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17 महीने बाद भी 3.56 करोड़ का पता नहीं

पटना: फर्जी चेक के माध्यम से जिला योजना कार्यालय से गायब हुए 3.56 करोड़ रुपये का रहस्य अब भी बरकरार है. सत्रह महीने बाद भी पुलिस-प्रशासन गबन की इस पहेली को सुलझा नहीं पाया है. डीएम व डीपीओ के फर्जी हस्ताक्षर कर निकासी किये गये इन पूरे पैसों की न तो रिकवरी हुई है और […]

पटना: फर्जी चेक के माध्यम से जिला योजना कार्यालय से गायब हुए 3.56 करोड़ रुपये का रहस्य अब भी बरकरार है. सत्रह महीने बाद भी पुलिस-प्रशासन गबन की इस पहेली को सुलझा नहीं पाया है. डीएम व डीपीओ के फर्जी हस्ताक्षर कर निकासी किये गये इन पूरे पैसों की न तो रिकवरी हुई है और न ही मामले में किसी अप्राथमिकी अभियुक्त को गिरफ्तार किया जा सका. दबाव पड़ने पर सिर्फ आंध्रा बैंक ने 1.51 करोड़ रुपये में से 51 लाख 55 हजार रुपये लौटाये.
तीन चेकों से हुई थी अवैध निकासी : गबन के इस मामले में तीन चेकों से अवैध ढंग से 3.56 करोड़ रुपये की निकासी हुई थी. एक-एक चेक आंध्रा बैंक व बैंक ऑफ बड़ौदा की चेन्नई शाखा में, जबकि तीसरा चेक बैंक ऑफ बड़ौदा की धनबाद शाखा में डाला गया था. चेन्नई में यह राशि पेंटागन ग्लोबल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के एमडी टी महादेवन और धनबाद में सोमनाथ व गुरु के नाम से निकाली गयी थी. बावजूद इनमें से किसी की गिरफ्तारी संभव नहीं हो सकी है.
खाते में पैसे रहने क बाद भी खाताधारक को नहीं पकड़ा : मामले की प्राथमिकी गांधी मैदान थाने में दर्ज हुई थी. इसकी जांच को लेकर पुलिस की एक टीम आंध्र प्रदेश भी गयी थी. जांच टीम ने खाताधारक पेंटागन ग्लोबल सॉल्यूशंस के एमडी से भी पूछताछ की लेकिन उनको गिरफ्तार नहीं किया गया, जबकि पुलिस के पास उनके खाते में ही रुपये होने का पूरा प्रमाण मौजूद था.
नाम बताने के बाद भी गिरफ्तारी नहीं: पुलिस ने चेन्नई में फर्जी चेक भुनाने में मुख्य भूमिका निभानेवाले बंटी नामक युवक को भी धनबाद से गिरफ्तार किया था. फर्जीवाड़े में साथ देने पर उसे 25 लाख रुपये मिले थे. जांच में इसकी पुष्टि होने पर उसके बैंक खाते में पड़े 17 लाख रुपये पुलिस ने सीज कर लिये थे. पूछताछ में बंटी ने गिरोह में शामिल आठ लोगों के नाम पुलिस को बताये थे, मगर अब तक उनकी गिरफ्तारी भी संभव नहीं हो सकी है.
अब भी जेल में हैं दो नाजिर और एक अनुसेवी
मामले में तात्कालिक अभियुक्त बनाये गये दो नाजिर व एक अनुसेवी अब भी जेल में बंद हैं. चेकबुक का कस्टोडियन मानते हुए पूर्व एवं वर्तमान के नाजिर को दोषी ठहराते हुए उनको जेल में बंद करा दिया गया. इसी तरह, बुजुर्ग अनुसेवी को भी फाइल इधर-उधर के हिसाब से जिम्मेवारी तय करते हुए जेल भेजा गया. निकासी के लिए इस्तेमाल किये गये चेक पर जिला योजना पदाधिकारी और तत्कालीन जिला पदाधिकारी (डीएम) के भी हस्ताक्षर थे, मगर पुलिस ने अब तक न तो उन हस्ताक्षर के सत्यापन करने की कोई कोशिश की और न ही उनसे कोई पूछताछ की गयी.

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