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साक्ष्य देंगे, तो नहीं बचेगा अपराधी

प्रशिक्षण कार्यक्रम. विशेषज्ञों ने अनुसंधान और चाजर्शीट दायर करने के बताये गुर पटना : कोतवाली थाना परिसर में शुक्रवार को उपस्थित विशेषज्ञों ने कोतवाली, बुद्धा कॉलोनी व सचिवालय के पुलिस पदाधिकारियों को बताया कि किस तरह से अनुसंधान करना है, केस डायरी लिखनी है, ताकि अपराधियों को सजा मिल सके. केस डायरी में ऐसे साक्ष्य […]

प्रशिक्षण कार्यक्रम. विशेषज्ञों ने अनुसंधान और चाजर्शीट दायर करने के बताये गुर
पटना : कोतवाली थाना परिसर में शुक्रवार को उपस्थित विशेषज्ञों ने कोतवाली, बुद्धा कॉलोनी व सचिवालय के पुलिस पदाधिकारियों को बताया कि किस तरह से अनुसंधान करना है, केस डायरी लिखनी है, ताकि अपराधियों को सजा मिल सके.
केस डायरी में ऐसे साक्ष्य की जानकारी दें, जो कोर्ट में ट्रायल के दौरान फेल न हो. चर्चा के दौरान यह बात भी उभर कर सामने आयी कि पुलिस अगर किसी केस का उद्भेदन भी कर लेती है, अभियुक्त भी पकड़ा जाता है, पर साक्ष्य की कमी से कोर्ट से उसे जमानत मिल जाती है.
ट्रेनिंग में इस बात पर भी जोर दिया गया कि अनुसंधानकर्ता, एफएसएल व अभियोजन तीनों को एक मंच पर आकर ऐसी व्यवस्था करें कि अभियुक्त को सजा मिल सके. यह टिप्स पुलिस पदाधिकारियों की कार्यशैली में धार लाने के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में दिये गये. इस दौरान डीजी प्रशिक्षण पीएन राय, आइजी प्रशिक्षण अमित कुमार, एडीजी सुनील कुमार, आइजी सीआइडी विनय कुमार, आइजी जेएस गंगवार, एसएसपी जितेंद्र राणा, सिटी एसपी पश्चिमी राजीव मिश्र, सिटी एसपी मध्य चंदन कुमार कुशवाहा आदि मौजूद थे.
पूरे जिले में दी जायेगी ट्रेनिंग : डीजी
आमतौर पर पुलिस पदाधिकारियों को किसी विशेष स्थान परप्रशिक्षण लेने में परेशानी होती है. ऐसे में यह व्यवस्था की गयी है, ताकि उनके कार्यालय में ही उन्हें अनुसंधान व दस्तावेज की प्रस्तुति के संबंध में प्रशिक्षण दिया जा सके. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरे पटना जिले में चलेगा और तीन-चार थानों के पुलिस अफसरों को एक जगह प्रशिक्षण दिया जायेगा.
– पीएन राय, डीजी प्रशिक्षण
साइबर क्राइम के अनुसंधान की हो जानकारी
कार्यक्रम में पुलिस पदाधिकारियों को साइबर क्राइम से जुड़े मामले मसलन एटीएम, लॉटरी, इ-मेल, सोशल एकाउंट से जुड़े जालसाजी के केसों में अनुसंधान करने के टिप्स दिये गये.
चर्चा के दौरान यह बात सामने आयी कि थानों में साइबर क्राइम से जुड़े मामलों का अनुसंधान करनेवाले पुलिस पदाधिकारियों की संख्या काफी कम है. एक या दो अफसर ही इसके जानकार होते हैं. इसके कारण उन पर काम का बोझ ज्यादा रहता है. इस पर जोर दिया गया कि तमाम पुलिस पदाधिकारियों को साइबर क्राइम के अनुसंधान की भी जानकारी होनी चाहिए.

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