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बिहटा वन देवी का स्टोरी

बिहटा वन देवी का स्टोरी विंध्याचल माता का अंश है बिहटा का वन देवी मात्र दर्शन करने से होता है सारे कष्टों का निवारणमाेनु कुमार मिश्र, बिहटा. आदिकाल से भारत धर्म परायण देश रहा है. वैसे तो यहां सभी धर्म-संप्रदाय के लोग अपने अपने धर्म के अनुसार अपने इष्ट देवताओं का पूजा अर्चना करते हैं,लेकिन […]

बिहटा वन देवी का स्टोरी विंध्याचल माता का अंश है बिहटा का वन देवी मात्र दर्शन करने से होता है सारे कष्टों का निवारणमाेनु कुमार मिश्र, बिहटा. आदिकाल से भारत धर्म परायण देश रहा है. वैसे तो यहां सभी धर्म-संप्रदाय के लोग अपने अपने धर्म के अनुसार अपने इष्ट देवताओं का पूजा अर्चना करते हैं,लेकिन चमत्कारिक रूप से सभी धर्मों के लोगों ने मां भगवती (आदि शक्ति) को एक विशिष्ट स्थान दे रखा है. साल में दो बार पूरा देश मां भगवती की पूजा- आराधना बड़े धूमधाम से करते हैं. शारदीय व दूसरा चैती नवरात्र मां दुर्गा भगवती की शक्ति पीठ बड़े- बड़े मंदिर व पिंड पूरे देश में स्थित है. उसी कड़ी में पटना जिले के दानापुर अनुमंडल में बिहटा रेलवे स्टेशन से चार किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में अमहारा व खगरपुर (कंचनपुर) के बिचों- बीच स्थापित मां भगवती की मंदिर विगत चार सौ वर्षों से भक्तों के श्रद्धा व भक्ति का केंद्र बनी हुई हैं. यहां सैकड़ो वर्ष पूर्व से वैदिक व तांत्रिक विधि से पूजा होती आ रही है. भक्तों का आम धरना है की देवी की दर्शन मात्र से मन की सारी मुरादे पूर्ण होती है. वहीं मनोकामनाएं पूर्ण होने पर भक्त दूर-दूर से आकर मां मन्नतें उतारते हैं. मंदिर में प्रत्येक रविवार व मंगलवार को ज्यादा भक्तों की भीड़ उमड़ती है. साथ ही प्रत्येक पूर्णिमा, दीपावली चतुर्दशी, फाल्गुन की पूर्णिमा, माघ की वसंत पंचमी को विशिष्ट पूजा की जाती है. प्रत्येक त्रियोदशी को रात्रि में माता का भव्य जागरण व भंडारा का आयोजन विगत कई वर्षों से चलता आ रहा है. मंदिर के पुजारी हरिओम मिश्र ने बताया की माता विंध्याचल माई का शक्ति पीठ है. यहां दर्शन मात्र से ही सारे कष्ट से छुटकारा मिलता है. निर्जन व जंगल में स्थापित मंदिर में आज तक किसी को सर्प या बिच्छू नहीं काटे हैं और नहीं किसी को किसी प्रकार का अहित हुआ है. बताया जाता है की विगत चार सौ वर्ष पूर्व मिश्रीचक( राघोपुर) के पंडित श्याम जी के पुत्र विध्यानंद बाबा विंध्याचल माई के बहुत बड़े उपासक थे. उन्होंने विंध्याचल में तीन पुरश्चरन तक मां विंध्याचल भगवती की उपासना कर मां को खुश कर वरदान प्राप्त किया था. मां भगवती द्वारा प्राप्त वरदान के बल पर वह बहुत बड़े शास्त्रार्थी हो गये. उन्होंने अपने जमाने के बड़े – बड़े शास्त्रार्थियों को भगवती के वरदान के बल पर शास्त्रार्थ में हराया. जनश्रुति के अनुसार विध्यानंद बाबा जब तक स्वस्थ रहे तब तक नियमित विंध्याचल जाते रहें. अस्वस्थ होने पर देवी मां से निवेदन करते हुए कहा की मां अब मैं अस्वस्थ हो गया हूं. यहां आने में असमर्थ हूं. दूसरे दिन रात्रि के स्वप्न में माँ भगवती की आज्ञा हुई की तुम मेरे पिंड का थोड़ा अंग ले जाकर अपने घर के पास स्थापित करो. मां की आज्ञा के बाद बाबा थोड़ा सा पिंड का अंग लाकर निर्जन स्थान अमहारा मौजा के जंगल में देवी की अंग से मां भगवती की स्थापना की और तब से यहां भक्तों की भीड़ लगने लगी. देवी के लंबे अंतराल तक विधिवत मंदिर नहीं बना. भक्तों का ऐसा विश्वास रहा की वन देवी माता वन में ही रहना पसंद करती है. 1959 में भगवान दास त्यागी नामक महात्मा द्वारा ज्येठ्ठ पूर्णिमा को वृहत यज्ञ का आयोजन किया गया. यज्ञ समाप्ति के बाद महात्मा द्वारा ही ईंट का मंदिर बनाया गया.

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