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शराबबंदी के फैसले से बढेगी नीतीश की लोकप्रियता, पर राजस्व की भरपाई व अादतों में बदलाव लाना बड़ी चुनौती

यह आलेख बिहार विधानमंडल में शराबबंदी से संबंधित विधेयक पारित होने के बाद लिखा गया है. इस आलेख में नीतीश सरकार के शराबबंदी के फैसले के कानूनी, व्यवहारिक व आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है. इस आलेख को लिखे जाने के बाद नीतीश कैबिनेट ने यह फैसला लिया कि राज्य में अब विदेशी शराब […]


यह आलेख बिहार विधानमंडल में शराबबंदी से संबंधित विधेयक पारित होने के बाद लिखा गया है. इस आलेख में नीतीश सरकार के शराबबंदी के फैसले के कानूनी, व्यवहारिक व आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है. इस आलेख को लिखे जाने के बाद नीतीश कैबिनेट ने यह फैसला लिया कि राज्य में अब विदेशी शराब भी नहीं मिलेगी.

स्मिता दीक्षित

नीतीश सरकार ने बिहार में शराब पर पाबंदी लगाने का फैसला लिया है. बिहार में सरकार चरणबद्ध ढंग से शराब पर पाबंदी लगायेगी. 1 अप्रैल 2016 से लागू होने वाले इस फैसले से महिला वोटरों का समर्थन हासिल करने में नीतीश कामयाब हो सकते हैं. खासतौर से ग्रामीण इलाकों में इस कदम से नीतीश की लोकप्रियता बढ़ सकती है. साल 2007 में शराब की उपलब्धता के लिए पंचायत स्तर पर किओस्क की व्यवस्था की गयी थी.सरकार को इससे 4000 करोड़ रुपये के राजस्व की आमदनी होती थी.

हालांकि यह प्लान बहुत महत्वाकांक्षी है. इसका अंदाजा इस बात से लगा सकतेहैं कि मंत्री शराब नहीं छूने को लेकर कसमें खा रहे हैं, लेकिन शराब का सेवन एक लत है जिसे सिर्फ प्रतिबंध लगाकर छुड़ाया नहीं जा सकता. खासतौर से बिहार जैसे राज्य में जहां पाबंदी के पहले शराब बहुत आसानी से उपलब्ध था.
पहली अप्रैल 2016 से आइएमएफएल की बिक्री सिर्फ शहरों तक सीमित रहेगी और गांवों में देसी शराबों पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा. अगर हम बिहार में शराब के टेंडरिंग के इतिहास को देखेंगे तो पायेंगे कि साल 2015 में बिहार ब्रीवरेज लिमिटेड ने शहरी इलाके में शराब के दुकान खोलने को लेकर टेंडर जारी किया था.
लेकिन हालिया पाबंदी का प्रभाव यह होगा कि शहरी लोगों आइएमएफएल तक पहुंच आसान होगा. वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग प्रतिबंधित शराब का सेवन करेंगे या फिर छूट वाले शराबों को अपने यहां स्टोर कर रखेंगे. अंतत: इसका असर बिहार के राजस्व पर पडे़गा.
यहां यह देखना बेहद जरूरी है कि पाबंदी किस तरह से लोगों में शराब के व्यसन को कम कर सकता है? बिहार से पहले जिन राज्यों ने प्रतिबंध लगाया वो कितने सफल हो पाये. साल 2015 में मणिपुर ने अवैध शराब की बिक्री पर प्रतिबंध वापस ले लिया था क्योंकि राजस्व का बहुत नुकसान झेलना पड़ा था. इसी वर्ष मणिपुर ने भी इस अवैध शराब की बिक्री कानून को वापस ले लिया. नागालैंड और असम की कहानी भी इससे मिलती जुलती है. गुजरात में प्रतिबंध के बावजूद शराब आसानी से मिल जाता है. हरियाणा को भी इसमें असफलता कामुंह देखना पड़ा.
हालांकि बिहार सरकार ने इसे लागू कराने के लिए अलग ढंग से एप्रोच कर रही है. सरकार शराब की लत को छुड़ाने के लिए व्यसन मुक्ति केंद्र की स्थापना करेगी. वहीं इस पर लगाने वाला जुर्माना भी बढ़ा दिया गया है. अगर अवैध शराब पीकर किसी की मौत हो जाती है तो ऐसे स्थिति में 10 साल से लेकर उम्र कैद की सजा हो सकती है. अधिकतम जुर्माने की राशि 10 लाख तय की गयी है. धारा 47,48, 50 और 53 बिहार-उड़ीसा एक्ट में संशोधन किया गया है.
समाज के सबसे गरीब तबके के लोगों को देशी शराब से सबसे ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है. शराब के इस अवैध बिक्री पर रोक लगाने के लिए बिहार से सटे सीमावर्ती इलाकों में स्मगलिंग को रोकना होगा. सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि नीतीश सरकार के इस फैसले का दूरगामी असर पड़ सकता है. हो सकता है कि देशी शराब पीकर मरने वाले घटनाओं में वृद्धि हो.

(नोट : लेखिका सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं.)

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