राज्य में शराबबंदी के बाद नक्सलग्रस्त गया जिले में भी काफी बदलाव आया है. रोज की गाढ़ी कमाई शराब में डुबो देनेवाले लोगों के परिवारों को अब खुशहाल शाम व सुबह नसीब हो रही है. गया शहर के माड़नपुर निवासी पेशे से राजमिस्त्री विकास कुमार कहते हैं कि उनके पिताजी की कमाई तो सब शराब में ही घुल गयी. उम्र 75 के आसपास हो गयी.
लेकिन, शराब छूटने का नाम नहीं ले रही थी. कम उम्र में घर संभालने की वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई उच्च स्तर की नहीं हो सकी. ऐसी स्थिति में ढंग का कोई काम नहीं मिला, तो राजमिस्त्री के साथ मजदूर का काम शुरू कर दिया. फिर काम सीख कर करनी, बसुली व साहुल लेकर राजमिस्त्री बन गया. छोटी-छोटी मकानों के निर्माण का ठेका लिया. इस दौरान शराब की लत उन्हें भी लग गयी और रोज की कमाई के करीब 30 से 40 प्रतिशत रुपये शराब में बरबाद होने लगे.
यह तो भला है कि शराबबंदी हो गयी. इसके बाद पिताजी और मैंने शराब छोड़ दी. नतीजतन, कमाई दिखने लगी है. विकास बताते हैं उनकी मां दुनिया में नहीं है. पत्नी ललिता देवी अब काफी खुश हैं. लड़की के जन्म के बाद से ही वह उसकी परवरिश, पढ़ाई-लिखाई व शादी-विवाह को लेकर चिंतित थीं. लेकिन, शराबबंदी ने घर में जादू सा कर दिया. अब कमाई का पूरा पैसा घर आ रहा है. बच्ची को अच्छी तालीम देकर उसे कामयाब बनाने की इच्छा है. घर में तंगहाली रहती थी, पर अब अच्छे खान-पान के साथ पैसे की बचत भी हो रही है.
विकास अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जो पिता के शराब में डूबे होने की वजह से पढ़ कर नौकरी नहीं कर पाये. ऐसे कई और भी हैं, जिनकी जिंदगी शराब ने बरबाद की. लेकिन, कहते हैं-देर आयद दुरुस्त आयद. अब विकास को होश आया है. घर में खुशहाली आ गयी है. विकास की मानें, तो अशिक्षा व्यक्ति को पशु बना देती है. यही उनके गार्जियन के साथ हुआ. स्वर्णकार के यहां काम कर पैसा तो काफी कमाये, पर उसे सहेज कर रखना नहीं आया.