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अहंकार को समाप्त नहीं, शोधित करें : निश्चलानंद

संवाददाता, पटनाअहंकार को समाप्त नहीं, बल्कि उसे शोधित करने की जरूरत है. ये कहना है पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का. वह मंगलवार को स्वाध्याय मिशन के अंतर्गत मजिस्ट्रेट कॉलोनी के सामुदायिक भवन में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम में बोल रहे थे. भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आत्मा शरीर बदलती है, लेकिन वह […]

संवाददाता, पटनाअहंकार को समाप्त नहीं, बल्कि उसे शोधित करने की जरूरत है. ये कहना है पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का. वह मंगलवार को स्वाध्याय मिशन के अंतर्गत मजिस्ट्रेट कॉलोनी के सामुदायिक भवन में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम में बोल रहे थे. भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आत्मा शरीर बदलती है, लेकिन वह कभी नाश नहीं होती. उन्होंने हर व्यक्ति में आकृति भेद बताया. वे बताते हैं कि पुरुष व स्त्री के स्वर लहरी में भेद है. यदि भेद न हो तो संसार का मतलब नहीं. अध्यात्म का अर्थ है आत्मा का अध्ययन करना. उससे प्राप्त अनुभव से जीवन दर्शन को आगे करना ही अध्यात्म है. स्वामी जी ने राजनीतिक संदर्भ में विश्व के विकास को तीन परिमाप में खड़ा बताया. वे कहते हैं कि राजनीतिक दल कोई भी हो, विकास के परिघात में अंतर केवल इतना है कि कौन कितना ईमानदारी और व्यावहारिक रूप में काम कर रहा है. गंगा,कृष्णा,कावेरी व नर्मदा पवित्र जल धाराएं हैं, जो विकास के नाम से दूषित व विलुप्त के कगार पर है. ऐसे में विकास की बात बेमानी सी है. विश्व के विकास को तीन रूपों में परिभाषित किया जा सकता है, जो पर्यावरण को क्षति न पहुंचाएं और महंगाई व नैतिकता का ह्रास न करें. इन तीनों से मुक्त ही विकास है.

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