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बिजली युग के इंतजार में कटिहार का अमदाबाद

ढिबरी युग से सीधे सोलर युग में पहुंचा अमदाबाद प्रखंड, जेनरेटर से चल रहे हैं बीडीओ ऑफिस, थाना व तीन बैंक पुष्यमित्र पटना : यह कहानी कटिहार के अमदाबाद प्रखंड की है. 98 की बाढ़ में जो यहां की बिजली गुल हुई थी वह आज तक नहीं आयी है. यहां के 14 पंचायतों के 238 […]

ढिबरी युग से सीधे सोलर युग में पहुंचा अमदाबाद प्रखंड, जेनरेटर से चल रहे हैं बीडीओ ऑफिस, थाना व तीन बैंक

पुष्यमित्र

पटना : यह कहानी कटिहार के अमदाबाद प्रखंड की है. 98 की बाढ़ में जो यहां की बिजली गुल हुई थी वह आज तक नहीं आयी है. यहां के 14 पंचायतों के 238 वार्डों की यही कथा है. ब्लॉक कार्यालय, पुलिस स्टेशन, तीन-तीन बैंक और दूसरी सरकारी संस्थाएं जेनरेटर के भरोसे संचालित होती हैं और यह सिलसिला पिछले 18 सालों से जारी है.

हालांकि जब आप अमदाबाद पहुंचेंगे तो यह नहीं लगेगा कि यहां बिजली नहीं हैं. वहां बल्व जलते हैं, पंखे चलते हैं, कंप्यूटर चलते हैं, गाने बजते हैं और लोगों की छतों पर डिश एंटीना नजर आता है. आधुनिक दुनिया का कोई ऐसा उपकरण नहीं है, जो यहां नहीं दिखता और यह सब सोलर और जेनरेटर से चलता है.

अमदाबाद ब्लॉक ऑफिस के पास सुपन सॉव फूस की झोपड़ी में चाय-नास्ते और खाने की दुकान चलाते हैं. उनकी दुकान पर बल्ब भी लगे हैं और पंखा भी चलता है. इसके लिए उन्होंने सोलर पैनल लगवा रखे हैं. सुपन कहते हैं, 1998 से पहले प्रखंड मुख्यालय तक बिजली की सुविधा थी, 98 में आयी भीषण बाढ़ ने इस इलाके की बिजली व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया.

तब से आज तक यहां बिजली नहीं आयी. वहां बैठे दक्षिणी अमदाबाद पंचायत वासी मणिकांत मंडल कहते हैं, 98 से पहले भी बिजली सिर्फ अमदाबाद प्रखंड मुख्यालय और सड़क किनारे के कुछ गांवों में ही थी. इस ब्लॉक के दस से अधिक पंचायत ऐसे हैं, जहां आज तक कभी बिजली आयी ही नहीं. ये पंचायतों हैं लखनपुर, बैरिया, जंगला टाल, बैदा, उत्तरी अमदाबाद, पार दियरा, भवानीपुर, खट्ठी, चौकिया पहाड़पुर और दुर्गापुर. हालांकि बिजली नहीं होने का यह अर्थ नहीं है कि इलाके का सारा काम-काज ठप है.

यहां प्रखंड कार्यालय में तो सारा काम-काज होता ही है, इलाके में तीन-तीन बैंक शाखाएं और उनके कुछ ग्राहक सेवा केंद्र ठीक-ठाक संचालित हो रहे हैं. इन दफ्तरों में सारा काम-काज कंप्यूटर पर होता है. हां, इसके लिए इन दफ्तरों को लगातार जेनरेटर चलाना पड़ता है. अमदाबाद प्रखंड के बीडीओ रणधीर कुमार कहते हैं, वे यहां 8 महीने पहले आये हैं. बिजली नहीं होने के कारण सारा काम-काज जेनरेटर के भरोसे चलता है.

हालांकि जिस रफ्तार से विद्युतीकरण का काम चल रहा है, बहुत जल्द बिजली आ जाने की उम्मीद है.प्रखंड मुख्यालय में स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के एसिस्टेंट मैनेजर जार्ज लाकड़ा कहते हैं कि इस इलाके में उनकी दो शाखाएं हैं. एक यहां, दूसरी बलरामपुर में हैं. दोनों शाखाओं का सारा काम जेनरेटर के भरोसे चलता है. बैंक चलाने के लिए तो वे जेनरेटर चलवा लेते हैं, मगर एटीएम तभी तक काम करता है, जब तक बैंक खुला रहता है. पिछले दिनों इस इलाके में विद्युतीकरण का काम-काज जोर-शोर से शुरू हुआ है. जगह-जगह बिजली के पोल लगने लगे हैं.

कई जगह ट्रांसफारमर भी लगने लगे हैं. इससे इलाके के लोगों में उम्मीद जगी है कि अमदाबाद का बिजली युग भी अब शुरू हो जायेगा. बताया जाता है कि बैदा पंचायत में बिजली आ भी गयी है. हालांकि वहां बिजली आठ-नौ घंटे ही रहती है. रात को अक्सर गायब ही रहती है. यह उदाहरण उन्हें यह सोचने पर विवश करता है कि बिजली आ भी गयी तो क्या फायदा… रोशनी तो सोलर के भरोसे ही होगी.

सोलर ने बदल दी है दुनिया

जार्ज लाकड़ा और उनके कई सहकर्मी जो अमदाबाद में ही किराये पर मकान लेकर रहते हैं, ने 17-18 हजार रुपये में सोलर पैनल और बैटरी खरीद रखा है. जिनकी मदद से वे बल्व जलाते हैं, पंखे चलाते हैं, मोबाइल चार्ज करते हैं और टीवी देखते हैं.

यही फार्मूला प्रखंड कार्यालय के कर्मियों, पुलिस थाने के स्टॉफ और इलाके के समृद्ध निवासियों ने अपना रखा है. वैसे गरीब से गरीब लोगों के घरों में भी एक छोटा सा 25 वाट का सोलर पैनल मिल ही जाता है. जिसकी मदद से वे एक बल्व जलाते हैं और अपना मोबाइल चार्ज करते हैं.

यहां सोलर पैनल, सोलर उपकरणों, बैटरी और जेनरेटर संचालन का कारोबार ठीक-ठाक चलता है. सोलर उत्पादों की कई दुकानें संचालित होती हैं. जेनरेटर संचालकों ने भी दो रुपये प्रति बल्व प्रति दिन के हिसाब से कई गांवों में कनेक्शन दे रखा है. वे गरमियों के दिनों में रात बारह बजे तक पंखे चलाने की सुविधा भी देते हैं, इसका चार्ज कुछ अधिक होता है.

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