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38 महीने बाद आंध्रा बैंक ने लौटा दिये एक करोड़ रुपये

पटना : लगभग 40 महीने पहले पटना के जिला योजना कार्यालय से गायब हुए तीन चेक से 3.56 करोड़ रुपये की अवैध निकासी के मामले में अच्छी खबर आयी है. इनमें से आंध्रा बैंक के एक चेक की 1.51 करोड़ राशि जिला प्रशासन को वापस हो गयी है. बैंक ने अपनी गलती पाते हुए कुछ […]

पटना : लगभग 40 महीने पहले पटना के जिला योजना कार्यालय से गायब हुए तीन चेक से 3.56 करोड़ रुपये की अवैध निकासी के मामले में अच्छी खबर आयी है. इनमें से आंध्रा बैंक के एक चेक की 1.51 करोड़ राशि जिला प्रशासन को वापस हो गयी है. बैंक ने अपनी गलती पाते हुए कुछ महीनों बाद ही 51 लाख रुपये वापस कर दिये थे. करीब 38 महीने बाद बैंक ने शेष एक करोड़ रुपये भी जिला प्रशासन के जिला योजना कार्यालय स्थित डूडा अकाउंट में ट्रांसफर कर दिये हैं. हालांकि, बैंक ऑफ बड़ौदा के दो चेक से गायब हुए 2.05 करोड़ रुपये वापस नहीं मिले हैं. बैंक ने सीधे तौर पर इसमें अपनी गलती मानने से इनकार करते हुए राशि लौटाने से मना कर दिया है. इसे पूरी तरह धोखाधड़ी का मामला बताते हुए पुलिस कार्रवाई की बात कही गयी है.

धनबाद व चेन्नई शाखाओं से हुई थी बैंक ऑफ बड़ौदा के पैसे की निकासी : बैंक ऑफ बड़ौदा के दो चेक (संख्या 580181 व संख्या 572580) से निकाले गये 2.05 करोड़ रुपये की निकासी बैंक के धनबाद व चेन्नई शाखाओं से हुई थी. धनबाद शाखा से दूसरे चेक से हुई निकासी मामले में बैंक के वरिष्ठ शाखा प्रबंधक सुभाष चंद्र चौरसिया ने न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया था.
उन्होंने बताया था कि 1.02 करोड़ रुपये का चेक 25 सितंबर, 2013 को क्लियरेंस के लिए मिला था, जिस पर तत्कालीन डीएम सह चेयरमैन डॉ एन सरवण कुमार का हस्ताक्षर हू-ब-हू था. बड़ी रकम को देखते हुए पटना सिटी बैंक ऑफ बड़ौदा के वरिष्ठ शाखा प्रबंधक से फोन पर बात कर उनकी स्वीकृति मिलने पर ही राशि रिलीज की गयी थी.
दूसरे चेकों की तरह यह चेक भी दो बैंक से होकर धनबाद की बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य शाखा को मिला था.जिला योजना कार्यालय के तीनों आरोपित कर्मी जमानत पर : इस मामले में जिला योजना कार्यालय के पूर्व नाजिर विकास कुमार यादव, तत्कालीन नाजिर वीरेंद्र कुमार व अनुसेवी जगदीश प्रसाद को कस्टोडियन मानते हुए 20 नवंबर, 2013 को गांधी मैदान थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. इसके बाद हुए अनुसंधान में पुलिस ने चेन्नई में फर्जी चेक भुनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले बंटी नामक युवक को भी धनबाद से गिरफ्तार किया था. फिलहाल चारों अभियुक्त जमानत पर हैं. इनमें वीरेंद्र कुमार की कस्टडी का आंध्रा बैंक का पैसा वापस हो गया है, जबकि विकास यादव की कस्टडी से गायब हुआ बैंक ऑफ बड़ौदा के चेक का पैसा वापस नहीं मिला है.
मामले में सरकारी कर्मियों के अलावे दस अन्य नामजद अभियुक्त बनाये गये थे, मगर इनकी गिरफ्तारी नहीं की गयी. इन अभियुक्तों के नाम का खुलासा धनबाद से गिरफ्तार भूपेंद्र सिंह चोपड़ा उर्फ बंटी सिंह ने किया था. उसने पटना के संतोष मिश्रा व मुंगेर रामपुर के पवन मिश्रा के नाम का खुलासा करते हुए बताया था कि उन लोगों ने ही चेक के माध्यम से निकासी के लिए उनसे संपर्क किया था.
भुनाये जाने से पहले चेक कई हाथों से गुजरा था. अंतिम रूप से पेंटागन सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के एमडी टी महादेवन के खाते में भुना. उसको यह चेक विकास माड्या ने कैश कराने के लिए दिया था. पुलिस ने टी महादेवन से इस संबंध में पूछताछ भी की, लेकिन फिर छोड़ दिया.
चेक घोटाला मामले में अगर पुलिस थोड़ी भी चुस्त होती तो बड़ा खुलासा हो सकता था. मामले का कनेक्शन सचिवालय से भी जुड़ा था. अभियुक्त रहे भूपेंद्र चोपड़ा उर्फ बंटी ने बताया था कि सचिवालय में ऑफिसर के पद पर काम करने वाले किसी संतोष मिश्रा ने ही उसको यह चेक उपलब्ध कराया था. मामले में अजय कुमार व यश कुमार नाम के किसी व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. चेक भुनाने के लिए 80-20 का फॉर्मूला तय किया गया था.
यानी कि चेक देने वाले को कुल राशि का 20 प्रतिशत जबकि भुनाने वाले को 80 प्रतिशत मिलना था. समाहरणालय के जिला योजना कार्यालय के बाद भी फर्जी चेक से भुगतान के कई मामले सामने आये. अगर पुलिस बंटी के बयान पर निशानदेही कर आरोपियों को गिरफ्तारी करती तो शायद किसी बड़े रैकेट का खुलासा हो सकता था. केस को लेकर आइओ लगातार बदलते रहे, मगर कोई खास प्रगति नहीं हो सकी.

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