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आवाज उठाने की सजा, जेल में हैं जेपी के सेनानी
पुष्यमित्र पटना : एक तरफ राज्य सरकार तो परचाधारी भूमिहीनों को उनकी जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए ऑपरेशन दखल दिहानी अभियान चला रही है, तो दूसरी तरफ स्थानीय अधिकारियों ने अहिंसक तरीके से परचाधारियों के हक की लड़ाई लड़ने वाले जेपी के सेनानी पंकज पर हत्या के प्रयास और दूसरे कई आरोप लगाकर जेल […]
पुष्यमित्र
पटना : एक तरफ राज्य सरकार तो परचाधारी भूमिहीनों को उनकी जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए ऑपरेशन दखल दिहानी अभियान चला रही है, तो दूसरी तरफ स्थानीय अधिकारियों ने अहिंसक तरीके से परचाधारियों के हक की लड़ाई लड़ने वाले जेपी के सेनानी पंकज पर हत्या के प्रयास और दूसरे कई आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया है.
उनका जुर्म इतना ही था कि वे स्थानीय महादलितों को उनके नाम से बरसों पहले आवंटित जमीन पर उनका हक दिलाने गये थे. रोचक तथ्य यह है कि पंकज जी राज्य सरकार के निर्देशन में संचालित हो रहे ऑपरेशन दखल दिहानी की देखरेख के लिए गठित कोर कमेटी के सदस्य भी हैं. अब जेपी के दूसरे शिष्य पंकज जी को न्याय दिलाने राजधानी पटना में एकजुट हो रहे हैं.
गुरुवार को राजधानी पटना में पंकज जी को न्याय दिलाने की रणनीति बनाने में जुटे कुमार प्रशांत, प्रियदर्शी, रंजीव, सिद्धार्थ समेत विभिन्न समाजवादी नेताओं ने बताया कि पंकज जी 1974 से जेपी के संपर्क में रहे हैं. वे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के नेता रह चुके हैं, फिलहाल वे परचाधारी संघर्ष समिति और लोक संघर्ष समिति के बैनर तले पश्चिम चंपारण में पिछले 15 सालों से भूमिहीनों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. वे रेवेन्यू विभाग के प्रधान सचिव की पहल पर और उनकी अध्यक्षता में बनी भूमि सुधार कोर कमेटी के महत्वपूर्ण सदस्य भी हैं.
इसके बावजूद जिला प्रशासन ने उन पर सतही आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद करा दिया है. परचाधारी संघर्ष समिति की तरफ से कहा गया कि आॅपरेशन दखल दिहानी के तहत बेतिया जिले में 1.75 लाख दावे पेश किये गये हैं. मगर प्रशासन की सक्रियता को इसी बात से परखा जा सकता है कि अब तक सिर्फ 8 सौ लोगों को ही कब्जा दिलाया जा सकता है.
जबकि उनका संगठन अहिंसावादी तरीकों से अब तक पांच सौ एकड़ जमीन को मुक्त करा कर परचाधारियों को कब्जा दिलाचुका है. ऐसी स्थिति में प्रशासन को इस अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए उनके संगठन की मदद लेनी चाहिए थी.
अपने एफआइआर पर अडिग हैं सीओ : इस मामले पर पक्ष लेने के लिए जब बगहा-1 के सीओ राजकुमार साह से फोन पर संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि उनके जो आरोप हैं वे सभी एफआइआर की कॉपी में हैं और वे इस पर अडिग हैं.
क्या है पूरा मामला
परचाधारी संघर्ष समिति के सदस्य सिद्धार्थ कहते हैं कि बगहा-1 अंचल में 1970 में सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट के तहत बडगांव स्टेट की 225 एकड़ जमीन अधिगृहीत की थी. 1992 में अदालत के निर्देश पर इसमें से 164 एकड़ जमीन भूमिहीनों को बांट दी गयी.
उस वक्त कब्जा भी दिलाया गया था, मगर फिर उन्हें बेदखल कर दिया गया. तब से अलग-अलग तरीके से इन्हें कब्जा करने से रोका जा रहा है. हमारे संगठन ने इन्हें जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह चलाया. पहले सलहा गांव में धनरोपनी की, फिर 3 नवंबर, 2015 को धान काटने पहुंचे. उस वक्त प्रशासन ने हमें यह कह कर रोक दिया कि मामला अदालत में है और जमीन पर धारा 144 लगा है. इस पर परचाधारियों ने कटा हुआ धान का बोझा प्रशासन को सौंप दिया. उस रोज प्रशासन, स्थानीय जनता और परचाधारियों के बीच लंबी बैठक चली और तय किया गया कि दोनों पक्ष अदालत के फैसले का सम्मान करेंगे.
मगर, सिद्धार्थ का आरोप है कि इस बीच सीओ ने चौतरवां थाने में 18 परचाधारियों, पंकज और सैकड़ों अज्ञात लोगों पर हत्या का प्रयास समेत कई अन्य मामलों में मुकदमा दर्ज करा दिया. उनलोगों ने जमानत लेने की भी कोशिश की, मगर जमानत नहीं मिली. इन हालात में 20 जुलाई, 2016 को सभी नामजद आरोपियों ने आत्म समर्पण कर दिया है. इनका आरोप है कि प्रशासन की भू-धारियों को कब्जा दिलाने में कोई रुचि नहीं है, वे लोग जमींदारों के हित का ख्याल रख रहे हैं.
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