विजय कुमार यादव
पूर्व विधायक , बिहारशरीफ
बिहारशरीफ विधानसभा क्षेत्र का दो बार तथा नालंदा लोकसभा क्षेत्र का तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके जिले के पुरानी पीढ़ी के नेताओं में से एक विजय कुमार यादव अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं. सक्रिय राजनीति से अलग रहने के मुद्दे पर वह कहते हैं कि उनके लिए जिंदा रहते राजनीति से अलग होना असंभव है. राजनीति में पहले की तरह उनकी रुचि बरकरार है, पर अब राजनैतिक दलों की कार्यप्रणाली एवं इसके संचलाकों की विचारधारा में बदलाव आने की वजह से उनके जैसे लोगों की पूछ नहीं है. उन्होंने बताया कि वर्ष 1967 एवं 1969 का विधानसभा चुनाव बहुत कम पैसे में लड़ा था. उस समय जनता भी उम्मीवारों को लड़ने के लिए चंदा देती थी. तब चुनाव प्रचार भी आज जितना हाईटेक नहीं था. लेकिन, उस समय के प्रचार में मतदाता भी शामिल रहते थे. आज के प्रचार में सबकुछ है, लेकिन मतदाता कही नहीं है.
प्रत्याशियों का चयन जमीनी स्तर पर जनहित में किये गये कार्य, चारित्रिक विशेषता, सिद्धांत एवं उसके संघर्ष को आधार बनाकर किया जाता था. जनता से जुड़े गरीब भी चुनाव जीत जाते थे. सिद्धांत की बात आज अप्रासांगिक हो गयी है. पैसे खर्च कर कोई भी किसी भी दल का टिकट लेने के साथ ही चुनाव जीत भी लेता है. जन सेवा की भावना का अब न तो टिकट के लिए और ना ही जीत के लिए कोई महत्व रह गया है. जनता भी इसके लिए कम दोषी नहीं मानी जायेगी. उसके लिए वोटिंग का मूल आधार जाति व व्यक्तिगत लाभ रह गया है.
इस बुराई को रोकने के लिए ना तो किसी दल द्वारा और न ही समाजिक स्तर पर प्रयास किया जा रहा है. यही वजह है कि अब राजनीति में अच्छे लोग आने से परहेज करने लगे हैं. इस दौर में बिना पैसे के चुनावी जीत की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. इसके बाद विजय यादव कहते हैं कि मेरे दौर में न तो प्रचार के इतने साधन विकसित हुए थे और न गाड़ियों का कारवां चुनाव प्रचार में निकलता था. चुनाव बहुत साधार तरीके से लड़े जाते थे.कार्यकर्ता पैदल गांव-गांव जाकर अपने पार्टी के प्रत्याशी के पक्ष में लोगों से वोट देने की अपील करते थे.