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नाम में बहुत कुछ रखा है, अनिता को अपना असली नाम पाने में लगे 21 साल
पटना: कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है. लेकिन अपने नाम में सिर्फ सुधार करवाने में छात्रा को 21 साल का लंबा समय लग गया. यही नहीं इस दौरान छात्रा को 70 से 80 हजार रुपये भी खर्च करना पड़ा. यह मामला बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का है. इंटर काउंसिल के कुछ कर्मचारियों […]
पटना: कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है. लेकिन अपने नाम में सिर्फ सुधार करवाने में छात्रा को 21 साल का लंबा समय लग गया. यही नहीं इस दौरान छात्रा को 70 से 80 हजार रुपये भी खर्च करना पड़ा. यह मामला बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का है. इंटर काउंसिल के कुछ कर्मचारियों की लापरवाही के कारण अनिता कुमारी के नाम के सुधार में पूरे 21 साल लग गये. 1992-94 सत्र की अनिता कुमारी इंटर की परीक्षा तो अच्छे नंबर से पास कर गयी, लेकिन उसके और उनके पिता के नाम की स्पेलिंग में गलती हो गयी. छात्रा अपने व पिता का नाम सुधार करवाने के लिए वर्षों इंटर काउंसिल का चक्कर लगाती रही. बाद में हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद नाम में सुधार हो पाया.
मूल प्रमाणपत्र मिलने पर गलती का पता चला
अनिता कुमारी अगर अपने मूल प्रमाणपत्र लेने इंटर काउंसिल नहीं जाती, तो गलती का पता भी नहीं चलता. इंटर काउंसिल के कर्मचारियों की इस गलती का पता पास होने के 16 सालों के बाद चला. इसके बाद नामों को सुधरवाने में पूरे पांच साल लग गये. इस तरह 21 साल गुजर गये.
समिति ने तीन कर्मचारियों को किया सस्पेंड
अनिता कुमारी के नाम में सुधार नहीं करने और लापरवाही बरतने के कारण बाद में समिति ने तीन कर्मचारी प्रमोद सिंह, सुरेश गुप्ता व तुलसी ऋषि देव को सस्पेंड कर दिया. अनिता कुमारी को इंटर का मूल प्रमाणपत्र भी मिल गया, लेकिन इस सारे प्रकरण में अनिता कुमारी को 70 से 80 हजार रुपये खर्च करने पड़ गये.
इंटर काउंसिल दौड़ते रहे
छात्रा के िपता गौतम रावत ने बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद इंटर काउंसिल ने पिता के नाम में सुधार तो कर दिया, लेकिन छात्रा के नाम में सुधार नहीं किया. इसके बाद हम दुबारा इंटर काउंसिल दौड़ते रहे. बार-बार कॉलेज से कागजात लाने को बोलते रहे. सारे कागजात जमा किये जाने के बाद भी काम नहीं होने पर दुबारा हाइकोर्ट गये. इसके बाद 17 अगस्त, 2015 को कोर्ट ने समिति को आदेश दिया कि एक सप्ताह के अंदर छात्रा के मूल प्रमाणपत्र में नाम में सुधार कर छात्रा काे उपलब्ध करवाएं. इसके बाद 30 अगस्त, 2015 को हमें अनिता कुमारी के नाम का सही मूल प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ है.
हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया
डीसी इंटर कॉलेज, बरहरिया, सीवान की छात्रा अनिता कुमारी के सारे कागजत में अनिता कुमारी नाम दर्ज था. लेकिन, जब 2010 में अनिता कुमारी ने मूल प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया, तो उसमें अनिता कुमारी की जगह सुनिता कुमारी और पिता गौतम रावत की जगह जकन यादव हो गया था. इसके बाद मूल प्रमाणपत्र में सुधार करने के लिए छात्रा ने आवेदन दिया. मामला काफी पुराना होने के कारण इसमें कोई भी काम नहीं करना चाहता था. कर्मचारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया. नाम सुधरवाने के लिए अनिता कुमारी लगातार इंटर काउंसिल का चक्कर लगाती रही, लेकिन वहां के कर्मचारी उसे टालते रहे. इसके बाद अनिता ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसके पिता गौतम रावत ने बताया कि हाइकोर्ट ने भी इंटर काउंसिल को 2011 में चार महीने के अंदर मूल प्रमाणपत्र के साथ तमाम कागजात सही करके देने का आदेश दिया. लेकिन हाइकोर्ट के आदेश को भी इंटर काउंसिल ने नहीं माना. गौतम रावत ने बताया कि एक नाम में सुधार करवाने में मुझे 70 हजार रुपये खर्च करने पड़ गये.
यह बहुत ही गलत हुआ. लेकिन हम अब इस बात का ध्यान रखेंगे कि इस तरह की दिक्कतें अब दूसरे किसी छात्र के साथ नहीं होगी. सारे कर्मचारियों से काम का हर दिन का ब्योरा अब लिया जा रहा है. अनिता कुमारी का केस बोर्ड कर्मचारियों के लिए एक सबक है.
लालकेश्वर प्रसाद सिंह, अध्यक्ष, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति
अनिता कुमारी के संबंध में जो भी कागजात थे, समय पर ही काउंसिल को उपलब्ध करवा दिया गया था. मैट्रिक के साथ इंटर के नामांकन आदि का भी प्रमाणपत्र दे दिया गया था. फिर भी इतना समय लग गया.
सुरेश प्रसाद यादव, पूर्व प्राचार्य, डीसी इंटर कॉलेज, सीवान
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