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लक्ष्मणपुर बाथे और कोर्ट के साथ शुरू हुआ पटना फल्मिोत्सव

लक्ष्मणपुर बाथे और कोर्ट के साथ शुरू हुआ पटना फिल्मोत्सवछह दिसंबर तक होगा आयोजनहिरावल जन संस्कृति मंच ने किया अायोजनलाइफ रिपोर्टर पटनाकालिदास रंगालय में शुक्रवार को सातवें पटना फिल्मोत्सव की शुरूआत हुई. इसके पहले दिन दो फिल्मों लक्ष्मणपुर बाथे और कोर्ट को दिखाया गया. इससे पहले फिल्मोत्सव का उद्घाटन प्राेफेसर प्रणय कृष्ण ने किया. कार्यक्रम […]

लक्ष्मणपुर बाथे और कोर्ट के साथ शुरू हुआ पटना फिल्मोत्सवछह दिसंबर तक होगा आयोजनहिरावल जन संस्कृति मंच ने किया अायोजनलाइफ रिपोर्टर पटनाकालिदास रंगालय में शुक्रवार को सातवें पटना फिल्मोत्सव की शुरूआत हुई. इसके पहले दिन दो फिल्मों लक्ष्मणपुर बाथे और कोर्ट को दिखाया गया. इससे पहले फिल्मोत्सव का उद्घाटन प्राेफेसर प्रणय कृष्ण ने किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वागत समिति की अध्यक्ष प्रोफेसर भारती एस कुमार ने किया. इस मौके पर प्रख्यात कवि आलोक धन्वा,अग्निपुष्प, अरशद अजमल, अवधेश प्रीत, अशोक, प्रोफेसर संतोष कुमार, आरएन दाश के अलावा अन्य कई लोग उपस्थित थे. इस मौके पर एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया. सभा का संचालन फिल्मोत्सव के आयोजक अभिनव ने किया. इस आयोजन को एमएस कलबुर्गी, वीरेन डंगवाल, सइद जाफरी, केएम किशन, हेमेंद्र नारायण और अरूण कुमार को समर्पित किया गया है.जनता के सहयोग से आयोजनइस मौके पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रोफेसर भारती ने कहा कि 2009 से इस फिल्मोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. प्रतिरोध के सिनेमा के तहत इसका आयोजन किया जाता है. यह एक विलक्षण प्रयास है. यह संतुष्टि की बात है कि व्यावसायिक सिनेमा के पैरेलल प्रतिरोध का सिनेमा शुरू हो रहा है. पूरा आयोजन जनता के सहयोग से होता है. देश में असहिष्णुता के मामले पर उनका कहना था कि आज देश में जो माहौल है वह प्रतिरोध का सशक्त हथियार है. यह भी हो सकता है कि ऐसे माहौल में आने वाले दिनों में इस पर बैन लग जाये. बिहार के बारे में उनका कहना था कि यहां दमन और प्रतिरोध दोनों का ही इतिहास रहा है. वहीं उद्घाटन संबोधन में प्रणय कृष्ण ने कहा कि आज देश को आगे बढ़ने के लिए किस तरह की स्मृति की जरूरत है? इस बात पर सोचना होगा. पत्रकारों पर हो रहे हमले पर उनका कहना था कि लेखकों की आवाज को दबाया जा रहा है. इसे षडयंत्र कहने वाले भावनाओं को नहीं समझ सकते हैं. जिन्होंने लेखकों की हत्या की है वह उनके व्यक्तिगत दुश्मन नहीं बल्कि वह परंपरा के दुश्मन थे. देश के बुद्धजीवियों ने मिसाल कायम की है. देश का लेखक आकाश की तरह फैला हुआ मानस है. सबसे पहली बार गोरखपुर से शुरू हुए इस आयोजन काे लेकर उनका कहना था कि ऐसे आयोजनों के प्रति लोगों का रूझान देखने को मिल रहा है. यह आयोजन देश का 51वां आयोजन है.