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प्रचार में भी बढ़ी जातीय नेताओं की डिमांड

पटना : जाति का जोर सिर्फ राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारे में ही नहीं दिखता, चुनाव प्रचार में भी यह साफ-साफ दिखता है. चुनाव क्षेत्र को ध्यान में रख कर नेताओं के कार्यक्रम तय होते हैं. जिस चुनाव क्षेत्र में जिस जाति का बाहुल्य, वहां उसी जाति के कद्दावर नेता की मांग. हर बड़ी पार्टियों […]

पटना : जाति का जोर सिर्फ राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारे में ही नहीं दिखता, चुनाव प्रचार में भी यह साफ-साफ दिखता है. चुनाव क्षेत्र को ध्यान में रख कर नेताओं के कार्यक्रम तय होते हैं. जिस चुनाव क्षेत्र में जिस जाति का बाहुल्य, वहां उसी जाति के कद्दावर नेता की मांग.
हर बड़ी पार्टियों के दफ्तर में कुछ कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेवारी सौंपी गयी है कि वे विधानसभा क्षेत्रवार सूची बनाएं कि कहां किस जाति की बहुलता है. रजिस्टर में जातियों के नाम के साथ क्षेत्र का नाम दर्ज होता है. जातियों में भी ज्यादा जोर अति पिछड़ी जाति, मल्लाह, चौरसिया, नोनिया, तांती और कुम्हार के साथ-साथ दलित और दलितों में भी उपजातियों के नाम दर्ज हो रहे हैं.
चुनावी सरगरमी के बीच आरक्षण का मुद्दा उठा. सबने इस पर बयान दिये. लालू प्रसाद ने आरएसएस पर जोरदार हमला किया. तब भाजपा को यह लगने लगा कि जो जातियां आरक्षण के दायरे में आती हैं, उसके साथ और जुड़ाव की जरूरत है. लेकिन, यह सिर्फ भाजपा की कहानी नहीं है. चुनाव के वक्त, एक बार फिर बिहार में सभी पार्टियां जातियों तथा उसकी उप जातियों के बीच जा रही हैं. महागंठबंधन की ओर से भी भाजपा को जवाब देने के लिए ऐसे नेता उतारे जाने वाले हैं, जो अपनी जातियों में रसूख रखते हैं.
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, दोनों गंठबंधनों की यही रणनीति रहेगी कि वैसे नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा जाये, जो अति पिछड़ा वर्ग या दलित का जाना-पहचाना चेहरा हो. यही नहीं, उनमें वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता भी हो.
पटना में एक पार्टी कार्यालय में एक पूर्व विधायक ने अपना परिचय इस तरह दिया- मैं दलित का नेता हूं. मुङो सहनी और गंगोता जातियों का भी समर्थन हासिल है. उनके कहने का मतलब था कि वह खुद दलित हैं और साथ में अति पिछड़ी जातियों का उन्हें समर्थन है.
भाजपा ने अति पिछड़ी जातियों के महत्व को समझते हुए वैश्य समुदाय में आने वाली तेली जाति को सात, कानू को तीन और तमोली को दो टिकट दिया है. ये अति पिछड़ी जातियां हैं. इसके अलावा एक चंद्रवंशी को टिकट दिया गया है. पार्टी के कास्ट रूम में लखीसराय, रजाैली और गोविंदपुर के उम्मीदवारों से अनुरोध आ रहा है कि वह राज्यस्तरीय चंद्रवंशी नेता को प्रचार के लिए भेजें.
सभी पार्टियों में अत्यंत पिछड़े वर्ग की करीब 25 जातियों से अपनी ही बिरादरी के नेताओं को प्रचार में भेजने की मांग की जा रही है. मसलन, एक केंद्रीय की कुर्मी नेता के तौर पर मांग छपरा और गोपालगंज से ज्यादा आ रही है.सभी पार्टियों में वैसे नेताओं की भी लंबी लिस्ट है, जो महादलित समुदाय के रविदास, मुसहर, धोबी और डोम जातियों के बीच जाकर अपनी बात रख सकें.
एक राजनीतिक दल से जुड़े एक नेता अपनी पीड़ा बताते हैं. बोले, बढ़ई, नाई, और सहनी समुदाय की 20 उप जातियों के राज्यस्तरीय नेताओं के रजिस्टर में नाम दर्ज किये गये हैं. ऐसे सौ विधानसभा क्षेत्रों का चार्ट भी तैयार है, जिसमें उम्मीदवारों ने प्रचार के लिए उप जातियों के नेताओं को भेजने की बात कही है.

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