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भरोसा नहीं हुआ, यह वही पहसारा गांव है : डीके झा
20 सालों बाद अपना गांव देखा – अब न सड़कों पर गड्डे दिख रहे, न ही गांव में घंटों बिजली कट रही, हर तरफ तरक्की का खुलता रास्ता डॉ डीके झा चिकित्सक इसी साल अप्रैल में अपने पैतृक गांव पहसारा जाने का मौका मिला. रांची में रहता हूं. 20 साल बाद अपने परिवार के साथ […]
20 सालों बाद अपना गांव देखा
– अब न सड़कों पर गड्डे दिख रहे, न ही गांव में घंटों बिजली कट रही, हर तरफ तरक्की का खुलता रास्ता
डॉ डीके झा
चिकित्सक
इसी साल अप्रैल में अपने पैतृक गांव पहसारा जाने का मौका मिला. रांची में रहता हूं. 20 साल बाद अपने परिवार के साथ जब गांव पहुंचा तो गांव बदला-बदला मिला. बिहार के बेेगूसराय से 25 किलोमीटर दूर में मेरा गांव है. मंझौल से बखरी जाने के रास्ते में पड़ता है. इसी मार्च में मेरे पिताजी की रांची में मृत्यु हो गयी थी. वह 86 साल के थे. मां धार्मिक हैं.
ऐसी मान्यता है कि पति की मौत के बाद पत्नी को गंगा स्नान करना चाहिए. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए हम पूरे परिवार के साथ पहले बेेगूसराय गये. वहां से सिमरिया गये और वहां गंगा स्नान किया. सिमरिया वह पवित्र जगह है, जहां गंगा उत्तरायण बहती है. गंगा स्नान के बाद हम पहले बेेगूसराय आये. फिर गांव की ओर बढ़ने लगे.
हमलोग इनोवा में थे. जाने के पहले सोचा था कि इनोवा गांव तक पहुंच पायेगा या नहीं, सड़कें तो वैसी ही होंगी, जैसे पहले हुआ करती थी. 20 साल पहले जब गांव गया था, उसकी तसवीर जेहन में थी. सिंगल रोड. टूटी सड़कें. सामने से अगर कोई गाड़ी आ जाये तो किसी एक गाड़ी को रोड से नीचे उतारना होता था. इस बार हर चीज बदली हुई थी. सड़क इतनी चौड़ी कि दो-दो गाड़ियां गुजरने के बाद भी जगह बच रही थी. सड़क पर कहीं गड्ढे का नामोनिशान नहीं था.
पहले जाने में एक से सवा घंटे लगते थे. मात्र 20 से 25 मिनट में गांव पहुंच गये. इनोवा मेरे पैतृक घर तक चला गया. सड़कें वहां तक बन चुकी हैं. भरोसा नहीं हो रहा था कि यह वही गांव है, जहां 20 साल पहले आने का मन नहीं करता था. मन में बात आयी कि चलो, सड़क तो बन गयी है, लेकिन रात में क्या होगा, जब गरमी में बिजली जायेगी.
देर रात तक परिवार के साथ बात करता रहा, बिजली नहीं कटी. रात भर पंखा चलाया. गांव में पूरे दो दिन रहे, लेकिन एक बार भी बिजली नहीं कटी. यह बदलाव दिखा. मन नहीं माना, तो दूसरे दिन गांव के लोगों से बिजली के बारे में पूछ बैठा- बिजली नहीं कट रही है, क्या कोई नेता-उता आनेवाला है. लोगों ने कहा- नहीं, यहां ऐसी ही बिजली रहती है.
दूसरे दिन मैं मां और पूरे परिवार को लेकर आठ किलोमीटर दूर जयमंगलागढ़ चला गया. तीर्थ स्थान है. प्रसिद्ध है. रास्ते में दो-तीन गांवों से गुजरा. रास्ते में लड़कियां साइकिलों पर उड़ान भर रही थीं. चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था. यह वही इलाका था, जब 20 साल पहले गांव की महिलाएं भी घूंघट करके गांव में निकलती थी. लड़कियों की तो निकलने की मनाही होती थी. रास्ते में देखा-गांव की लड़कियां मोबाइल पर बात भी कर रही थीं. खुशी हुई यह देख कर कि मेरा गांव इतना बदल गया है.
मैं बहुत ज्यादा और मालूम नहीं कर पाया, लेकिन इतना पता चला कि पूरे इलाके में गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चों को, खासकर लड़कियों को पढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है. यह सुन कर मेरा अपने पैतृक गांव में हो रहे चौमुखी विकास के प्रति विश्वास बढ़ा और ऐसा लगा कि मेरा गांव सही रास्ते पर चल पड़ा है. अब मेरी इच्छा है कि हर साल-दो साल पर मैं अपने पैतृक गांव अवश्य जाऊं.
-लेखक रिम्स में सहायक प्राध्यापक (मेडिसीन) हैं. बिहार के बेगूसराय के मूलनिवासी डॉ झा वर्ष 2003 में रिम्स से जुड़े. वे एपीआइ (झारखंड चैप्टर) के पूर्व सचिव भी हैं. अभी तक 12 किताबों का संपादन किया है. इसके अलावा उनके नाम से 40 शोधपत्र हैं, जिनमें चार अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं. डॉ झा एटीआइ और ज्यूडिशियल अकादमी में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर जुड़ेे हैं.
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