सबूत का अभाव कहती लक्ष्मणपुर बाथेफिल्मोत्सव के पहले दिन युवा निर्देशक ओमप्रकाश दास की फिल्म लक्ष्मणपुर बाथे का प्रदर्शन किया गया. बिहार के अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे में एक दिसंबर 1997 को 58 गांव वालों का मर्डर हाे जाता है. लंबे समय तक चले अदालती कार्यवाही के बाद इस नरसंहार के आरोपियों को सबूत के अभाव में छोड़ दिया जाता है. इसके बाद बिहार में एक के बाद एक कई नरसंहार होते हैं. इस फिल्म के जरिये यह सवाल उठाया गया है कि सेनारी और बारा जैसे मामलों में सबूत का अभाव नहीं होता है लेकिन अन्य में ऐसी बात नहीं है एेसा क्यों?देर ही अंधेर है को स्पष्ट करती है कोर्टचैतन्य तम्हाणे द्वारा निर्देशित कथा के केन्द्र में हैं दलित लोकगायक नारायण काम्बले (वीरा साथीदार), जिनसे दर्शक का पहला परिचय फिल्म निम्नवर्गीय बस्ती में चल रही नुक्कड़ सभा के मंच पर उनके सत्ता और सरकार को सीधे चुनौती देते ओजस्वी जनगीत के माध्यम से करवाती है लेकिन इस जनसभा के खत्म होने से पहले ही पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है और यहीं कथा में राज्यसत्ता का प्रवेश होता है. उनकी गिरफ्तारी की एक विचित्र वजह सामने है. नारायण पर शीतलादेवी झोपड़पट्टी के सफाई मजदूर वासुदेव पवार, जिसकी मौत गटर में उतरकर सफाई का कार्य करते हुए जहरीली गैस का शिकार होकर हुई है, को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगता है. जिसमें कहा जाता है कि पिछले दिनों उसी बस्ती में हुई सभा में उनके द्वारा गाए लोकगीत, जिसमें कथित रूप से कहा गया है कि सिर पर मैला ढोने जैसा अपमानजनक कार्य करने से मौत भली, को सुनकर वासुदेव ने जानबूझकर अपनी जान दी है. इसके साथ ही शुरू होती है अदालती कार्यवाही की असमाप्त प्रक्रिया जिसे फिल्मकार ने बारीकी से फिल्माया है. औपनिवेशिक कानूनों की सरकार द्वारा अपने हित में मनमानी व्याख्या, बचाव पक्ष द्वारा बेल की निरंतर खारिज होती अपीलें और इस सबके बीच न्याय पाने की असमाप्त प्रक्रिया. उस पुरानी कहावत को याद करें जिसमें भारतीय न्याय व्यवस्था के बारे में कहा गया था कि यहां ‘देर है अंधेर नहीं’, तो ‘कोर्ट’ इस प्रक्रिया के दोष स्पष्ट करते हुए बताती है कि अधिकतर मामलों में यहाँ दरअसल ‘देर ही अंधेर है. ——- बॉक्स मैटर——-फिल्मोत्सव में मधुबनी पेंटिंग को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष रूप से आयोजन किया गया. इस मौके पर आयोजन के पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक आभा देवी और पुष्पा कुमारी करीब दस फिट के बोर्ड पर मधुबनी पेंटिंग करेंगी. आयोजन के पहले दिन इस पेंटिंग की शुरूआत करते हुए पुष्पा कुमारी ने सीता स्वयंबर को बनाना शुरू किया वहीं आभा देवी ने राधाकृष्ण और सर्व शिक्षा अभियान के उपर अपनी पेंटिंग को बनाने की शुरूआत की. दरभंगा की रहने वाली दोनों ही इन महिला कलाकारों ने राज्य के कई हिस्से में अपनी पेंटिंग का प्रदर्शन किया है. इसके अलावा मधुबनी पेंटिंग को लेकर एक प्रदर्शनी भी लगायी गयी. जिसे वहां आये लोगों ने सराहा.होते रहने चाहिए ऐसे आयोजनदोनों ही फिल्में अच्छी लगी. दोनों में ही सच्चाई को दर्शाया गया है. जो भी चीजें हम आम जिंदगी में देखते सुनते हैं उनको ही यहां फिल्मों के जरिये दिखाया गया है.रवि कुमार प्रजापति, चितकोहरासामाजिक रूप से जगाने के लिए ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए. इन फिल्मों में छुपे हुए पहलूओं को सामने लाया जाता है. ऐसे आयोजन होने चाहिए.राजू सिंह, पुनाईचक

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