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आधुनिक हिंदी साहत्यि के इतिहास लेखन की जरूरत : प्रो देवेन्द्र चौबे

आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की जरूरत : प्रो देवेन्द्र चौबे – पीयू हिंदी पीजी विभाग में छात्रों से रू-ब-रू हुए जेएनयू के प्रोफेसर संवाददाता, पटना ‘आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की काफी आवश्यकता है. आधुनिक साहित्य का आरंभ 1857 के बाद का मानते हैं तो अभी तक का काल आधुनिक हिंदी का […]

आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की जरूरत : प्रो देवेन्द्र चौबे – पीयू हिंदी पीजी विभाग में छात्रों से रू-ब-रू हुए जेएनयू के प्रोफेसर संवाददाता, पटना ‘आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की काफी आवश्यकता है. आधुनिक साहित्य का आरंभ 1857 के बाद का मानते हैं तो अभी तक का काल आधुनिक हिंदी का काल कहा जा सकता है. इसी को समकालीन साहित्य भी कह सकते है. इस दौरान इतिहास में पांच उत्थान हुए इन सब का प्रभाव हिंदी साहित्य पर भी पड़ा.’ पटना विश्वविद्यालय के पीजी हिंदी विभाग में ‘आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की जरूरत’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया. इतिहास का पहला ‌उत्थान का काल 1857 माना जाता है जब देश में आजादी के लिए पहली क्रांति है. दूसरा काल जब 1947 में देश आजाद हुआ. तीसरा काल 1956 में जब अम्बेदकर ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया. 1967 में जब नक्सलवादी आंदोलन शुरू हुआ, गैर कांग्रेसी सत्ता देश में आई. इसके बाद 1990 नई आर्थिक नीति लागू हुई , भूमंडलीकरण, ‌ उदारीकरण का दौर आया. 2000 के बाद भूमंडलीकरण आगे बढ़ा. विभागाध्यक्ष प्रो मटुकनाथ चौधरी ने कहा कि एक परिवर्तन जो बाहर दिखाई देता है उसका कारण काफी गहराई में होता है. उन कारणों को अगर साहित्यकार देख पाता है और अभिव्यक्त कर पाता है तो साहित्य में गहराई आएगी और यर्थात के करीब साहित्य होगा. कार्यक्रम में डॉ भृगनंदन त्रिपाठी, डॉ नरेंद्र तिवारी समेत कई अन्य लोग मौजूद थे. इस मौके पर हुए सवाल जवाब साम्या, समृद्धि व कृष्णा ने उनसे सवाल किये जिनका ‌‌उन्होंने बखूबी जवाब दिया.

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