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सेहत की बात: खून की एक जांच से पता चलेगा गठिया

पटना: गठिया रोग में जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है. इसके बाद जोड़ों में गांठ बन जाती हैं और सूई चुभने जैसी पीड़ा होती है. शरीर के विभिन्न जोड़ घीसने लगते हैं. ऐसी स्थिति में जोड़ों में दर्द रहने लगता है, जाे हाथ-पैर, जांघ, एड़ी, कमर आदि के जोड़ों में होती है. […]

पटना: गठिया रोग में जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है. इसके बाद जोड़ों में गांठ बन जाती हैं और सूई चुभने जैसी पीड़ा होती है. शरीर के विभिन्न जोड़ घीसने लगते हैं. ऐसी स्थिति में जोड़ों में दर्द रहने लगता है, जाे हाथ-पैर, जांघ, एड़ी, कमर आदि के जोड़ों में होती है. ये बातें रविवार को आइएमए एकेडमी ऑफ मेडिकल स्पेशियलिटी की ओर से आयोजित रूमेटाेलाॅजिस्ट के एक नेशनल सेमिनार में कहीं गयी. सेमिनार का उद्घाटन आइएमए अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद कुमार, चेयरमैन अजय कुमार और डॉ एसएन आर्या ने किया. कार्यक्रम में बिहार के अलावा पूरे राज्य के 350 डॉक्टरों ने शिरकत की.
वैक्सुलाइटिस नामक गठिया सबसे खतरनाक : बेंगलुरु से आये डॉक्टर शंकर सुब्रमण्यम ने बताया कि गठिया 180 प्रकार की होती है. इसमें वैक्सुलाइटिस नामक गठिया सबसे खतरनाक होती है. उन्होंने बताया कि ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक के वैज्ञानिक एक ऐसी ही पद्धति पर शोध कर रहे हैं, जिससे सिर्फ खून की एक जांच के जरिये गठिया रोग की आशंका का पता लगाया जा सकता है और वो भी बीमारी होने से सालों पहले. शोधकर्ताओं का दावा है कि शारीरिक लक्षण नजर आने से पहले ही यह जांच गठिया की आशंका के बारे में बिल्कुल सही जानकारी दे सकती है. खास कर ओस्टियो आर्थराइटिस की पहचान में यह बेहद कारगर है. इससे गठिया का इलाज आसान हो जायेगा.
कम उम्र में भी गठिया : पद्मश्री डॉक्टर एसएन आर्या ने बताया कि पहले 50 साल से अधिक के उम्र के लोगों में गठिया की बीमारी होती थी. लेकिन, बदलते जीवनशैली का नतीजा है कि अब 40 साल के उम्र में भी इस रोग से लोग पीड़ित हैं. डॉक्टर आर्या ने बताया कि शुरुआती समय में ही इसकी पहचान कर ली जाये, तो इससे आसानी से बचा जा सकता है.
बिहार में गठिया रोग के सिर्फ दो ही डॉक्टर
गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ मनीष कुमार ने बताया कि बिहार में रूमेटोनोलॉजिस्ट के डॉक्टर अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम हैं. पूरे बिहार में महज दो ही गठिया के डॉक्टर हैं, जबकि देश में करीब 500 डॉक्टर हैं. उन्होंने बताया कि कई ऐसे मरीज जोड़ों में दर्द होने पर आर्थोपेटिक्स के डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं, जहां ऑर्थो के डॉक्टर गठिया रोग का लक्षण बता कर इलाज शुरू कर देते हैं. डॉ मनीष की मानें, तो गठिया रोग के लिए एमबीबीएस, एमडी फिर रूमेटोनोलॉजिस्ट में आगे की पढ़ाई की जाती है. ऐसे में कुल 11 साल लग जाते हैं, जबकि यहां पर एमबीबीएस या एमडी डॉक्टर ही गठिया रोग का इलाज कर रहे हैं. नतीजा पहचाने में दिक्कत आ रही है.
दिल के पास की चरबी किडनी मरीजों के लिए है जानलेवा
दिल के आसपास जमा हुई चरबी से हार्ट अटैक आने का खतरा अधिक बढ़ जाता है. ऐसे में कई बार मरीजों की मौत भी हो जाती है. ये बातें आइजीआइसी के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ एके झा ने रविवार को लिपिड एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित एक सेमिनार में कहीं. उन्होंने कहा कि बदलते जीवनशैली का नतीजा है कि लोगों में चरबी अधिक होने के साथ ही हार्ट रोग की बीमारी तेजी से बढ़ रही है. दो दिवसीय इस कार्यक्रम में पटना के अलावा दिल्ली, यूपी और मुंबई से करीब सैकड़ों डॉक्टरों ने शिरकत की और हार्ट रोग की आधुनिक तकनीक के बारे में बताया.
40 प्रतिशत लोग हार्ट रोग से पीड़ित : दिल्ली से आये डॉ रमण पूरी ने बताया कि बिहार सहित पूरे भारत में 40 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो हार्ट अटैक की बीमारी से पीड़ित हैं. खास बात तो यह है कि ये सभी लोग 45 साल से कम उम्र के हैं. उन्होंने बताया कि इन सभी लोगों में दिल के आसपास जमे चरबी के कारण हार्ट की बीमारी हो रही है और इसका असर किडनी पर पड़ रहा है. नतीजा हार्ट अटैक के साथ ही किडनी फेल होने की संभावना भी अधिक हो जाती है.
18 साल की उम्र में कराएं कोलेस्ट्रॉल की जांच
डॉ राजेश अग्रवाल ने बताया कि मधुमेह रोगियों को हार्ट रोग के बार में अधिक सचेत रहने की जरूरत है. मधुमेह रोगियों के खून में चरबी अधिक होती है. इसे डिसलिपिडिमिया कहते हैं. इसकी जानकारी सिर्फ खून जांच से ही हो सकती है. उन्होंने बताया कि अटैक से बचे और इसके लिए 18 साल की उम्र में ही कोलेस्ट्रॉल की जांच करायें. अगर किसी ने नहीं कराया, तो वह 25 साल की उम्र तक जरूर करा लें, ताकि कोलेस्ट्रॉल के बारे में पता चल सके और तुरंत शरीर की चरबी से छुटकारा मिल सकें.

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