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रमजान नेकियों की बहार का महीना

रमजान नेकियों की बहार का महीनागोपालगंज. माहे रमजान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है. जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है, वह भी रमजान में इबादतगुजार बन जाता है. यह सब्र का महीना है और सब्र के बदले जन्नत है. रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और […]

रमजान नेकियों की बहार का महीनागोपालगंज. माहे रमजान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है. जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है, वह भी रमजान में इबादतगुजार बन जाता है. यह सब्र का महीना है और सब्र के बदले जन्नत है. रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और हम पढ़ते और सुनते रहते हैं, लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं. ईमानदारी के साथ हम अपना जायजा ले कि क्या वाकई हम लोग मुहताजों और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी करनी चाहिए. सिर्फ सदका-ए-फितर देकर हम यह समझते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है. जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है, तो हमारी जेबों से सिर्फ चंद रुपये निकलते हैं, लेकिन जब हम अपनी शॉपिंग के लिए बाजार जाते हैं, वहां हजारों खर्च कर देते हैं. अगर इस महीने में हम अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कुछ कम कर लें और यही रकम जरूरतमंदों को दें तो यह हमारे लिए सवाब होगा. इस महीने में की गयी एक नेकी का फल कई गुणा बढ़ा कर अल्लाह की तरफ से अता होता है. मोहम्मद साहब ने फरमाया है, जो शख्स नमाज के रोजे ईमान और एहतेसाब (अपने जायजे के साथ) रखे उसके सब पिछले गुनाह माफ कर दिये जायेंगे. रोजा हमें जब्ते नफ्स (खुद पर काबू रखने) की तरबियत देता है. हममें परहेजगारी पैदा करता है. रमजान का यह महीना बेहद पाक और रहमतों वाला होता है.

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