोड़ों रूपये कमाया था. अब फिर जब जीएसटी लगी है तो जमाखोर और मुनाफाखोरों की नजर मखाना की सफेदी पर लगी है.
दर्जनों जमाखोर काली कमाई में शामिल
जिले के करीब दर्जनों जमाखोर इस काले कमाई में शामिल है. इन सभी का आपस में तालमेल बैठा हुआ है. इलाके के हरदा, गेड़ाबाड़ी, अररिया, फारबिसगंज, गुलाबबाग, खुश्कीबाग के कारोबारी शामिल है. कहा जाये तो इन कारोबारियों का अपना एक मखाना का गिरोह है. कारोबारियों द्वारा कमीशन पर दलाल रखा हुआ है. यह दलाल मखाना के किसान तक पहुंच कर रेट तय करता है और मखाना लेकर जमाखोरों तक पहुंचाने का काम करता है. जमाखोर बाहर पार्टी से संपर्क कर मखाना भेज देता है.
150 का मखाना बिक रहा है " 300 किलो
01 जुलाई से पहले मखाना पर कोई टैक्स नहीं लगता था. जीएसटी लागू होने के बाद मखाना पर पांच प्रतिशत टैक्स लागू हो गया है. जीएसटी लागू होने के बाद मखाना की कीमत प्रति किलो 160 रुपया निर्धारित हुआ है. इसमें जीएसटी टैक्स करीब आठ रुपया होता है, लेकिन जमाखोरों द्वारा बाजार में खुलेआम मखाना प्रति किलो 270 से 300 रुपये में बेचा जा रहा है. जमाखोर द्वारा पार्टी को जीएसटी बिल 160 रूपये किलो का देता है. पार्टी से बांकी रूपया कैश में पेमेंट कराता है. जबकि 300 रूपये किलो के हिसाब से 15 रूपया टैक्स होता है. लेकिन जमाखोरों द्वारा सरकार का सीधे सात रूपया प्रति किलो का टैक्स डकार जाता है. जिले में यह जमाखोरी और टैक्स चोरी का खेल खुलेआम चल रहा है. इतना ही नहीं जमाखोरों को बाहर के कारोबारियों के साथ बातचीत पहले से ही तय रहता है. बिल के हिसाब से पेमेंट बैंक के द्वारा होता है और बाकी कैश में होता है. सरकार डाल-डाल है तो जमाखोर पात-पात है.
मखाना उत्पादक को लागत और मेहनत के हिसाब से मखाना की कीमत नहीं मिल पा रही है. जिस मखाना की कीमत 160 रुपया प्रति किलो होनी चाहिए, वह बाजार में 270 से 300 के बीच है. कुछ लोग जीएसटी के लिए बिल में कम कीमत दिखा देते हैं. बाकी पेमेंट कैश में लिया जा रहा है.
राजकुमार जायसवाल, मखाना उत्पादक, खुश्कीबाग, पूर्णिया
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