लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद महादलित कार्ड खेलते हुए जीतन राम मांझी को सीएम की कुरसी पर बैठाया और नौ महीने में ही उन्हें हटा कर खुद सत्ता पर काबिज हो गये. महादलित समाज के लोग उस अपमान को भूले नहीं थे कि अब अपने मंत्रिमंडल के सबसे वरिष्ठ मंत्री रमई राम को अपमानित कर रहे हैं.
जिले के प्रभारी मंत्री को भरोसे में लिये बिना उनके ऊपर किसी और मंत्री की तैनाती क्या उनका अपमान नहीं है? मंत्री को जानकारी दिये बिना विभागीय प्रधान सचिव को बदल देने का मुख्यमंत्री का निर्णय क्या उन्हें अपमानित करने की कार्रवाई नहीं है? जब रमई राम विरोध जताते हैं, तब सीएम कहते हैं कि इस्तीफा आया, तो तुरंत स्वीकार कर लूंगा. अगर सीएम को महादलित-दलित मंत्रियों की क्षमता पर भरोसा नहीं है, तो उन्हें जिलों का प्रभार ही क्यों दिया गया? रमई राम के पास 20 वर्षो से भी अधिक समय का मंत्री पद का अनुभव है. दलित-महादलित समाज मुख्यमंत्री द्वारा किये जा रहे इस तरह के अपमान को कभी नहीं भूलेगा. दलित-महा दलित समाज विधान सभा चुनाव में इस अपमान का बदला जरूर लेगा.