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अंकल, खाना देने के बदले मारोगे तो नहीं!

पटना : दशहरा के त्योहार को राजू कभी भूल नहीं सकता है. उसको मिले जख्म को वह ताउम्र याद रखेगा. मेले की भीड़ में मां से हाथ छूटने के बाद, हमदर्द बने लोगों ने उसके ऊपर इस कदर जुल्म किया कि उसे याद करके वह गुमसुम हो जाता है. थोड़ी देर बाद अचानक रोने लगता […]

पटना : दशहरा के त्योहार को राजू कभी भूल नहीं सकता है. उसको मिले जख्म को वह ताउम्र याद रखेगा. मेले की भीड़ में मां से हाथ छूटने के बाद, हमदर्द बने लोगों ने उसके ऊपर इस कदर जुल्म किया कि उसे याद करके वह गुमसुम हो जाता है. थोड़ी देर बाद अचानक रोने लगता है.

खाने के लिए पूछने पर कहता है, अंकल मुझे खाना दोगे, तो मारोगे तो नहीं..? यह कहानी नहीं, सच्चई है मोतिहारी के राजू की. उसे कुछ लोग बीमार हालत में स्टेशन पर छोड़ कर फरार हो गये. जीआरपी ने उसे रोते हुए देखा और बाल सखा को सौंप दिया.

बाल सखा के कर्मचारी दीपक व रश्मि ने उसका प्राथमिक इलाज किया और उसके पिता को सूचना दी.

पहले से बंद थे 20 बच्चे : मोतिहारी के कोरिया टोला निवासी राजू दशहरे के दिन अपने पिता खजांची शाह व मां सुशीला देवी के साथ गांव के समीप मेला देखने गया था. भीड़ अधिक होने के कारण वह बिछड़ गया. काफी देर बाद भी जब मां नहीं मिलीं, तो मेले में झूले किनारे बैठ कर रोने लगा.

इतनी देर मे दो लोगों ने उससे रोने का कारण पूछा और मां से मिलाने का आश्वासन देकर अपनी बाइक पर बैठा लिया. इतनी देर में वह बेहोश हो गया. जब आंखें खुलीं, तो खुद को एक कमरे में बंद पाया. वहां पर छोटे-छोटे 20 बच्चे पहले से ही बंद थे. उन्हें औरंगाबाद, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर व अन्य जगहों से लाया गया था. उक्त दो मंजिला मकान जंगल के बीच में था, जहां पर बड़े कमरे में तीन व्यक्ति हाथों में डंडे लेकर लगातार पहरा देते थे.

बच्चों से शराब की बोतल पर विभिन्न ब्रांडों के रैपर व ढक्कन लगाने का काम का काम लिया जाता था. विरोध करने पर जम कर पिटाई की जाती थी. वहीं भोजन के नाम पर उबला आलू व गीला चावल दिया जाता था और दिन भर में पीने के लिए केवल पांच गिलास पानी दिया जाता था.

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