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500 करोड़ खर्च कर दिया, पर टिकट के लिए लगवा रहे चक्कर

हाल अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय का पटना : कंकड़बाग के अशोक नगर निवासी ऋतुराज सिंह ने बेली रोड पर नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय को लेकर काफी कुछ सुन रखा था. उनका परिवार भी काफी दिनों से इसे देखना चाहता था. किसी तरह गुरुवार को समय निकाल कर उनका पूरा परिवार संग्रहालय पहुंचा, लेकिन पहुंचते ही गेट पर खड़े […]

हाल अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय का
पटना : कंकड़बाग के अशोक नगर निवासी ऋतुराज सिंह ने बेली रोड पर नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय को लेकर काफी कुछ सुन रखा था. उनका परिवार भी काफी दिनों से इसे देखना चाहता था. किसी तरह गुरुवार को समय निकाल कर उनका पूरा परिवार संग्रहालय पहुंचा, लेकिन पहुंचते ही गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मियों से उनको टका सा जवाब मिला कि टिकट यहां नहीं पुराने संग्रहालय में मिलेगा. उसके बाद ऋतुराज फिर रिक्शा पकड़ कर पुराने संग्रहालय पहुंचे और टिकट लेकर वापस लौटे. इस दौरान करीब आधे तक उनका परिवार बाहर गेट पर ही खड़ा रहा. रिक्शे पर 60 रुपये अतिरिक्त खर्च हुए सो अलग.
पर किसी काम का नहीं
जी हां, राज्य सरकार इसी कार्यप्रणाली से काम करती है. ड्रीम प्रोजेक्ट को स्थापित करने के लिए सरकार करोड़ों रुपये तो खर्च कर देती है, लेकिन उस प्रोजेक्ट को कैसे चलाया जाय, इस पर कोई होमवर्क नहीं होता. इसी का परिणाम है कि डेढ़ महीने बाद भी अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय व्यवस्थित नहीं हो सका है. राज्य के दूसरे जिले सहित बाहर से आने वाले लोगों को संग्रहालय देखने में अब भी परेशानी झेलनी पड़ रही है.
टिकट के लिए चक्कर
अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय देखने की इच्छा लेकर आने वाले लोगों को टिकट के लिए चक्कर लगाना पड़ रहा है. नये संग्रहालय के लिए अब तक नया टिकट नहीं बनाया गया है. पुराने संग्रहालय के टिकट पर ही नये संग्रहालय में इंट्री दी जा रही है, इसलिए नये संग्रहालय में आने के लिए आगंतुकों को टिकट के लिए पुराने संग्रहालय में भेज दिया जाता है.
नहीं बना टिकट काउंटर
नये संग्रहालय का करीब डेढ़ महीने पहले 8 अगस्त को उद्घाटन किया गया था. फिलहाल इसकी दो गैलरी खोली गयी है. इन दोनों गैलरियों में कई जानवरों की कलाकृतियां, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, मौर्य साम्राज्य व साइंस रूम की चर्चा है. पूरे संग्रहालय को बनाने में सरकार ने पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिया, लेकिन लोगों की सुविधा के लिए अब तक एक अदद टिकट काउंटर तक नहीं बना पायी है.
एफएम पर भी हो रहा प्रचार
को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए सरकार एफएम पर भी प्रचार करा रही है. इस प्रचार के चलते बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचने लगे हैं, मगर अव्यवस्था देख कर काफी दुखी भी हो रहे हैं.
यह है प्रबंधन का तर्क
हालांकि अंतरराष्ट्रीय बिहार म्यूजियम में टिकट काउंटर नहीं होने के पीछे म्यूजियम प्रबंधन का तर्क भी बड़ा अजीब है. उनका कहना है कि काउंटर नहीं बनने की वजह से अभी यहां पर टिकट नहीं मिल पा रहा, लेकिन पुराने संग्रहालय स्थित टिकट काउंटर से टिकट मिल रहा है.
वहां पंद्रह रुपये के एक ही टिकट पर दोनों संग्रहालय में घूमा जा सकता है. नये संग्रहालय में टिकट काउंटर की उपलब्धता को लेकर प्रबंधन कुछ नियत समय भी नहीं बता पा रहा है. दोनों संग्रहालय का प्रभार फिलहाल एक ही निदेशक संभाल रहे हैं.
थोड़ी दिक्कत हो रही है. जल्द ही उपाय निकाल लिया जायेगा. कंप्यूटर, स्टाफ व अन्य सिक्यूरिटी के लिए टेंडर किया गया है. एक हफ्ते के अंदर प्रक्रिया पूरी कर टिकट की समस्या का समाधान कर लिया जायेगा. फिलहाल लोगों को एक ही टिकट पर दो संग्रहालय देखने का मौका है.
जेपीएन सिंह, निदेशक, अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम

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