24.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भोजपुरी ही नहीं हिंदी और अंग्रेजी के भी बड़े कवि थे रघुवीर नारायण

भोजपुरी ही नहीं हिंदी और अंग्रेजी के भी बड़े कवि थे रघुवीर नारायण- साहित्य सम्मेलन ने जयंती पर काव्यांजलि के साथ किया स्मरण पटना. ‘सुंदर सुभूमि भैया भारत के देशवा के, मोरे प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया’, अर्थात ‘बटोहिया’ गीत के अमर रचनाकार कविवर रघुवीर नारायण, भोजपुरी के ही नहीं हिंदी और अंग्रेजी के […]

भोजपुरी ही नहीं हिंदी और अंग्रेजी के भी बड़े कवि थे रघुवीर नारायण- साहित्य सम्मेलन ने जयंती पर काव्यांजलि के साथ किया स्मरण पटना. ‘सुंदर सुभूमि भैया भारत के देशवा के, मोरे प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया’, अर्थात ‘बटोहिया’ गीत के अमर रचनाकार कविवर रघुवीर नारायण, भोजपुरी के ही नहीं हिंदी और अंग्रेजी के भी बड़े कवि थे. 20वीं सदी के आरंभिक काल के वे एक महत्वपूर्ण साहित्यिक हस्ताक्षर थे. बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन के निर्माण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था. उन्ही की प्रेरणा से बनैली के राजा कृत्यानंद सिंह ने सम्मेलन को 1937-38 में, दस हजार रुपये की एक मुश्त राशि प्रदान की थी, जिससे सम्मेलन-भवन का निर्माण हुआ था. ‘बटोहिया’ गीत ने अपने काल में ही लोकप्रियता के शिखर पर था. मर्म को अंतर तक भेद देने वाला वह गीत आज भी कठोर-मन को भी उद्वेलित कर डालता है. यह गीत इस बात का भी प्रमाण है कि एक सफल गीत भी किसी रचनाकार को अमर कर सकता है. यह संदेश देता है कि थोड़ा ही लिखो, पर ऐसा लिखो कि वह समाज के भीतर गहरे उतर जाये और फिर कभी न निकले. यह विचार शुक्रवार को कवि की जयंती के अवसर पर, साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने व्यक्त किये. डा सुलभ ने कहा कि रघुवीर बाबू में साहित्य एक संस्कार के रूप में आया था. उनके पितामह पुण्य-श्लोक कृपा नारायण भी अपने समय के यशस्वी कवि-साहित्यकार और हिंदी तथा फारसी के मर्मज्ञ विद्वान थे. समारोह का उद्घाटन करते हुए प्रसिद्ध लेखक जियालाल आर्य ने कहा कि यों तो बाबू रघुवीर नारायण ने भोजपुरी, हिंदी और अंग्रेजी में बहुत कुछ लिखा किंतु ‘बटोहिया’ गीत ने उन्हें साहित्य-जगत में अमर कर दिया. उनका यह गीत भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के सिपाहियों का प्रेरणा गीत बन गया था. इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि, उन्हें बाबू रघुवीर नारायण का सान्निध्य प्राप्त हुआ था. वे प्रायः ही साहित्यिक चर्चाओं के लिए और विशेष रूप से आचार्य शिवपूजन सहाय से मिलने आया करते थे. उनका बटोहिया गीत उच्च विद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मिलित था. सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, डॉ शंकर प्रसाद, रघुवीर बाबू के पौत्र प्रताप नारायण, पौत्र-वधु उर्मिला नारायण, रामदास राही तथा प्रदीप उपाध्याय ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये. आरंभ में, रघुवीर बाबू की प्रपौत्री नुपूर नारायण ने बटोहिया गीत का सस्वर पाठ किया. इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ सुप्रसिद्ध कवि राज कुमार प्रेमी ने बटोहिया के तर्ज पर अपनी भारतवसिया शीर्षक गीत से किया. वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी गजल का पाठ करते हुए कहा कि, ‘गाता रहा हूं गीत न जाने क्यों अब तलक/ गाता रहूंगा जब तलक ये सांस साथ है/ ‘करुणेश’ कड़ी धूप में तुम हो न अकेले/ रस्ते में गुलमूहर है, अमलतास साथ है’. शायर आरपी घायल ने कहा कि, ‘मुद्दतों से आईने में खुदको देखा ही नही/ मेरे बदले आईने में वो दिखाई दे गया/ जिंदगी में जब कभी ठोकर लगी घायल मुझे/ मेरे दिल का टूटना उसको सुझाई दे गया’. पं शिवदत्त मिश्र ने इन शब्दों में भारत की अतुल्य शक्ति का परिचय दिया कि, ‘शक्ति अथाह है भारत की/ दुश्मन का तरकश खाली है/ संस्कृति सनातन है इसकी / हस्ती नहीं मिटने वाली है’. सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डॉ नरेश पाण्डेय चकोर, कमलेन्द्र झा ‘कमल’, डॉ विनय कुमार विष्णुपुरी, जगदीश राय, दिनेश दिवाकर, हृदय नारायण झा, आर प्रवेश, कवयित्री नम्रता मिश्र तथा कृष्ण कन्हैया भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं की वाह-वाहियां लूटने में सफल रहे. मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें