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जनवितरण प्रणाली में सुधार, 20 प्रतिशत गड़बड़ी अब भी

बिहार में जनवितरण प्रणाली पर जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने जारी की विशेष रिपोर्ट पटना : जनवितरण प्रणाली (पीडीएस) गरीबों तक सस्ता अनाज पहुंचाने का सबसे बेहतरीन और सरल माध्यम है, लेकिन बिहार में इसमें अब भी 20 प्रतिशत की चोरी या अनाजों की कालाबाजारी का धंधा जारी है. यह बेहद दुखद है. हालांकि, पिछले […]

बिहार में जनवितरण प्रणाली पर जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने जारी की विशेष रिपोर्ट
पटना : जनवितरण प्रणाली (पीडीएस) गरीबों तक सस्ता अनाज पहुंचाने का सबसे बेहतरीन और सरल माध्यम है, लेकिन बिहार में इसमें अब भी 20 प्रतिशत की चोरी या अनाजों की कालाबाजारी का धंधा जारी है.
यह बेहद दुखद है. हालांकि, पिछले 10 सालों में अनाजों की कालाबाजारी के मामले 90 प्रतिशत से घट कर 20 प्रतिशत तक पहुंच गये हैं. बिहार और झारखंड जैसे राज्यों को काफी सुधार करने की आवश्यकता है, क्योंकि ये दोनों राज्य ‘भूख की राजधानी’ हैं. ये बातें जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो ज्यां द्रेज ने कही.
शुक्रवार को वे एएन सिन्हा शोध संस्थान में ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए)’ पर एक शोध रिपोर्ट जारी कर रहे थे. इस रिपोर्ट में बिहार में जनवितरण प्रणाली की वस्तुस्थिति से परिचित कराते हुए मौजूदा खामियों और खूबियों को उजागर किया गया है.
प्रो द्रेज ने स्पष्ट किया कि उनकी यह रिपोर्ट किसी राजनीति दल को नकारने या उसकी सराहना करने के लिए नहीं है. चुनाव जीतने के दो तरीके हैं, इस पीडीएस सिस्टम को चला या लूट कर वोट हासिल करना. अब लोग समझने लगे हैं कि क्या सही, क्या गलत है. सस्ते दर पर हर कोई सरकारी अनाज लेना चाहता है. इस रिपोर्ट को आइआइटी दिल्ली में अर्थशास्त्र की प्रो. ऋतिका खेरा ने मिल कर तैयार किया है. इस दौरान संस्थान के निदेशक डीएम दिवाकर, जेसिका भी मौजूद थीं.
चार जिलों में सर्वे कर तैयार हुई रिपोर्ट
सव्रे के लिए चार जिलों बांका, गया, पूर्णिया और सीतामढ़ी को चुना गया. इन जिलों में रैंडमली 48 गांवों के एक हजार घरों में जाकर लोगों से बात करके तैयार किया गया है. दिसंबर, 2014 को किये गये इस अध्ययन को इलाहाबाद विवि और आइआइटी दिल्ली ने मिल कर किया है.
बिहार के खाद्य सुरक्षा कानून बेहद उपयोगी
प्रो द्रेज ने कहा कि बिहार देश के सबसे कुपोषित राज्यों की श्रेणी में आता है. ऐसे में यहां के लिए एनएफएसए कानून बेहद ही उपयोगी है. बिहार को इस कानून की जितनी जरूरत है, उतनी आवश्यकता देश में अन्य किसी राज्य को नहीं है. बेहद गरीब और वंचित तबके को भूख से बचाने में यह बेहद सहायक है.
राज्य में अनाज खूब आ रहा है, बस इसका इस्तेमाल सही तरीके से किया जाये तो बेहतर होगा. उन्होंने कहा कि जन वितरण प्रणाली में जितना सुधार हुआ है, उससे कहीं ज्यादा करना होगा. इस योजना में ‘कैश ट्रांसफर योजना’ लागू करने की बात को नकारते हुए कहा कि बिहार जैसे राज्य के लिए यह उपयोगी साबित नहीं होगा. इसके कई मौजूदा कारण है. इसमें बैंकों की संख्या कम होना समेत अन्य कई कारण हैं. पुडुचेरी का जिक्र करते हुए कहा कि जब यह व्यवस्था वहां तीन-चार महीने में ही फ्लॉप होने पर हटानी पड़ी, तो बिहार में इसका चलना संभव नहीं है.
सुधरी है लूट की स्थिति
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मानव विकास संस्थान की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अनाज की कालाबाजारी घट कर 20 प्रतिशत तक पहुंच गयी है. इस संबंध में दो साल में पांच सव्रे हुए हैं और सभी में यही बात सामने आयी है. वर्ष 2004-05 में पीडीएस का 90 फीसदी अनाज कालाबाजारी होता था.
2009-10 में यह घट कर 75 फीसदी, 2011-12 में घट कर 20 प्रतिशत और 2014 में भी यह 20 प्रतिशत पर ही बरकरार है. पड़ोसी राज्य झारखंड की तुलना में बिहार की स्थिति तेजी से सुधरी है. वहां अब भी 40 फीसदी कालाबाजारी है, जबकि छत्तीसगढ़ से पीछे और ओड़िशा के बराबर है.

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